yaad

समीक्षा‌ : प्यार का सागर

सागर में अक्क्सर तूफ़ान उठा करते है जो कभी कभार नुकसान भी पहुँचा आहत कर देते है जिसकी पीड़ा कदाचित सागर कि नियति प्रतीत होती है जो मन में सदैव के लिये भय पैदा कर देती है ।मगर सागर का… Read More

kalam(1)

समीक्षा‌ : डस्टबिन

साहित्य जीवन मूल्यों कि साध्य साधना है या नहीं ,साहित्य का सामाजिक गति काल से कोई सरोकार है कि नहीं डस्टबिन उसी वास्तविकता कि पृष्टभूमि कि व्याख्या और सच्चाई है ।सजल द्वारा प्रारम्भ में सीड़ी पत्रिका में अपनी कहानियो को… Read More

life(1)

समीक्षा‌ : अपने पराये

जीवन मूल्यों परस्पर भावनाओं और उसकी परिस्थिभूमि परिणाम का सजीव चित्रण कहानी का सशक्त पक्ष है एकाकी प्रज्ञा देवी का पति के तस्वीर से वार्तालाब और सम्पूर्ण जीवन के लम्हों को दमन में समेटे रख उसे ही जीवन का आधार… Read More

mansanti

पद्य : एक उस भगवन

मन-मग रहत , बस एक उलझन । हदय बस तब , चयन उस भगवन । जतन जब सरजन , अब अनवरत अर अनवरत । जग-जन चमन सद, बढ़त बस बरकत । ईश ,असलम , धन-धन ,सत-मदद । इस , उस… Read More

saraswatima

वंदना : शुभ्रकमल सिंहासना

तू स्वर की देवी, माँ वीणापाणि, शुभ्रकमल सिंहासना । ममतामयी मूरत ,बुद्धि की सूरत , प्रेम पूरण प्रति प्रेरणा । ‘अजस्र ‘ तेरे चरणों में बैठा , कर जोड़े, करता माँ वंदना , ये वंदना ,ये वंदना । तू स्वर… Read More

girlalone

लेख : एक थी श्रद्धा

एक थी श्रद्धा माता-पिता दुलारी गई भटक रिश्ता भी धोखा दिल टूटा श्रद्धा का केवल पीड़ा ना वो आजादी मां-बाप बिन शादी गत श्रद्धा की ना प्रेम पला ना रहा लिव-इन जग-हसाई न रहा प्यार केवल व्यभिचार श्रद्धा व ताब… Read More

umed

समीक्षा‌ : नशे की गिरफ्त में युवा

भारत युवाओं का देश है, और दुनिया की सबसे तेजी से उभरती शक्ति है लेकिन एक तरह से शक्ति का सबसे अधिक दुरुपयोग करने वाला देश भी। देश की आजादी के वक्त भी इतनी अराजकता नहीं रही होगी जितनी 21वीं… Read More

strii

समीक्षा : स्त्री परिधि के बाहर

‘स्त्री परिधि के बाहर’ उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जनपद सोनभद्र की रहने वाली डॉ. संगीता की 2021 में प्रकाशित आलोचनात्मक पुस्तक है। इस पुस्तक में उन्होंने हिंदी साहित्य में स्त्री आत्मकथा का विवेचन व विश्लेषण किया है तथा हिंदी साहित्य… Read More

baal shram

लेख : बाल श्रम

आओ मिलकर हम सब सुंदर भारत का निर्माण करें…. किसी बच्चे का दामन न छूटे अपने बचपन से रोंदे न कोई उसके सपनों को बाल श्रम के घन से कोई छीने न इनसे इनका भोलापन फिर न कोई छोटू मज़बूर… Read More

nai kitab publication athrva me wahi van hu

पुस्तक समीक्षा : अथर्वा मैं वही वन हूँ

पुस्तक : अथर्वा मैं वही वन हूँ लेखक : आनंद कुमार सिंह प्रकाशक : नयी किताब प्रकाशन, दिल्ली समीक्षक : विनोद शाही मानव जाति का भविष्य कविता में है “अपरा विज्ञानों के महाविकास के फलस्वरूप यहाँ पर गद्यदेश का विकास… Read More