भारत युवाओं का देश है, और दुनिया की सबसे तेजी से उभरती शक्ति है लेकिन एक तरह से शक्ति का सबसे अधिक दुरुपयोग करने वाला देश भी। देश की आजादी के वक्त भी इतनी अराजकता नहीं रही होगी जितनी 21वीं शदी के भारत में दिखाई देती है। विगत दस वर्षों में देश के युवा नशे की ओर अधिक अग्रसर हो गए है, एक समय ऐसा भी था जब भारतीय समाज मे नैतिकता अपने चरम पर थी, पर समय परिवर्तन और आधुनिक तकनीकों का गलत उपयोग करने से इसका लगातार पतन होता चला गया। समाज में संयुक्त परिवार की जगह अब एकल परिवार ने ले ली है जिसके कारण बच्चे जो दादा, दादी से नैतिकता के पाठ सीखते थे अब उस नैतिकता का पाठ पढ़ने के लिए घरों में ना दादी है और ना दादा! जो बच्चों को सही और गलत का पाठ पढ़ा सकें। जीवन में व्यस्तताओं के चलते माता- पिता प्रायः बच्चों पर अधिक ध्यान नहीं दे पाते है इसी कारण आज युवा नैतिकता के पाठ को भी भूलता जा रहा है।
देश के किसी भी शहर, कस्बे, गाँव को अगर देखा जाए तो अधिकांशतः युवा किसी ना किसी नशे की लत में गिरफ्त मिल जायेगें। आसपास के क्षेत्र मे कई बार सड़क पर अथवा सड़क के किनारे युवा नशे का सेवन करते देखे जा सकते है। क्या वास्तव में देश की युवा शक्ति देश के विकास मे सहायक हो सकती है? क्या इस स्थिति के लिए देश के महान नायकों ने अपनी प्राणों की आहुति दी थी?
इस हेतु स्वरचित एक कविता की चार लाइन यथार्थ होती है:
“देश है आजाद लेकिन जश्ने-आजादी भी चाहिए,
हो रहा क्या देश में यह बात लिखनी चाहिए।
भूल बैठे हो अगर इतिहास अपना साथियों,
फिर सभी एक साथ हो इक आस दिखनी चाहिए।।“
अगर आकड़ों के मायाजाल पर ध्यान ना दिया जाए और यथार्थ के तथ्यों पर ध्यान दिया जाए तो देश में युवाओं के हालात बहुत अच्छे नहीं है, यह कहना उचित ही होगा कि आज देश का युवा जिस पर देश का भविष्य निर्भर है वह अब स्वयं का भविष्य भी अंधकारमय करता जा रहा है, आज का युवा न केवल बेबस और लाचार दिखाई पड़ रहा है वरन वह अपने पथ से भटकता भी नजर आ रहा है। युवा शब्द से तात्पर्य सिर्फ पुरुष वर्ग से नहीं है अपितु इसमें समान रूप से महिलाएं भी सम्मिलित है।
समाज में अलग-अलग तरह के नशे में अब यह युवा अपनी व देश की शक्ति दोनों का विदोहन करते जा रहे है। नशीली दवाओं एवं नशीले द्रव्य पदार्थों की पकड़ अब छोटे शहरों, कस्बों व गांवों तक पहुँच चुकी है। शराब,तंबाकू, गुटखा, चरस, गाँजा,अफीम, एवं विभिन्न प्रकार के नशे की गोलियां अब न केवल युवा अपितु छोटे बच्चों मे भी प्रचारित हो चुकी है और वे इनका दोहन भी कर रहे है, समाज का युवा इस हद तक नशे कि गिरफ्त मे है कि वह खासी की दवाई तक का उपयोग नशे के रूप में करता है, हमारे समाज में यह भी देखने को मिल रहा है कि शहरों मे निवासरत गरीब तबके के नैनीहाल अब वाहनों के पंचर बनाने मे उपयोग होने वाले पदार्थ का उपयोग नशे के रूप मे कर रहे है। आज की इस युवा पीढ़ी में नशे को कूल दिखने से जोड़ा जाता है यदि कोई लड़का नशा करता है तो वह इसका शर्म से नहीं अपितु बड़े ही गर्व के साथ बखान करता है, और इसी का दुष्परिणाम है कि नशे का प्रसार इतना व्यापक हो चुका है कि युवा प्रायः बाल्यावस्था से ही इसकी चपेट मे आ जाता है, अब छठवी कक्षा मे पढ़ रहा बालक भी एक बार नशा करना चाहता है, सामान्यतः यह कुछ नया जानने की इच्छा के कारण होता है तो कई बार वे टेलीविजन, मोबाइल अथवा अपने घर के बड़ों मे ही इसका प्रयोग करते देखता है और सामान्यतः वह इसका एक बार शौकिया रूप से चोरी छिपे प्रयोग करते है और फिर धीरे-धीरे उन्हे इसकी आदत हो जाती है। समाज में नशे का प्रसार इतना ज्यादा हो चुका है कि बच्चे किशोरावस्था तक की उम्र मे नशे का व्यसन नियमित रूप से करने लगते है।
नशे की लत के कारण कई प्रकार की बीमारियां होती है जैसे किडनी, लीवर, फेफड़े का खराब होना, अब तो विभिन्न प्रकार की दवाईयों का सेवन करने से युवा वर्ग मे मिर्गी जैसी बीमारी भी हो रही है, और कई बार कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के कारण उनकी कम उम्र में ही मृत्यु भी हो जाती है,और भारत में इसके कारण मौत के आकड़े भी लगातार बढ़ रहे है, कहने के लिए तो यह सिर्फ आकड़े होते है पर एक घर से एक व्यक्ति की मौत भी उस परिवार को अत्याधिक पीड़ा देती है। नशे का सेवन करने वाला व्यक्ति बहुत ही स्वार्थी स्वभाव का होता है, उसे सिर्फ अपनी लत, अपनी खुशी से मतलब होता है, उसे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि उसे यदि कोई गंभीर बीमारी हो जाएगी तो उसके परिवारजनों का क्या हाल होगा?
नशे की लत के कारण कई बार वे चोरी, लूट और हिंसा जैसे कृत्य भी करते है। जहां देश के युवा से यह उम्मीद की जा रही रही थी कि वो देश के भविष्य को गौरवमयी बनाएगा ठीक इसके विपरीत आज का युवा देश को शर्मीदगी की ओर ले जा रहा है।
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कही न कही सरकारी तंत्र भी इस अभिशाप का सहभागी है क्योंकि इससे उनकी भी रोजी रोटी चलती है। नि:संदेह यह शासन की जिम्मेदारी है कि वह भी इस विषय पर ध्यान दे और समय समय पर आम जनमानस को इस हेतु सचेत करे, किन्तु युवा को स्वयं भी अपने भविष्य व साथ ही देश के भविष्य की चिंता होनी चाहिए। कभी-कभी समाचार पत्र अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए इस विषय पर चिंतन करते है किन्तु सबसे महत्वपूर्ण है कि हमारी युवा शक्ति अपनी ताकत को समझे और न केवल अपने विकास मे सहायक हो वरन देश के विकास मे भी सहयोगी बने।
![umed](https://sahityacinemasetu.com/wp-content/uploads/2022/11/umed.jpg)