अब बड़ी माँ घर में नहीं है
उनकी आहट, उनकी बातें नहीं है।
शाम को बैठकर चाय की चुस्की
और ढेर सारी ज्ञान की बातें
अब पहले सी वो शाम नहीं है।
अब बड़ी माँ घर में नहीं है।
गुस्सा होने पर वह बड़ी-बड़ी आँखें
शांत होने पर प्यारी सी मुस्कान
घर तो अब भी वही है
पर अब घर में बड़ी माँ नहीं है।
भीड़ में भी गुमसुम हो जाना
कोई कुछ पूछे तो फिर मुस्कुराना
वह चश्मा वह चाय वो राम की कॉपी सब कुछ वही है
पर अब वहाँ बड़ी माँ नहीं है।