gumshuda hansi

कविता : गुमशुदा हँसी

चेतना पारीक के कलकत्ते में किसी तलाश में आया हूँ मैं, काफी सुना था कि ये आनन्द और प्रेम की नगरिया है, उसी मृग-मरीचिका की तलाश का पर्याय है चेतना पारीक, चेतना पारीक जब होती भी तब भी वह गुमशुदा… Read More

tum srijan ho

कविता : तुम सृजन हो

तुम सृजन हो कवि के अंतर्मन का शब्दों की दीपशिखा और छंदों के तार पे कसी अलंकार से विभूषित तुम सृजन हो कवि के अन्तरमन का तुझमें बहती हैं भावनाएं नित कलकल नदी सी निरन्तर तुम हो वसंत ऋतु की… Read More

gaay aur bagula

कविता : गाय और बगुला

नुकीले चोंच एक पैर पर खड़ा बगुला गाय की पीठ पर सूर्य काले बादलों से निकलने का प्रयत्न कर रहा है उसकी किरणें असफल हैं फैलने में बगुला बार-बार बादलों की ओर देखता जैसे उसे सूर्य की है प्रतीक्षा गाय… Read More

tanhai

कविता : मैं कर लूंगा किनारा

मैं कर लूंगा किनारा तुझ से कुछ इस तरह की दोबारा राब्ता ना हो सकेगा समेट लूंगा मैं खुद को इस तरह खुलकर दोबारा तेरा ना हो सकूंगा चला जाऊंगा मैं इतना दूर मुद्दत्तो बाद भी तुझसे मिल ना सकूंगा… Read More

shivaji maharaj

कविता : शिवाजी महाराज

शिवाजी महाराज याने? सिर्फ़ छत्रपति शिवाजी महाराज नहीं, बल्कि शिवाजी महाराज याने, अभिव्यक्ति की आज़ादी, किसानों का आंदोलन कामगारों का आंदोलन उत्तम प्रशासक जाती अंत स्त्री सम्मान शिवाजी महाराज याने? सिर्फ़ भगवा पताका और सियासी रंग नहीं, शिवाजी महाराज याने,… Read More

कविता : माँ शारदे

पूजत चरण माँ शारदे पंचम तिथि है बसन्त सर्वज्ञान विस्तारित हो जितना गगन अनन्त। प्रकटोत्सव पर हर्षित सारे देवी देव भगवान नतमस्तक हो स्तुति करें ओढ़ पीत परिधान। ओढ़ पीत परिधान भोग में बेसन का हलवा धन यश विद्या और… Read More

aatmhatya

कविता : आत्महत्या

संघर्षों से घबरा कर यदि, सब मृत्यु गले लगाते। डर के आगे जीत लिखे जो, न विजेता वो मिल पाते॥ मरना सबको इक दिन लेकिन, न मौत से पहले मरना॥ गिर गिर कर फिर उठ उठ कर ही, जीवन पथ… Read More

कविता : मैं

“मैं” से उठकर मैंने जब देखा जो ज़रा ध्यान से आत्मा थी दिग्भ्रमित, मन था भरा अज्ञान से। चक्षुओं की परिधि भी सीमित रही स्वकुटुंब तक संकुचित समस्त भावनाएँ, थी पहुँच प्रतिबिम्ब तक ओज़ वाणी में था इतना, स्वयं सुन… Read More

kash ham

कविता : काश! हम सब जन्मजात अंधे होते

काश! हम सब जन्मजात अंधे होते हमारी आँखों में कतई रौशनी न होती चेहरे पर लगा एक काला चश्मा होता और हाथ में लकड़ी की एक छड़ी होती तब इस विश्व का स्वरुप ही दूसरा होता प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व… Read More

developed India 2024

कविता : करते नहीं देश की चिंता

मिली मुश्किलों से आज़ादी, मगर न इस की कद्र हमें। पड़ आदत आराम की गई, नहीं देश की फिक्र हमें॥ देश की चिंता न हम करते, हम भूलें ज़िम्मेदारी। भोर करेगा कौन यहाँ अब, निंद्रा सबको है प्यारी॥ मरने मिटने… Read More