gaay aur bagula

नुकीले चोंच
एक पैर पर खड़ा बगुला
गाय की पीठ पर
सूर्य काले बादलों से
निकलने का प्रयत्न कर रहा है
उसकी किरणें असफल हैं फैलने में
बगुला बार-बार
बादलों की ओर देखता
जैसे उसे सूर्य की है प्रतीक्षा
गाय बड़ी चाव से खा रही है घास
मानो उसे,
धूप हो या वर्षा
कोई नहीं है फ़िक्र
वो अपने जबड़े से
घास को जड़ से खींच-खींच कर
खाई जा रही है
अकस्मात!
उसकी नाक पर
एक जोंक चिपक गई
वो बार-बार अपने जीभ से चाटकर
उस जोंक को
हटाने की कोशिश करती
किंतु लाचार गाय
विफल होती रहती
बगुला का ध्यान
उसकी नाक में चिपकी
जोंक पर गया
शायद उसे,
गाय की कष्ट समझ आई
बगुला ने अपना पंख फड़फड़ाया
और उड़ते हुए
गाय की नाक से चिपकी जोंक को
चोंच से खींच कर उड़ा ले गए
उसकी नाक से खून निकलने लगा
वो जीभ से अपनी नाक को
पोंछने लगी
और फ़िर,
घास खाने में व्यस्त हो गई

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