हिंदी सिनेमा में जब भी देशभक्ति फिल्मों की बात आती है तो भारत कुमार यानि की मनोज कुमार का नाम ही सबके जुबां पर सबसे पहले आता है। 15 अगस्त हो या फिर 26 जनवरी जब तक मनोज कुमार के… Read More

हिंदी सिनेमा में जब भी देशभक्ति फिल्मों की बात आती है तो भारत कुमार यानि की मनोज कुमार का नाम ही सबके जुबां पर सबसे पहले आता है। 15 अगस्त हो या फिर 26 जनवरी जब तक मनोज कुमार के… Read More
शोध सार:- रामकथा भारतीय संस्कृति, साहित्य और कलाओं में गहरे तक व्याप्त एक महत्त्वपूर्ण आख्यान है। यह कथा भारतीय जीवन दर्शन, नैतिक मूल्यों और सांस्कृतिक परंपराओं का आधार है। इस शोध में रामकथा के भारतीय कला और साहित्य पर… Read More
भारत के माथे की बिंदी भाषा बड़ी ही प्यारी हिंदी। सीख रहे विदेशी हिंदी भूल रहे स्वदेशी हिंदी। क्यों शरमाते बोल रहे हो गर्वित होकर बोलो हिंदी। सागर है अक्षर-अक्षर में गागर में सागर है हिंदी। लगे कुँवारी होके सुहागिन अपने… Read More
पत्र-साहित्य ही वह विधा है जिसके द्वारा मनुष्य समाज में रहते हुए अपने भावों एवं विचारों को दूसरों तक पहुँचाता है। पत्र सूचना संप्रेषण का सबसे प्राचीनतम साधन है।प्राचीनकाल से ही पत्र का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व रहा… Read More
दिनांक 21/08/2024, बुधवार को हिंदी विभाग उदय प्रताप कॉलेज, वाराणसी एवं प्रगतिशील लेखक संघ, वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में उदय प्रताप (स्वायत्तशासी) कॉलेज, वाराणसी के राजर्षि सेमिनार हाल में ‘हरिशंकर परसाई का लेखन : समय, समाज और संस्कृति का प्रतिबिम्ब’… Read More
प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक ‘दीपक दुआ’ को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में ‘सर्वश्रेष्ठ फिल्म समीक्षक’ के लिए चुने जाना हिंदी फिल्म पत्रकारिता और हिंदी फिल्म समीक्षक की दृष्टि में बेहद सम्मानजनक है। दीपक दुआ 1993 से दिल्ली स्थित फिल्म क्रिटिक व ट्रैवल… Read More
दलित स्त्री केंद्रित कहानियाँ : स्वप्न, संघर्ष और यथार्थ का ताना-बाना साहित्य लेखन की आरम्भिक विधा कविता रही। कविता हो या कथा, पाश्चात्य हो या भारतीय, पुरुष लेखकों की रचनाओं में चित्रित ‘स्त्री छवि’ पर सहानुभूति और स्वानुभूति के आलोक… Read More
सावन का महीना चल रहा शिव-पार्वती जी का आराम। गृहस्थ और कुवारों को भी काम काज से मिली है छुट्टी। जिसके चलते कर सकते है शिव पार्वती जी की भक्ति। श्रध्दा भक्ति हो गई कबूल तो मिल जायेंगे साक्षात दर्शन।।… Read More
“जय श्रीराम शुक्लाजी, कहाँ से लौट रहे हैं इतनी गर्मी में? आसमान स आग बरस रही है और आप स्कूटर घर में रखकर साइकिल भांज रहे हैं। काहे बचा रहे हैं इतना पैसा” मैंने उन्हें अभिवादन करते हुए उन्हें शब्दों… Read More
गुजरात में दलित पत्रकारिता प्रारंभ सात-आठ दशक से पहले हो चुका है तथापि उसकी स्पष्ट छवि अब तक नहीं बन पायी। दलित पत्रकारिता अर्थात वर्ण व्यवस्था, जाति प्रथा,अस्पृश्यता एवं सामाजिक भेद-भाव का शिकार बना हुआ जनसमूह, जो इस देश में… Read More