इतिहास के पन्नों में विनायक दामोदर सावरकर का नाम भारतीय राजनीति के परिप्रेक्ष्य में काफी चर्चा का विषय रहा है। राजनीतिक दलों ने अपने अपने अनुसार वीर सावरकर को समझने का प्रयास किया है। किसी ने स्वतंत्रता आंदोलन में एक… Read More
कविता : होली आई
आओ हम सब, मिलकर मनायें होली। अपनो को स्नेह प्यार का, लगाये रंग हम। चारों ओर होली का रंग, और है अपने संग। तो क्यों न एकदूजे को, लगाये हम रंग। आओ मिलकर मनायें, रंगो की होली हम।। राधा का… Read More
गीत : मैं किशना हो जाऊँ पिया
ऐसा रंग दे मोहे रँगरेज़ा, वृन्दावन हो जाऊँ पिया तू बन जाये राधा रानी, मैं किशना हो जाऊँ पिया। होली खेलें किशन मुरारी, भर भर मारें रंग पिचकारी सूखी देह रही ये सारी, भींग गयी सिगरी अँगियारी बाँह पकड़ के… Read More
गीत : महाशिवरात्रि
भुजंग, शशांक, त्रिशूल, शंख जटा विचरती पवित्र गंग व्याघ्र खाल पहन मलंग धतूरा दुग्ध वेलपत्र भंग विराज नन्दी गणादि संग तुरही नाद डमरू मृदंग रुद्राक्ष कण्ठ हार पहन। शिव चले यक्षदेव भुवन।। त्रियोदशी शिव ब्याह करन महादेव चले गौरा वरन… Read More
‘स्त्री संघर्ष का सिलसिला : उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ’
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर आज उदय प्रताप कॉलेज के हिंदी विभाग एवं समाजशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘स्त्री संघर्ष का सिलसिला : उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ’ विषय पर विज्ञान भवन के कक्ष संख्या 15 में एक संगोष्ठी… Read More
कविता : गुमशुदा हँसी
चेतना पारीक के कलकत्ते में किसी तलाश में आया हूँ मैं, काफी सुना था कि ये आनन्द और प्रेम की नगरिया है, उसी मृग-मरीचिका की तलाश का पर्याय है चेतना पारीक, चेतना पारीक जब होती भी तब भी वह गुमशुदा… Read More
शोध लेख : समकालीन जीवन में संत साहित्य की प्रासंगिकता
प्रस्तावना : निर्गुण भक्तिधारा के कवियों को ‘संत’ शब्द से संबोधित किया गया है। अपने हित के साथ जो लोक कल्याण की भी चिंतन करता है, वही संत कहलाने का अधिकारी है। इन संतों द्वारा बताये गये विचार तत्कालीन समाज… Read More
व्यंग्य : भीतर की घंटी
बात उन तरुणाई के दिनों की है, जब मैंने शादी के लिए विज्ञापन निकलवाया था क्योंकि उन दिनों मैं “वर” हुआ करता था। मुझे बचत करने वाली कन्या चाहिए थी। मुझे सफलता मिली। एक कन्या का शीघ्र और गजब का… Read More