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बिलासपुर में होगा ‘द फिल्म फाउंडेशन ट्रस्ट’ का दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन

‘द फिल्म फाउंडेशन ट्रस्ट’ (पंजीकृत) तथा ‘गोल्डन पीकॉक इंटरनेशनल फिल्म प्रोडक्शंस’ एलएलपी (स्टार्ट अप) का प्रथम अधिवेशन छत्तीसगढ़ के बिलासपुर नगर के आईएमए हॉल में 10 मार्च, 2024 को दोपहर दो बजे से आयोजित किया जायेगा। जिसमें हिन्दी सिनेमा के… Read More

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गीत : महाशिवरात्रि

भुजंग, शशांक, त्रिशूल, शंख जटा विचरती पवित्र गंग व्याघ्र खाल पहन मलंग धतूरा दुग्ध वेलपत्र भंग विराज नन्दी गणादि संग तुरही नाद डमरू मृदंग रुद्राक्ष कण्ठ हार पहन। शिव चले यक्षदेव भुवन।। त्रियोदशी शिव ब्याह करन महादेव चले गौरा वरन… Read More

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ग़ज़ल : औरत

उमर के साथ साथ किरदार बदलता रहा शख्सियत औरत ही रही प्यार बदलता रहा। बहिन, बेटी, बीबी, माँ, न जाने क्या क्या चेहरा औरत का दहर हर बार बदलता रहा। हालात ख्वादिनों के कई सदियां न बदल पाईं बस सदियाँ बदलती रहीं, संसार बदलता रहा।… Read More

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‘स्त्री संघर्ष का सिलसिला : उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ’

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर आज उदय प्रताप कॉलेज के हिंदी विभाग एवं समाजशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘स्त्री संघर्ष का सिलसिला : उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ’ विषय पर विज्ञान भवन के कक्ष संख्या 15 में एक संगोष्ठी… Read More

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कविता : गुमशुदा हँसी

चेतना पारीक के कलकत्ते में किसी तलाश में आया हूँ मैं, काफी सुना था कि ये आनन्द और प्रेम की नगरिया है, उसी मृग-मरीचिका की तलाश का पर्याय है चेतना पारीक, चेतना पारीक जब होती भी तब भी वह गुमशुदा… Read More

sant sahitya

शोध लेख : समकालीन जीवन में संत साहित्य की प्रासंगिकता

प्रस्तावना : निर्गुण भक्तिधारा के कवियों को ‘संत’ शब्द से संबोधित किया गया है। अपने हित के साथ जो लोक कल्याण की भी चिंतन करता है, वही संत कहलाने का अधिकारी है। इन संतों द्वारा बताये गये विचार तत्कालीन समाज… Read More

bheetar ki ghanti

व्यंग्य : भीतर की घंटी

बात उन तरुणाई के दिनों की है, जब मैंने शादी के लिए विज्ञापन निकलवाया था क्योंकि उन दिनों मैं “वर” हुआ करता था। मुझे बचत करने वाली कन्या चाहिए थी। मुझे सफलता मिली। एक कन्या का शीघ्र और गजब का… Read More

tum srijan ho

कविता : तुम सृजन हो

तुम सृजन हो कवि के अंतर्मन का शब्दों की दीपशिखा और छंदों के तार पे कसी अलंकार से विभूषित तुम सृजन हो कवि के अन्तरमन का तुझमें बहती हैं भावनाएं नित कलकल नदी सी निरन्तर तुम हो वसंत ऋतु की… Read More

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गीत : खेत

खेत का गीत पुरखों की आत्मा है कभी न छोड़ें खेती करना सिखाया पुरखों ने जीने के लिए कभी न भूलो ओ रे आदिवासियों यह संस्कृति याद रखना अपनी प्रतिष्ठा को स्वार्थी न बनों दिशा-दिशा से आओ आदिवासियों गीत न… Read More

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कविता : गाय और बगुला

नुकीले चोंच एक पैर पर खड़ा बगुला गाय की पीठ पर सूर्य काले बादलों से निकलने का प्रयत्न कर रहा है उसकी किरणें असफल हैं फैलने में बगुला बार-बार बादलों की ओर देखता जैसे उसे सूर्य की है प्रतीक्षा गाय… Read More