प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक ‘दीपक दुआ’ को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में ‘सर्वश्रेष्ठ फिल्म समीक्षक’ के लिए चुने जाना हिंदी फिल्म पत्रकारिता और हिंदी फिल्म समीक्षक की दृष्टि में बेहद सम्मानजनक है। दीपक दुआ 1993 से दिल्ली स्थित फिल्म क्रिटिक व ट्रैवल… Read More
लेख : फ़िल्मी गीतों में बरसता सावन
“रिमझिम के तराने लेकर आई बरसात” अगर कोई मुझसे पूछे कि तुम्हें कौन-सा मौसम सुहावना लगता है, तो मैं बिना समय गवाएं कह सकता हूँ कि मुझे तो सिर्फ़ बरसात का मौसम सुहाना लगता है। यह वह समय होता है… Read More
लेख : फ़िल्मों में राखी धागों का त्योहार
हमारा देश धर्मप्राण देश रहा है। आध्यात्मिक ऊर्जा यहां के कण-कण में समाविष्ट है। यहां के व्रत-नियमों का सम्बन्ध अध्यात्मदर्शन, देवदर्शन और निरामयता से जुड़ा हुआ है। इसलिए हमारे व्रत-उपवासों की सुदीर्घ परम्परा सदा से चली आयी है। वर्ष में… Read More
गदर : जब दर्शकों ने किया समीक्षकों का मुँह बंद
गदर पार्ट 1 को जब अधिकतर तथाकथित फ़िल्मी विद्वान समीक्षकों ने गटर बताया था, तब भी दर्शकों ने इस फ़िल्म को हिंदी सिनेमा के कालजयी फिल्मों के क्लब में शामिल कराकर उनका मुँह ऐसा बंद किया कि बेचारे वो करें… Read More
लेख : हिंदी सिनेमा में हिंदी भाषा का बदलता स्वरुप
सिनेमा भाषा के प्रचार-प्रसार का एक बहुत ही अच्छा माध्यम है। सिनेमा में हर तरह की हिंदी के लिए जगह है। फिल्म में पात्रों की भूमिका व परिस्थतियों को देखकर ही भाषा का प्रयोग किया जाता है। जिससे प्रारंभिक दौर… Read More
शोध लेख : हिंदी के संदर्भ में विज्ञापन की दुनिया
वर्तमान युग में विज्ञापन हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। आज हमारी नज़र जहाँ-जहाँ भी जाती है वहाँ हमें विज्ञापन ही विज्ञापन नज़र आते हैं। सवेरे-सवेरे आँख खुलते ही गर्म-मा-गर्म चाय की चुस्की के साथ जब हम अखबार… Read More
लेख : सीक्वल के भरोसे ओटीटी
ओटीटी प्लेटफॉर्म की शुरुआत जब देश में हुई तो किसी को इतना अंदाजा नहीं था कि यह अपनी पकड़ भारतीय दर्शकों पर इतनी ज्यादा बना देगा ।शुरुआती वेब सीरीज को देखकर लगा कि बस कुछ एक कंटेंट ऐसे हैं जिन्हें… Read More
हिंदी सिनेमा और साहित्य में संवेदना का संकट
“अब जब तुम देखोगे चेहरा अपना पहचान जैसा सब कुछ, कुछ नहीं होगा कहीं भी, बदली-बदली है विश्व संरचना इन दिनों” बदलती हुई इस विश्व संरचना के दौर में जहाँ दुनियाँ तेजी से बदल रही है। वहीं उसके भीतर की… Read More
समीक्षा : लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
मैंने भी "द कश्मीर फाइल्स" देख ली है। पहली बार कोई फ़िल्म इतनी चर्चा के बाद देखी। मेरी मित्र सूची में शामिल अभिनेत्री भाषा सुम्बली और और हमारे भैय्या अरुण शेखर जी के करीबी मित्र अतुल श्रीवास्तव जी भी फ़िल्म… Read More