“रिमझिम के तराने लेकर आई बरसात” अगर कोई मुझसे पूछे कि तुम्हें कौन-सा मौसम सुहावना लगता है, तो मैं बिना समय गवाएं कह सकता हूँ कि मुझे तो सिर्फ़ बरसात का मौसम सुहाना लगता है। यह वह समय होता है जब आसमान से इंद्र देवता धरती पर अमृत की वर्षा रहे होते हैं। इस बरसती बूंदों में कौन भला भींगना नहीं चाहेगा? तन तो भींगता ही भींगता है, साथ में मन भी भींगता रहता है।
बारिश की पहली फ़ुंवार के साथ ही धरती का कोना-कोना हरियाली की चादर से ढंक जाता है। शीतल, मंद-मंद हवा के झोंके आपके शरीर को छूकर आगे बढ़ जाते है. कौन भला इन सुखद हवा के झूलों में झूलना नहीं चाहेगा? पेड़ों ने हरियल बाना पहन लिया है। उनकी लचकदार डालियों में कोई कच्ची कली अपना घूंघट खोले रसिक भौरों को आमंत्रण दे रही होती है. नए पत्तों से लदी-फ़दी किसी घनी डाली पर बैठी कोयल कुहू..कुहू की स्वर-लहरी बिखेर रही होती है। झिंगुरों को कौन क्या कहे, वे अपनी टिर्र-टिर्र से पूरा वातायण गूंजाने लगते हैं। वे अपनी ही मस्ती में खोए हुए हैं। कान उनकी टिर्र-टिर्र सुनना नहीं चाहते,लेकिन मजबूर है। आठ महिने धरती के गर्भ में अपने को छिपाए बैठे मेंढक अब बाहर निकल आते हैं। वे भी अपने आप में किसी सिद्ध गायक की तरह अपने को पेश करने में लगे हैं। कौन क्या सुनना चाहता है, किसे कौन-सा राग पसंद है, उन्हें इससे मतलब नहीं। वे तो अपने ढर्रे पर उतर आए हैं और अपनी टर्र-टर्र की आवाज निकालने में मस्त हैं. शायद उन्हें इस बात का भ्रम बना रहता है कि वे राग-मल्हार ही गा रहे हैं। मयूर भी भला कहीं पीछे रहने वाला प्राणी है? बादलों को घिरता देख वह खुशी से झूम उठता है और कै-कै की आवाज निकालकर अपने आकर्षक पंखों को फ़ैलाकर नाचने लगता है. मयूर का नाच अद्भुत और देखने लायक होता है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सभी प्राणी इस रिमझिमाते मौसम में खुश है. खुश तो ढोर-डंगर भी हैं जिन्हें हरी-हरी मुलायम घास खाने को जो मिलने लगी है. खुश तो बेचारे तब भी थे, जब सूखी घास को खाकर किसी तरह अपना उदर-पोषण कर रहे थे. सूखी घास में वह सुख कहाँ जो हरी-हरी घास में रहती है ! हरा चारा चर कर वे खुश तो हो ही रहे हैं साथ ही ग्वाला भी खुश हो रहा है. जहाँ वह पाव भर दूध निचोड़ता था, अब किलो से दुह रहा है. कृषक भी खुश हैं कि उनका खेत फ़सलों से लहलहा रहा है. एक साथ कई उम्मीद बलवती हो उठती है उसकी कि इस बार फ़सल भरपूर होगी तो वह अपनी सयानी होती बेटी को डॊली में बिठाकर बिदा कर सकेगा. साहूकार के कर्ज का बोझ उतार सकेगा. अपने मुन्ना-मुन्नी के लिए नए कपड़े सिलवा सकेगा. गले में नकली सोने की चेन पहने अपनी प्रियतमा को कम से कम तोला दो तोला का हार ही बनवा देगा. ताल, तलैया, नदी, नाले सभी खुश हैं कि उनकी प्यास बुझ जाएगी. सबसे ज्यादा खुशी तो उन तमाम नदियों को हो रही होती है, जो भीषण गर्मी के चलते कृष्काय हो चुकी होती हैं. वे खुश हैं इस बात को लेकर कि आसामान से बरसते अमृत को पीकर उनकी देह जवान हो उठेगी. जवान होते ही वह कल-कल, छल-छल के स्वर निनादित करती हुई, अल्हड़ चाल से चलते हुए, पायल बजाते हुए, गीत गाते हुए बह निकलेगीं. वे इस सोच के चलते भी खुश हो रही होती हैं कि उनके घाटॊं पर फ़िर मेले लगने लगेगें. प्यासे डोर-डंगर,पखेरु,जंगली जानवर अपनी प्यास बुझा सकेगें और कजरी गाती नव-यौवनाएं सिर पर जवारों की डलियाँ उठाए उनके तटॊं पर आएगीं. मंगल दीप बारे जाएंगे, ढोल.ढमाकों के साथ नृत्य-गायन भी होगा. यह सब सोच-सोचकर वे अपने भाग्य की सराहना करने लगती हैं. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पूरा संसार इस हरियल माहौल में खुश नजर आ रहा है।
इन बरसती फ़ुंवारों में सभी खुश हो रहे हों, यह कतई जरुरी नहीं है. रिमझिम के तराने गाती बरसात जहाँ एक ओर ठंडा महौल बनाने में मगन हैं, वहीं दूसरी ओर कोई नव-यौवना के मन में विरह की भीषण आग भी लगा जाती है. उसका प्रेमी यह कहकर गया था कि वह बादलों के साथ लौट आएगा, वह अब तक आया नहीं है और न ही बैरन डाकिया अब तक उसकी कोई पाति ही लेकर आया है. जैसे-जैसे बारिश तेज होती है, उसके कलेजे की आग वैसे-वैसे भड़कती जाती है. एक ओर बरसात की झड़ी तेज होती जाती है, ठीक वैसे ही उसकी कजरारी आँखों से विरहा के बादल फ़टकर बरसने लगते हैं. कहीं कोई निर्वासित,अभिशप्त यक्ष, पहाड़ की ऊँचाइयों पर चढ़कर किसी मेघ के आने की प्रतीक्षा में अपनी देह को कृषकाय करता हुआ पाती भेजने की जुगाड़ में लगा हुआ होता है. किसी प्रेमी को किसी आवश्यक काम से जाना जरुरी होता है, तो उसकी प्रेमिका गलहार बनकर उससे अनुनय करती है कि बरसात की इस सुहानी घड़ी में उसे अकेला छोड़कर न जाए. या फ़िर बादलों से गुहार लगाकर कहती है कि इतना बरसो की उसका प्रेमी घर के बाहर कदम निकालने की भी न सोचे।
बरसात के इस सुहाने मौसम को लेकर अनेकानेक कवियों-गीतकारों ने एक से बढ़कर एक कविताएं और गीत लिखे. जमकर गीत लिखे. सिर्फ़ लिखे ही नहीं बल्कि उन तमाम भावनाओं को भी उसके माध्यम से इस तरह पिरोया है कि लोग खुशी से झूम उठें. कहीं उन्होंने उसे इतना गमगीन बना दिया कि आँखों से आँसू झरझरा कर बह निकले. उनके लिखे गीतों ने हिन्दी साहित्य को नए आयाम दिए. उसे मालामाल बना दिया. फ़िल्मी दुनिया ने बरसात के हसीन मौसम को अपनी फ़िल्मों में काफ़ी स्थान दिया. बरसात के इस मौसम को उन्होंने जितना कैश किया, उतना किसी अन्य ने नहीं किया. हम सब उन तमाम फ़िल्मों के निर्माताओं, गीतकारों, संगीतकारों, कलाकारों के ऋणी हैं कि उन्होंने बरसात को माध्यम बनाकर एक नया संसार रचा. एक नयी चेतना को आयाम दिया और उसे सदा-सदा के लिए अमर बना दिया।
बरसात पर लिखे गए गाने सिचुएशन को देखकर भी इस्तेमाल किए गए. अधिकतर गीतों में बारिश का प्रयोग दृष्य को रोमांटिक पुट देने के लिए किया गया, जिसमें प्यार था, मस्ती थी, रोमांस था, उल्ल्हास था, उमंग थी. इसके अलावा बारिश के गीतों में अलग-अलग मूड के कई गीत भी थे. कुछ विरह का पुट लिए हुए था, तो कोई मोहब्बत का पैगाम भेजते हुए था. जब बरसात की बात हो रही हो, फ़िल्मों की बात हो रही हो तो अनेकानेक फ़िल्मों के दृष्य आँखों के सामने झिलमिलाने लगते हैं. फ़िल्मों में बरसाती गीतों की फ़ेहरिस्त काफ़ी लंबी है. फ़िर भी हम कुछ सदाबहार फ़िल्मों का यहाँ उल्लेख करते चलें।
फ़िल्म रतन का गीत-“सावन के बादलों” -जबरदस्त हिट हुआ, फ़िल्म गुरु का गीत” बरसो रे मेघा बरसों”. बरसात की बात चल रही हो तो फ़िल्म “बरसात” को कैसे भूला जा सकता है. उसका एक सीन बड़ा पापुलर हुआ जिसमें राज साहब और नरगिस झमाझम होती बारिश में छाते के नीचे खड़े हैं और गीत गा रहे है..”.हम से मिले तुम सजन-“. अमिताभ बच्चन-राखी अभिनीत- बरसात की एक रात, भारत भूषण-मधुबाला की फ़िल्म “बरसात, गोविल-जरीन वहाव अभिनीत-“सावन को आने दो: परख– ओ सजना बरखा बहार आई, रस का फ़ुवार लाई, कालाबाजार—रिमझिम के तराने ले कर आई बरसात, सुजाता=काली घटा छाए”, चलती का नाम गाड़ी-“एक लड़की भीगी भागी-सी”,फ़िल्म चिराग-“छाई बरखा बहार, पड़े अंगना में फ़ुहार, फ़िल्म दो आँखें बारह हाथ– उमड़ घुमड़ घिर आई से घटा”,फ़िल्म धरती कहे पुकार के “जारे कारे बदरा बलम के द्वार”, फ़िल्म मिलन-“ सावन का महिना, पवन करे शोर”, फ़िल्म अनजाना-“भीगी भीगी रातों में, फ़िल्म दो रास्ते-“ छुप गए सारे नजारे ओए क्या बात हो गई”, फ़िल्म मेरा गांव मेरा देश-“ कुछ कहता है सावन”, फ़िल्म आया सावन झूम के-“ बदरा छाए झूले पड़ गए”, फ़िल्म शर्मीली-“ मेघा छाए आधी रात बैरन बन गई निंदिया”, फ़िल्म गाइड-“ अल्लाह मेघ दे पानी दे”, फ़िल्म मंजिल-“ रिमझिम गिरे सावन”, फ़िल्म जुर्माना-“ सावन के झूले पड़े”, फ़िल्म अजनवी-“ भीगी भीगी रातों में”, बेताब फ़िल्म का गीत-“ बादल यों गरजता है”, फ़िल्म १९४२ ए लव स्टोरी-“ रिमझिम रिमझिम रुमझुन-रुमझुम”, फ़िल्म किनारा-“ अबके न सावन बरसे”, आशीर्वाद फ़िल्म से” झिर झिर बरसे सावलीं अखिंया”,, नमकीन फ़िल्म से-“ फ़िर से अइयो बदरा बिदेसी”, फ़िल्म शोर-“ पानी रे पानी”, फ़िल्म प्यासा सावन-“ मेघा रे मेघा”, फ़िल्म लगान-“ घनन घनन घन गरजत”, फ़िल्म बरसात की रात-“ गरजत बरसत सावन आये रे”, जुर्माना फ़िल्म का गीत-“ सावन के झूले पड़े तुम चले आओ”, सावन के नाम से भी अनेके फ़िल्में बनी.जैसे-आया सावन झूम के, सावन को आने दो, प्यासा सावन आदि।
पिछले चार-पांच दिनों से बारिश हो रही है लगातार. बादल न तो हड़बड़ी में है और न ही सुस्त-आलसी बने हुए हैं बल्कि हल्की-हल्की फ़ुवार चल रही है..टापुर-टपुर-टिपिर-टिपिर. मैंने कंप्युटर में बरसात पर लिखे गए गानों की सीरीज खोज निकाली है और आराम कुर्सी में धंसा, बारी-बारी से उन तमाम गीतों को मगन होकर सुन रहा हूँ. बाहर अब भी बारिश हो रही है टिपिर-टिपिर-टापुर-टापुर. क्या आप अब तक इन सदाबहार गीतों को सुनने का, उसमें भींगने का मन नहीं बना पाए हों, तो कब बना पाएगें ?