Shri Ram in Hindi cinema, TV and OTT

भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों, परंपराओं और संस्कारों में बल्कि हम भारतीयों के हृदयस्थल और रोम-रोम में श्रीराम विराजते हैं, फिर भी आम जन प्रायः यह मानता है कि सिनेमा जैसा अपेक्षाकृत आधुनिक माध्यम पूर्णतः पाश्चात्य रंग में रँगा हुआ है और भारतीय संस्कृति में बसने वाले श्रीराम की कथा मंदाकिनी का चित्रण प्रायः इसमें कम हुआ है और यदि हुआ भी है, तो ऐसी फिल्मों को सीमित अथवा अत्यल्प मात्रा में ही सफलता मिल पाई है, लेकिन यदि हम विगत 110 वर्षों के भारतीय सिनेमाई इतिहास, विशेषकर हिंदी सिनेमा की ओर देखें तो सच्चाई इसके ठीक विपरीत दिखाई पड़ती है| आइए, इसका विहंगावलोकन करते हैं|

भारतीय सिनेमा के प्रारंभ से पूर्व हिंदी नाटक मंचित हुआ करते थे, जिनमें आगा हश्र कश्मीरी (1879-1935) और नारायण प्रसाद बेताब (1872-1945) के पारसी नाटकों के अनुकरण पर लिखे गए भारतीय कथाओं पर आधारित नाटक प्रमुख हुआ करते थे| आगा हश्र कश्मीरी ने ‘सीता वनवास’, ‘भगीरथ गंगा’, ‘लव कुश’ और ‘श्रवण कुमार’ तथा नारायण ‘प्रसाद ‘बेताब’ ने ‘रामायण’ नाटक लिखे थे, जो रामकथा से किसी न किसी स्तर पर सम्बद्ध थे और ये सभी अत्यंत सफल हुए थे|
जहाँ तक सिनेमा का प्रश्न है तो भारतीय सिने जगत की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’, थी, जिसके नायक महाराज हरिश्चंद्र भगवान राम के पूर्वज थे और कहने की आवश्यकता नहीं कि इस फिल्म ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त कर सिनेमा को मनोरंजन का सशक्त माध्यम बनाने की दिशा में अहम भूमिका निभाई थी| इस अवाक फिल्म की सफलता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय के मशहूर वार्नर ब्रदर्स ने सम्पूर्ण विश्व में रिलीज करने के लिए राजा हरिश्चंद्र फिल्म के 200 प्रिन्ट दादा साहब फाल्के से खरीदने का प्रस्ताव दिया था, जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया था, किन्तु यह प्रस्ताव दुर्भाग्यवश कार्यरूप में परिणत न हो सका| इससे भी दुखद बात यह हुई कि राजा हरिश्चंद्र फिल्म के प्रिन्ट नष्ट हो गए| इसके बाद दादा साहब फाल्के ने इसी फिल्म को सन 1917 में ‘सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र’ के नाम से पुनः परदे पर प्रस्तुत किया और यह फिल्म भी सफल रही| इसके बाद दादा साहब फाल्के इसी वर्ष ‘लंका दहन’ फिल्म लेकर आए, जिसे भारतीय सिनेमा की पहली राम कथा पर आधारित फिल्म माना जाना चाहिए| इस फिल्म की सफलता की कहानी इस बात से समझनी चाहिए कि चूंकि पहली बार भारत की धर्मप्राण जनता ने अपने आराध्य प्रभु राम, उनकी भार्या सीता और अनुज लक्ष्मण तथा सेवक हनुमान को फिल्मी परदे पर चलते-फिरते देखा था, इसलिए जनता इस फिल्म को देखने के लिए बेचैन थी और प्रायः सभी सिनेमा हॉल हाउसफुल हो गए थे| इस फिल्म के टिकट हासिल करने के लिए कई स्थानों पर दर्शकों में परस्पर लड़ाई हो गई थी और मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा घर में कई बार टॉस से इस बात का फैसला होता था कि इस फिल्म का टिकट किस दर्शक को मिलेगा| इसकी भारी-भरकम कमाई का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि पहली बार किसी फिल्म की कमाई को ढोने के लिए बैलगाड़ी का प्रयोग करना पड़ा था और हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सन 1931 से पहले अवाक या मूक फिल्में बन रही थीं, जिन्हें मराठी या उर्दू अथवा हिन्दुस्तानी के कलाकारों द्वारा सिनेमा हॉल में जाकर संगीत और संवाद से सजाया जाता था|
इसके तीन वर्ष पश्चात दादा साहब फाल्के 1920 में ‘सीता स्वयंवर’ फिल्म लेकर आते हैं और सन 1921 में जी.वी. साने की रामकथा पर आधारित तीन फिल्में ‘राम जन्म’, ‘सती सुलोचना’ और ‘वाल्मीकि’ प्रदर्शित होती हैं और तीनों ही सफलता का स्वाद चखती हैं| सन 1923 में दादा साहब फाल्के द्वारा निर्देशित फिल्म ‘राम मारुति युद्ध’ प्रदर्शित होती है | अगले वर्ष 1924 में वे ‘सीता शुद्धि’ और सन 1926 में एक साथ तीन रामकथा आधारित फिल्मों ‘राम राज्य विजय’ ‘धनुर्भंग’ और एवं ‘जानकी स्वयंवर’ एवं सन 1927 में ‘हनुमान जन्म’ और सन 1928 में ‘परशुराम’ फिल्म का निर्माण करते हैं और ये सभी पुनः सफल होती हैं|
सन 1930 में बाबूराव पेंटर द्वारा निर्देशित फिल्म ‘लंका’ प्रदर्शित होती है, अगले वर्ष 1931 से सवाक फिल्मों का दौर शुरू हो जाता है, इस वर्ष कांजीभाई राठौर निर्देशित फिल्म ‘हरिश्चंद्र’ और जे.जे. मदान की ‘सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र’ प्रदर्शित होती हैं और दर्शकों को लुभाने में सफल होती हैं| इसके बाद अगले वर्ष सन 1932 में एक फिल्म आती है, जिसे हिंदी में ‘अयोध्या का राजा’ और मराठी में ‘अयोध्येचा राजा’ नाम से प्रदर्शित किया जाता है| अपने समय की सुविख्यात प्रभात फिल्म्स कंपनी की यह पहली फिल्म थी| यह भारत की पहली ऐसी फिल्म थी, जिसे दो भाषाओं में एक साथ प्रदर्शित किया गया था| मशहूर फिल्म निर्देशक वी. शांताराम की भी यह पहली निर्देशित फिल्म थी| इस फिल्म ने हिंदी और मराठी फिल्मों के दर्शकों के दिलों पर बरसों तक राज किया| देवकी बोस द्वारा सन 1933 में निर्देशित फिल्म ‘रामायण’ और उनके द्वारा निर्देशित अगले वर्ष 1934 में प्रदर्शित ‘सीता’ में पृथ्वीराज कपूर ने राम की भूमिका निभाई थी| सीता भारत की पहली ऐसी फिल्म थी, जिसे द्वितीय वेनिस फिल्म समारोह’ में प्रदर्शित करने के लिए चयनित किया गया था और इस फिल्म के राम अर्थात पृथ्वीराज कपूर तथा सीता अर्थात दुर्गा खोटे के अभिनय की विश्व भर में भूरि-भूरि सराहना हुई थी और निर्देशक देवकी बोस को इस फिल्म के लिए वेनिस फिल्म समारोह की जूरी द्वारा ऑनरेरी डिप्लोमा से पुरस्कृत किया गया था| सन 1936 में अहमद ईसा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘सीता हरण’ में महजबीं ने सीता की भूमिका निभाई थी, जिसे दर्शकों ने मिश्रित प्रतिक्रिया दी थी|
रामकथा आधारित फिल्मों की यात्रा में एक नया और महत्त्वपूर्ण मोड़ तब आता है, जब सन 1942 में फिल्म निर्देशक विजयभट्ट ‘भरत मिलाप’ फिल्म लेकर आते हैं और इस फिल्म से हिंदी सिनेमा को चित्रपट के पहले राम के रूप में प्रेम अदीब तथा सीता के रूप में शोभना समर्थ मिलते हैं| विजय भट्ट अगले वर्ष 1943 में इसी जोड़ी के साथ ‘राम राज्य’ एवं 1948 में ‘रामबाण’ फिल्म लेकर आते हैं| इन तीनों फिल्मों ने हिंदी चित्रपट के इतिहास में नई कड़ी जोड़ने का काम किया| उस समय शोभना समर्थ और प्रेम अदीब के सीता राम स्वरूप के कैलेंडर घर-घर दिखाई देते थे, बाद में यही कारनामा सन 1987 में आए रामानंद सागर के टीवी धारावाहिक ‘रामायण’ के माध्यम से दीपिका चिखलिया और अरुण गोविल ने भी दोहराया| विजय भट्ट की यह विशेषता थी कि उन्होंने अपनी फिल्मों में वाल्मीकि विरचित रामायण से प्रसंग लेकर उन्हें अत्यंत प्रभावशाली ढंग से परदे पर उतारने का काम किया और यही कारण है कि उनके द्वारा बनाई गई सभी रामकथा आधारित फिल्में अत्यधिक सफल रहीं| सन 1943 में आई फिल्म ‘रामराज्य’ उस वर्ष की तीसरी सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म थी| इस फिल्म के लिए दर्शकों की दीवानगी का यह आलम था कि बैलगाड़ियों में भर-भरकर दर्शक इस फिल्म को देखने जाते थे, परदे पर फूल-मालाएँ और दक्षिणा चढ़ाते थे तथा भावुक एवं मार्मिक प्रसंग आने पर आँसू बहाते थे| उस दौर में इस फिल्म ने साठ लाख का कारोबार किया था, जो बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी| स्वतंत्रता पूर्व युग में दादा साहब फाल्के, बाबू भाई मिस्त्री और विजय भट्ट रामकथा के सिने प्रस्तोता कहे जा सकते हैं|
सन 1946 में ‘सती सीता’ और ‘श्रवण कुमार’ तथा सन 1947 में पृथ्वीराज कपूर अभिनीत ‘परशुराम’ फिल्में प्रदर्शित होती हैं, किन्तु इन्हें अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं होती| सन 1948 में होमी वाडिया ‘रामभक्त हनुमान’ फिल्म निर्देशित करते हैं, जिसमें एस.एन. त्रिपाठी ने हनुमान की भूमिका निभाई थी और इस फिल्म का संगीत भी दिया था, इस फिल्म से एस.एन. त्रिपाठी के रूप में हिंदी फिल्म जगत को रामकथा का नया प्रस्तोता मिलने वाला था| इस फिल्म के सभी गीत अत्यधिक लोकप्रिय हुए थे, जिनमें कुछ को लोग आज भी गुनगुनाते हैं, जैसे- ‘आई बसंत ऋतु आई’, ‘बीत चली बरखा ऋतु सीते’| इसके पश्चात सन 1954 में विजय भट्ट अपनी महत्त्वकांक्षी फिल्म ‘रामायण’ लेकर आते हैं, जिसमें वे प्रेम अदीब और शोभना समर्थ की जोड़ी को पुनः राम-सीता के रूप में परदे पर पेश करते हैं किन्तु फिल्म को सीमित सफलता मिलती है| सन 1956 में प्रदर्शित ‘अयोध्यापति’ फिल्म आती है| इसी वर्ष विजय भट्ट बच्चों के लिए ‘बाल रामायण’ प्रस्तुत करते हैं, जो बच्चों के लिए बनी पहली रामकथा आधारित फिल्म थी, तत्पश्चात 1967 में वे एक बार पुनः ‘राम राज्य’ फिल्म बनाकर बीना राय और कुमार सेन की जोड़ी को प्रस्तुत करते हैं, किन्तु इसके सफल न होने के बाद वे आगे अन्य विषयों को प्रस्तुत करने लगते हैं|
अगले वर्ष सन 1957 में हनुमान पर आधारित दो फिल्में बाबू भाई मिस्त्री की ‘पवनपुत्र हनुमान’ और एस.एन. त्रिपाठी की ‘राम हनुमान युद्ध’ तथा पौराणिक फिल्मों के लिए विख्यात हिंदी-मराठी अभिनेता शाहू मोदक अभिनीत ‘राम लक्ष्मण’ प्रदर्शित होती हैं| राम हनुमान युद्ध अपनी नवीन कथा शैली के कारण ध्यान आकृष्ट करने में सफल होती है|
रामकथा की दृष्टि से ‘सम्पूर्ण रामायण’ फिल्म को मील का महत्त्वपूर्ण पत्थर माना जाना चाहिए, जो सन 1961 में प्रदर्शित हुई थी| बाबूभाई मिस्त्री निर्देशित इस फिल्म में अनिता गुहा और महिपाल ने क्रमशः सीता और राम की भूमिका निभाई थी तथा सुलोचना ने कैकेयी, ललिता पवार ने मंथरा और हेलन ने शूर्पणखा का अभिनय किया था| इस फिल्म में बाबू भी मिस्त्री ने स्पेशल इफेक्ट के बेहतरीन प्रयोग से राम कथा को अत्यंत प्रभावमय बना दिया था| सम्पूर्ण रामायण के कुछ सेमी क्लासिकल गीत आज भी लोकप्रिय हैं, जैसे- सन सनन सनन, जा रे ओ पवन और बादलों बरसों नैनों की ओर से| बाद में सन 1981 में गिरीश मनुकांत ने इसका पुनर्निर्माण किया| सन 1965 में मणिभाई व्यास पृथ्वीराज कपूर, वनमाला, राजकुमार और निरूपा रॉय को साथ लेकर ‘श्रीराम भरत मिलाप’ फिल्म निर्देशित करते हैं, किन्तु इतने सितारों से सजी होने के बावजूद यह फिल्म कमाल नहीं दिखा पाती क्योंकि इस फिल्म का प्रस्तुतीकरण रामकथा की भव्यता के अनुरूप नहीं था| सन 1974 में एक बर फिर बाबू भाई मिस्त्री ‘हनुमान विजय’ नामक फिल्म लेकर आते हैं, जिसमें बंगाली अभिनेता आशीष कुमार राम, मशहूर पहलवान हरक्युलिस हनुमान और अभिनेता राजकुमार लक्ष्मण की भूमिका निभाते हैं, किन्तु असंगत पात्र चयन के कारण इसे सफलता नहीं मिलती| सन 1976 में निर्देशक चंद्रकांत द्वारा निर्देशित फिल्म ‘बजरंगबली’ परदे पर आती है, जिसमे विश्वजीत राम, मौसमी चटर्जी सीता की भूमिका में तथा पहली बार दारा सिंह हनुमान की भूमिका में नज़र आते हैं| अगले वर्ष सन 1977 में ‘सीताराम वनवास’ फिल्म में जयाप्रदा सीता माँ के रूप में दिखती हैं, किन्तु तेलुगु से डब होने के कारण यह फिल्म हिंदी दर्शकों को प्रभावित नहीं करती| सन 1979 में बंगाली अभिनेता आशीष कुमार निर्देशित तथा आशीष कुमार और ललित पवार अभिनीत ‘राजा हरिश्चंद्र’ फिल्म आती है, किन्तु इसे भी अपेक्षित सफलता नहीं मिलती| सन 1981 में प्रखर हनुमान भक्त बाबूभाई मिस्त्री निर्देशित फिल्म ‘महाबली हनुमान’ आती है,जिसे अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाती क्योंकि तब तक शायद अमिताभ बच्चन का एंग्री यंग मैन स्वरूप लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा था|
सन 1984 में एक रोचक फिल्म आई थी, जिसका नाम ‘रावण’ था, इसमें स्मिता पाटिल ने एक ऐसी ग्रामीण महिला की भूमिका निभाई थी, जो रावण की भांति खल और क्रूर व्यक्ति को राम में परिवर्तित कर देती है| सन 1987 में बाबू भाई मिस्त्री निर्देशित, फिल्म अभिनेता, निर्देशक मनोज कुमार की फिल्म ‘कलयुग और रामायण’ प्रदर्शित होती है, जिसका पहले नाम ‘कलयुग की रामायण’ रखा गया था, किन्तु विवाद होने पर इसका नाम बदलकर कलयुग और रामायण किया गया और अनेक दृश्यों को काटकर यह फिल्म प्रदर्शित की गई| दावा किया गया था कि यह फिल्म वाल्मीकि कृत ‘रामायण’ का आधुनिक रूपांतरण है, किन्तु फिल्म में आधुनिक हनुमान बने मनोज कुमार कहीं से भी वाल्मीकि रामायण की कथा का प्रतिनिधित्व नहीं करते|
इसी वर्ष 25 जनवरी 1987 से दूरदर्शन पर रामानंद सागर का धारावाहिक ‘रामायण’ प्रसारित होना प्रारंभ होता है, जिसे बनाने की प्रेरणा रामानंद सागर को लगभग 12 वर्ष पहले अमेरिका में पहली बार टीवी देखकर मिली थी| यह धारावाहिक लोकप्रियता के शिखर को स्पर्श करने में सफल रहता है और इसकी लोकप्रियता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि विदेशों में भी इसके प्रसारित होने के समय लोग टीवी से चिपककर बैठ जाया करते थे| वाल्मीकि रामायण तथा विश्व की सभी प्रमुख राम कथाओं का आधार लेकर अत्यंत परिश्रम से निर्मित छोटे परदे की इस राम कहानी के अत्यधिक प्रभावशाली होने का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि इसके विषय में प्रतिदिन रामानंद सागर के पास लाखों पत्र देश-विदेश से आया करते थे और उन्हें प्रत्येक एपिसोड के अंत में स्वयं टीवी पर आकर कुछ प्रश्नों के उत्तर देने पड़ते थे| यह कहना भी अनुचित न होगा कि टीवी के दर्शकों में अभूतपूर्व वृद्धि का श्रेय रामायण धारावाहिक को दिया जाना चाहिए| रामायण के सीता, राम, हनुमान, रावण क्रमशः दीपिका चिखलिया, अरुण गोविल, दारा सिंह और अरविन्द त्रिवेदी एवं अन्य सभी पात्रों ने सफलता का जो स्वाद चखा, उसका जादू आज भी बरकरार है| इस धारावाहिक की असीम लोकप्रियता और दर्शकों की माँग के आगे झुकते हुए रामानंद सागर ने ‘उत्तर रामायण’ का भी निर्माण किया और इस धारावाहिक को भी अपार लोकप्रियता और दर्शकों का असीम प्यार मिला|
सन 1992 में जापानी फिल्म निर्माता युगो साको ने रामायण के दस भिन्न-भिन्न संस्करणों का आधार लेकर ‘रामायण : द लेजेंड ऑफ प्रिंस राम’ का एनिमेशन स्वरूप में फिल्मांकन किया, जिसके अंतरराष्ट्रीय वॉयस ओवर में राम को ब्रायन कैन्सटन/निखिल कपूर और हिन्दी संस्करण में अरुण गोविल ने आवाज़ दी| इस फिल्म के लिए युगो साको ने कहा था कि वह भगवान राम की पावन गाथा को धरती के समस्त लोगों को दिखाने के लिए ही इस फिल्म को बना रहे हैं| कोइची ससाकी और राम मोहन के निर्देशन में नब्बे करोड़ येन में दस साल में बनकर तैयार होने वाली इस फिल्म को सीमित सफलता मिलने के बावजूद आज यह फिल्म विश्व सिनेमा में क्लासिक फिल्म का दर्जा रखती है|
सन 1997 में उत्तर रामायण का आधार लेकर वी. मधुसूदन राव के निर्देशन में ‘लव कुश’ फिल्म प्रदर्शित होती है, जिसमे जितेंद्र राम, अरुण गोविल लक्ष्मण, जयाप्रदा सीता, दारा सिंह हनुमान और प्राण वाल्मीकि की भूमिका में थे| इस फिल्म की दिक्कत यह थी कि दर्शक जंपिंग जैक और खिलंदड़ छवि के अभिनेता जितेंद्र को ढलती उम्र में राम के धीर-गंभीर एवं चिरयुवा रूप से नहीं जोड़ पा रहे थे और जिन दर्शकों ने दस वर्ष पहले अरुण गोविल को राम के रूप में सर-आँखों पर बैठाया था, वे उन्हें लक्ष्मण के रूप में भला कैसे स्वीकार करते? अतः असफल होना इसकी स्वाभाविक नियति थी|
इस संदर्भ में सन 2004 में आई मणिरत्नम की फिल्म ‘रुद्राक्ष’ की चर्चा किया जाना अनावश्यक न होगा, जिसमें राम भक्त हनुमान के बल तथा राक्षसराज रावण की असीमित शक्तियों की कथा को आधुनिक संदर्भों से जोड़ने का प्रयास किया गया था, किन्तु हनुमान भक्त के रूप में संजय दत्त तथा रावण के प्रतीक के रूप में सुनील शेट्टी को दर्शकों द्वारा स्वीकार न किए जाने के करण एक अच्छी कहानी पर निर्मित यह फिल्म सफल न हो सकी|
अगले वर्ष अर्थात सन 2005 में परसेप्ट पिक्चर कंपनी के बैनर तले वी.जी. सावंत के निर्देशन में ‘हनुमान’ नामक एनीमेशन फिल्म प्रदर्शित हुई, जिसे हिंदी और तेलुगु भाषाओं में एक साथ प्रदर्शित किया गया| इस फिल्म के हिंदी संस्करण में मुकेश खन्ना और तेलुगु संस्करण में चिरंजीवी ने हनुमान के पात्र को आवाज़ दी थी| इस फिल्म की बच्चों के मध्य यापार लोकप्रियता को देखते हुए सन 2007 में ‘हनुमान रिटर्न्स’ नाम से इसका दूसरा भाग प्रदर्शित किया गया और यह भी प्रयोग भी सफल रहा| राम कथा एवं अन्य पौराणिक पात्रों पर आधारित एनिमेटेड फिल्मों की सफलता को देखते हुए सन 2010 को दशहरे के अवसर पर चेतन देसाई ‘रामायण : द एपिक’ नाम से एनिमेशन फिल्म लेकर आते हैं और यह फिल्म भी दर्शकों को पसंद आती है| इस फिल्म में मनोज बाजपेयी ने राम, जुही चावला ने सीता और आशुतोष राणा ने रावण की आवाज दी थी|
वर्ष 2012 में एक अन्य एनिमेशन आधारित थ्री डी फिल्म ‘संस ऑफ रामा’ के नाम से प्रदर्शित हुई थी, जिसे टोरंटो एनिमेशन आर्ट्स फेस्टिवल में प्रदर्शित किया गया था| अमर चित्र कथा कॉमिक्स के लेखकों अनंत पै और राम वईरकर द्वारा लिखित एवं कुशल रुइया द्वारा निर्देशित इस फिल्म में सीता को गायिका सुनिधि चौहान आवाज़ देती हैं| यह फिल्म बच्चों में सीमित प्रभाव छोड़ने में सफल रहती है| सन 2017 में एनिमेशन फिल्मों की शृंखला में रुचि नारायण द्वारा निर्देशित ‘हनुमान : द दमदार’ फिल्म प्रदर्शित होती है, जिसमें सलमान खान हनुमान, रवीना टंडन माता अंजनी और जावेद अख्तर महर्षि वाल्मीकि को आवाज देते हैं, किन्तु यह फिल्म अधिक सफल नहीं हो पाती|
वर्ष 2019 में फिल्म निर्देशक सनोज मिश्रा की फिल्म ‘राम की जन्मभूमि’ प्रदर्शित होती है, जिसके निर्माता जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी उर्फ वसीम रिजवी थे| यह फिल्म राम जन्मभूमि आंदोलन की पृष्ठभूमि में आगे बढ़ती है| इस फिल्म पर काफी विवाद पैदा किया गया था और कुछ लोग इसकी रिलीज रुकवाने के लिए उच्चतम न्यायालय तक गए थे, किन्तु उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद यह फिल्म प्रदर्शित हो सकी थी| वर्ष 2022 में फिल्म निर्देशक अभिषेक शर्मा ‘रामसेतु’ फिल्म लेकर आते हैं, जिसमें अक्षय कुमार और जैकलीन फर्नांडीज़ प्रमुख भूमिका में होते हैं| यह फिल्म रामसेतु की पुरातनता और प्रामाणिकता को जनता के सामने रखती है| यह फिल्म इस वर्ष की दस सर्वाधिक कमाई करने वाली फिल्मों में शामिल थी और व्यावसायिक रूप से अत्यंत सफल फिल्म थी|
वर्ष 2023 में प्रभास, सैफ अली खान तथा कृति सैनन की बहु प्रतीक्षित राम कथा आधारित फिल्म ‘आदिपुरुष’ प्रदर्शित हुई| इसे हिंदी और तेलुगु में प्रदर्शित किया गया, किन्तु इस फिल्म के ट्रीटमेंट और हिंदी के संवादों द्वारा राम कथा की पावनता को धूमिल करने के आरोप लगे और फिल्म के पात्रों की वेश-भूषा पर भी सवाल खड़े किए गए, इस कारण यह फिल्म रिलीज होते ही चमक खो बैठी, किन्तु फिर भी यह फिल्म अब तक वर्ष 2023 की सातवीं सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म बनी हुई है|
टीवी चैनलों में दूरदर्शन पर ‘रामायण’ और ‘उत्तर रामायण’ के अतिरिक्त दूरदर्शन पर संजय खान का टीवी धारावाहिक ‘जय हनुमान’ सन 1997 से सन 2000 तक प्रसारित हुआ और अत्यंत यह लोकप्रिय हुआ| वर्ष 2006 में ज़ी टीवी पर ‘रावण’ धारावाहिक आया, जो 1000 से अधिक एपिसोड तक निर्बाध रूप से सफलतापूर्वक दिखाया गया| वर्ष 2011 में सहारा वन पर ‘जय जय बजरंगबली’ धारावाहिक आया, जो आंशिक रूप से सफल रहा| लाइफ ओके टीवी चैनल पर अजय देवगन वर्ष 2012 में ‘राम लीला’ धारावाहिक लेकर आए, किन्तु यह धारावाहिक अनेक सितारों की आवाज से सज्जित होने के बावजूद सफल नहीं हो सका| वर्ष 2012 में दूरदर्शन पर ‘संकटमोचन जय हनुमान’ और वर्ष 2019 में कलर्स टीवी चैनल पर ‘राम सिया के लव कुश’ टीवी धारावाहिक प्रसारित हुए, ये दोनों धारावाहिक कमोबेश सफल सिद्ध हुए| इसके अतिरिक्त सोनी टीवी पर ‘संकट मोचन जय हनुमान’ वर्ष 2015 से 2017 तक प्रसारित हुआ, वर्ष 2015-16 में ‘सिया के राम’ टीवी धारावाहिक स्टार प्लस पर प्रसारित किया गया| ये दोनों धारावाहिक भी आंशिक रूप से सफल सिद्ध हुए| उपरिवर्णित फिल्में और धारावाहिक वीडियो कैसेट के रूप में, विभिन्न टीवी चैनलों पर, यूट्यूब पर तथा अनेक ओटीटी एवं सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों पर आज उपलब्ध हैं| कोरोना के दौर में दूरदर्शन ने रामायण धारावाहिक का लगभग 33 वर्ष बाद पुनः प्रसारण किया था और देशव्यापी लॉक डाउन के दौरान भारत की धर्मप्रेमी जनता ने उस समय भी इसे पलक पाँवड़ों पर बिठाकर देखा था| अभी हाल ही में डिज़्नी प्लस हॉट स्टार पर ‘हनुमान’ की दो शृंखलाओं के सफल प्रसारण के बाद तीसरा सीजन आ रहा है और ‘हनुमान’ फिल्म का टीज़र जारी हुआ है, जो 12 जनवरी, 2024 को सिनेमा घरों में प्रदर्शित होगी|
उपर्युक्त विवेचना से स्वतः स्पष्ट है कि हिंदी मनोरंजन जगत में राम कथा का महत्त्व कभी भी कम नहीं हुआ है, अपितु समय बढ़ने के साथ इसमें अभिवृद्धि हो रही है| राम की कथा ऐसी ही है, जो समय बीतने के साथ नए स्वरूप में हमारे सामने आती है और हम दर्शक श्रद्धापूर्वक इस पुनीत कथा का श्रवण दर्शन कर धन्य होते हैं| (साभार: साहित्य अमृत)
जय सियाराम

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