प्रसिद्ध चिंतक और लोकधर्मी आलोचक प्रोफेसर चौथीराम यादव के स्मृति में आज एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन रवींद्रपुरी स्थित आचार्य रामचंद्र शुक्ला शोध संस्थान में किया गया जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ दलित साहित्यकार श्री जवाहरलाल कौल ‘व्यग्र’ ने किया। शोक सभा में सबसे पहले प्रसिद्ध कथाकार काशीनाथ सिंह के संदेश का वचन संदेश का वचन किया गया। कथाकार काशीनाथ सिंह अस्वस्थता के कारण स्वयं उपस्थित नहीं हो सके थे। उन्होंने अपने शोक संदेश में कहा कि चौथीराम जी मेरे जीवन के ही नहीं मेरे परिवार के अभिन्न अंग रहे हैं। वे आरंभ से से रिटायरमेंट तक हुए शुद्ध रूप से एक आदर्श और लोकप्रिय अध्यापक थे। उन्हें मैंने धीरे धीरे समकालीन साहित्य से जोड़ना शुरू किया। काशीनाथ सिंह ने अपने संदेश में आगे कहा कि चौथीराम यादव के जीवन का टर्निंग प्वाइंट नामवर जी की पुस्तक ‘दूसरी परंपरा की खोज’ है। उसके साथ ही हरियाणा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पर लिखित पुस्तक से वास्तव में उनका आलोचकीय जीवन शुरू हुआ। काशीनाथ सिंह ने अपने संदेश में आगे यह भी कहा कि रिटायरमेंट के बाद वे दलित साहित्य के सबसे बड़े विचारक और समीक्षक के रूप में मान्य हुए। वे मुझसे छोटे तो चार वर्ष ही थे लेकिन बड़े कई वर्ष थे। उन्हें खोकर मैंने क्या खोया है इसे सिर्फ मैं ही जानता हूँ, दूसरा कोई नहीं जान सकता।
इस शोकसभा में बोलते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर वशिष्ठ अनूप ने कहा कि इस समय में लगातार काम कर रहे थे। विभाग में उनके द्वारा शुरू किए गए कामों से हम प्रेरणा लेते हैं। वे विभागों में विद्यार्थियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय थे। प्रोफेसर अवधेश प्रधान ने कहा कि प्रो. चौथीराम यादव जहां एक ओर आलोचना के क्षेत्र में लोक धर्मी संस्कृति विवेचन करते हैं वहीं दूसरी ओर सामाजिक मुद्दों पर भी बढ़-चढ़कर हस्तक्षेप करते हैं जो अनुकरणीय है।
शोक सभा में बोलते हुए प्रो. बलिराज पांडेय ने कहा कि यादव जी हिंदी साहित्य में काशीराम थे। अवकाश प्राप्ति के बाद उनकी साहित्यिक प्रतिभा में विस्फोट हुआ और उन्होंने दलित चिंतन को केंद्र में रखकर जो काम किया वह विशाल जन समुदाय को दूर तक प्रभावित करता है। इस शोकसभा में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ हिंदी भाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर श्रद्धानंद ने कहा कि चौथी रामयादव जी की राजनीतिक सूझबूझ नामवर जी से संपर्क में आने के बाद विकसित होती है। वे हाशिए के समाज को अपने चिंतन और लेखन के केंद्र में रखकर चलते थे। अपनी बात कहते समय वे यह नहीं देखते थे कि सामने कौन उपस्थित है। जनवादी लेखक संघ के डॉक्टर एम. पी. सिंह ने कहा कि चौथीराम जी का जाना बनारस से एक बहुत बड़े आंदोलनधर्मी व्यक्ति का जाना है। वे किसानों, छात्रों, महिलाओं और लेखकों के सवाल पर हुए आंदोलनों में सबसे आगे रहते थे। इस शोकसभा में प्रोफेसर शाहीना रिजवी ने कहा कि प्रोफेसर चौथीराम यादव जितने बड़े साहित्यकार थे उतने ही बड़े एक्टिविस्ट भी थे। कामरेड वी.के. सिंह ने कहा कि चौथीराम यादव के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यह होगी कि उनके द्वारा किए गए संघर्षो और उठाए गए विमर्शों से हम अपने समय के लिए रोशनी प्राप्त करें। वह श्रमशील जनता के योद्धा बनकर आगे आते हैं। इस शोक व्यक्त सभा में डॉक्टर गया सिंह ने कहा कि प्रोफेसर चौथीराम यादव दलित, शोषित और पिछड़ी जनता के प्रवक्ता के रूप में सामने आते हैं। इसीलिए वे उन सामंती साम्राज्यवादी ताकतों के प्रति बहुत कटु हो जाते थे जो दलित और पिछड़ों के जीवन की अमानवीय स्थितियों के लिए उत्तरदाई है। इस लोकसभा में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में दलित साहित्यकार श्री जवाहरलाल कौल व्यक्ति ने कहा कि चौथीराम यादव जी से मेरा एक लंबा साथ रहा। उन्होंने मेरी कृति ‘युगस्रष्टा’ की भूमिका लिखी थी। उन्होंने कभी भी अपनी विचारधारा से समझौता उन्होंने कभी नहीं किया, इसके लिए भले ही उन्हें कितने संकटों का सामना करना पड़ा हो।
आज की इस शोकसभा में डॉ. राम सुधार सिंह, प्रोफेसर आशीष त्रिपाठी, प्रोफेसर सदानंद शाही, प्रोफेसर श्रीप्रकाश शुक्ल, प्रो सदानंद शाही, प्रोफेसर राजकुमार, प्रोफेसर प्रकाश उदय, प्रोफेसर प्रमोद वागडे, प्रोफेसर मनोज कुमार सिंह, प्रो नीरज खरे, प्रोफेसर प्रभाकर सिंह, प्रोफेसर कमलेश वर्मा, डॉ. विवेक सिंह, श्री अशोक आनंद, डॉ. रामाज्ञा शशिधर, प्रोफेसर नरेंद्र नारायण राय, डॉक्टर शैलेंद्र सिंह, प्रोफेसर रामाश्रय, कुसुम वर्मा, डॉ. वंदना चौबे, श्री मनीष शर्मा, डॉ. विंध्याचल, कृपा वर्मा, राहुल वर्मा, साहिल, विनय सहित बड़ी संख्या में विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि और छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर गोरखनाथ ने किया। शोक सभा के अंत में दो मिनट का मौन रखा गया।