हमारा देश धर्मप्राण देश रहा है। आध्यात्मिक ऊर्जा यहां के कण-कण में समाविष्ट है। यहां के व्रत-नियमों का सम्बन्ध अध्यात्मदर्शन, देवदर्शन और निरामयता से जुड़ा हुआ है। इसलिए हमारे व्रत-उपवासों की सुदीर्घ परम्परा सदा से चली आयी है। वर्ष में कोई भी दिन ऎसा नहीं रहता जिस दिन कोई व्रत, उपवास, पूजन, हवन या पर्व-त्योहार न हो। हमारी संस्कृति की नींव इसी आधार पर टिकी है। यही कारण है कि जहाँ रोम, ग्रीक, मिस्त्र और बेबीलोन आदि जैसी प्राचीन सभ्यताएं और संस्कृति काल के प्रवाह में विलुप्त होती चली गयीं, वहीं भारत की संस्कृति अक्षुण्य बनी रही। यहाँ अनेक विदेशी आक्रमण हुए, शक, हूण, यवन आये, पठान और मुगल आये, पर वे सब यहाँ की मानवता के पारावार में घुल-मिलकर अपना अस्तित्व खो बैठे, भारतीय संस्कृति के महासागर में विलीन हो गये। शायद इसलिए कहा गया है जिनके दृदय में मंगलायतन भगवान हरि विध्यमान है, उनके लिए सदा उत्सव है-नित्य मंगल है।
नित्योत्सवो भवेत तेषां नित्यं नित्यं च मंगलम* येषां हृदिस्थो भगवान मंगलायतनं हरिः( पाण्डवगीता ४५)
पर्वों की कड़ी में एक पर्व “रक्षाबंधन” रिमझिम-रिममझिम बरसते सावन के सुहावने मौसम में आता है। श्रावण मास शुक्ल पूर्णिमा को रक्षाबन्धन का पर्व बड़ी धूमाधाम से मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहनों को समर्पित पर्व है। इस दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई में रक्षा सूत्र बांधती है और उनके दीर्घायु होने की कामना करती हैं।
अनादि काल से मनाते आ रहे इस त्योहार की एक कड़ी भविष्य पुराण में मिलती है। देव और दानवों के युद्ध में असुरों के प्रहार से घबराया हुआ इन्द्र किसी अलौकिक शक्ति की तलाश में गुरु ब्रह्स्पति के पास जाता है कि वह उनका वध कर सके। संयोग से वहाँ उसकी धर्मपत्नि इंद्राणी उपस्थित थी। उसने एक धागे को अभिमंत्रित कर इन्द्र की भुजा में बांध दी। मंत्र की शक्ति से आवष्ठित धागे के प्रभाव से वह विजयी हुआ। कहा जाता है कि उसी दिन से इस त्योहार को मनाने की शुरुआत हुई थी। इसी तरह स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावातार नामक कथा में एक रोचक प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है कि राजा बलि जो विश्वविजयी तो था ही,साथ ही वह महादानी भी था। श्री विष्णु ने वामन अवतार धारण कर राजा बलि से तीन पग धरती मांगी। राजा बलि के साथ छल किया जा रहा है, उअह जानते हुए उसके गुरु ने उसे ऎसा करने से मना भी किया लेकिन वह पीछे नहीं हटा और तीन पग धरती देने का विश्चय कर लिया। श्री विष्णु ने दो पग में सारा आकाश और धरती नाप ली और पूछा कि तीसरा पैर कहाँ रखे?। उसने तत्काल अपना मस्तक झुकाते हुए अपना पैर रखने का आग्राह किया। इस तरह राजा बलि को रसातल पहुँचा दिया गया। रसातल में जाने से पूर्व उसने वर मांगा कि श्री विष्णु उसके समक्ष चौबिसों पहर उपस्थित रहेगें। इस तरह श्री विष्णु वापस न लौट कर उसके सामने उपस्थित रहने लगे। भगवान को न आया देख उनकी पत्नि श्री लक्षमीजी रसातल गयीं और राजा बलि को अपना भाई बनाते हुए रक्षाबंधन बांध दिया। प्रसन्न होकर राजा बलि ने अपनी बहन से कुछ मांगने को कहा। उन्होंने श्री विष्णु को मांग लिया और राजा ने प्रसन्नता के साथ उन्हें जाने दिया। कहते हैं उस दिन श्रावण शुक्ल की पूर्णिमा थी। इस तरह यह त्योहार इस नक्षत्र में मनाने की पराम्परा विकसित हुई।
विश्व में शायद ही कोई ऎसी जगह है जहाँ इस त्योहार को न मनाया जाता हो। विश्व के विभिन्न देशों में रह रहे भारतवासी इस त्योहार को बड़े चाव और उत्साह के साथ मनाते हैं अतः कहा जा सकता है कि यह त्योहार विश्वयापी त्योहार है।
एक ऎसा त्योहार जिसमें उमंग हो, उत्साह हो, प्यार हो, समर्पण हो, जो सामाजिक समरसता का प्रतीक हो, जिसे हर घर में मनाया जा रहा हो, जो इस देश में ही नहीं वरन विश्व के हर कोने में पारम्परिक उत्साह के सथ मनाया जा रहा हो, फ़िल्म वालों की नजर से ओझल भला कैसे रह सकता था। उसने भी सिचुएशन देखते हुए उसे फ़िल्मों में स्थान दिया। स्वनाम धन्य गीतकारों ने एक से बढ़कर एक गीत लिखे, जो लोगों की जुबान पर चढ़कर बोले।
आकाशवाणी सबकी वाणी। उसने भी इन सदाबहार गीतों को प्रसारण का हिस्सा बनाया। चाहे वह रिमझिम के तराने गाती बरसात हो या सावन का महिना, जिसमें रक्षाबन्धन जैसा पवित्र त्योहार हो ,कैसे पीछॆ रह सकता था। वह भी इस बरसते सावन में राखी के बन्धन पर फ़िल्माए गानों की झड़ी सी लगा देता है, जिसे सुनकर मन प्रसन्नता से नाच उठत्रा है।
राखी पर फ़िल्माए गए सदाबहार गीतों पर एक नजर डालें और साथ में गुनगुनाते भी जाइए।
फ़िल्म रेशम की डोर में प्रख्यात गायिका लता मंगेशकर जी आत्माराम के निर्देशन में एक प्यारा सा गीत गया- बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है।( सुमन कल्याणपुर) फ़िल्म अनपढ़ मे लताजी ने ही इस गीत को गाया है—रंग-बिरंगी राखी लेकर आई बहना, राखी बंधवा लो मेरे वीर।(लता) फ़िल्म छोटी बहन में भैया मेरे रखी के बन्धन को न भुलाना।( लता) फ़िल्म बंदिनी में-अबके बरस भेज भैया को बाबुल में। फ़िल्म चंबक की कसम में –चंदा से मेरे भैया से कहना, बहना याद करे (लता), फ़िल्म दीदी मे-मेरे भैया को संदेसा पहुंचाना चंदा तेरी जोत जले।। फ़िल्म काजल में मेरे भैया, मेरे चंदा, मेरे अनमोल रतन, तेरे बदले मैं जमाने की कोई चीज न लूं( आशा भोंसले), हरे रामा, हरे कृष्णा में किशोर का गाया गीत है-फ़ूलों का तारों का सबका कहना है, एक हजारों में मेरी बहना है( किशोर कुमार), फ़िल्म बेईमान का गीत है-ये राखी बंधन है ऎसा।(मुकेश-लता)। बहना ने भाई की कलाई पर राखी बांधी है- फ़िल्म रेशम की डोर, फ़िल्म अनजाना –हम बहनों के लिए मेरे भैया,। नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए, राखी धागों का त्योहार (राखी), ( इन फ़िल्मी गानों की फ़ेहरिस्त काफ़ी लंबी है। बस इतना ही।)