वर्तमान युग में विज्ञापन हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। आज हमारी नज़र जहाँ-जहाँ भी जाती है वहाँ हमें विज्ञापन ही विज्ञापन नज़र आते हैं। सवेरे-सवेरे आँख खुलते ही गर्म-मा-गर्म चाय की चुस्की के साथ जब हम अखबार पढ़ने बैठते हैं, तो हमारा सबसे पहले ध्यान विज्ञापन पर ही जाता है। सड़क से लेकर रेडियों, टेलीविजन, सिनेमा के पर्दे, वाहनों और दीवारों तक हर जगह विज्ञापन ही विज्ञापन दिखाई देते हैं। कोई भी कोना ऐसा नहीं मिलेगा जहाँ विज्ञापन का प्रयोग न किया जा रहा हो। आज विज्ञापन हमारे जीवन का ऐसा अंग बन चुका है जिसके बिना रहना हम सब के लिए मुश्किल हो गया। यह हमारे सामाजिक, आर्थिक एवं व्यक्तिगत जीवन से पूरी तरह जुड़ चुके हैं। वर-वधू ढूँढ़ने से लेकर नौकरी, चुनाव और धर्म-प्रचार करने के लिए आज विज्ञापन का ही सहारा लिया जाता है। अतः वर्तमान युग को यदि हम ‘विज्ञान युग’ कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि विज्ञापन ने जीवन के आज हर छोर को छू लिया है और आज हर ओर इसकी ही गूँज सूनाई देती है। विज्ञापन अपने छोटे से संरचना में बहुत कुछ समाये होते हैं। बहुत कम बोलकर भी बहुत कुछ कह जाने की क्षमता विज्ञापन में है।
‘विज्ञापन’ दो शब्दों से मिलकर बना है वि+ज्ञापन। जिसमें वि का अर्थ है विशेष तथा ज्ञापन का अर्थ है सूचना या जानकारी देना अर्थात विशेष सूचना या जानकारी देना ही विज्ञापन है। विज्ञापन अंग्रेज़ी शब्द — “एडवरटाइजिंग का हिंदी पर्याय है, जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘एडवर्टर’ से हुई। अंग्रेज़ी में इसका अर्थ है, ‘टू टर्न टू’ अर्थात किसी ओर मुड़ना है। जब किसी वस्तु या सेवा के लिए इसका प्रयोग होता है, तो इसका मंतव्य लोगों को उस और आकृष्ट करना होता है। एक प्रकार से उसे सार्वजनिक सूचना की घोषणा भी बोल सकते हैं।”1
नेहा वर्मा के अनुसार अमेंरिकन जर्नल ‘एडवरटाइजिंग एज’ में इसकी परिभाषा इस तरह दी गई है, —“विज्ञापन एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा पहुँचाया जाने वाला संदेश व्यक्ति अथवा लोगों को प्रभावित करता है।”2
बेब्स्टर्न न्यूवर्ल्ड डिक्शनरी के अनुसार –“विज्ञापन जनसंपर्क का एकमात्र ऐसा शक्तिशाली साधन है, जिसके माध्यम से उत्पादित वस्तु के बारे में प्रभावी सूचना द्वारा उपभोक्ता के मन में विश्वास पैदा कर उसके क्रय हेतु उन्हें व्यापक पैमाने पर प्रेरित किया जाता है।”3
प्रत्येक व्यक्ति अपने विचार के अनुसार विज्ञापन की अलग-अलग परिभाषा देता है। विज्ञापन उपभोक्ता के लिए उसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए बाजार में उपलब्ध सामग्री की सूचना लेने का माध्यम है तो, उद्योगों के लिए अपने उत्पादन को बेचने और उसके सम्बंध में जानकारी एकत्रित करने का माध्यम है। एक घरेलू औरत के लिए यह पारिवारिक खरीदारी के बारे में जानकारी देने का माध्यम है। व्यापारी के लिए यह करोड़ों ग्राहकों से एक साथ बातचीत करने का माध्यम है और शिक्षा के क्षेत्र में यह जागरूकता फैलाने का माध्यम है। डॉ० तारेश भाटिया के शब्दों में, “वस्तुओं का बखान करना कोई चापलूसी नहीं, ग्राहकों को सुन्दर नयना-भिराम तथा चलचित्रित आकर्षक रंगों में छपी भाषा से मुग्ध करना धोखा नहीं, यह तो कला है। चित्रकार का कमाल छपखाने की, खूबी और प्रस्तुतीकरण का अनोखा निराला अनूठा ढंग है।”4 अधिकतर विज्ञापनों का उद्देश्य किसी वस्तु, सेवा या विचार को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाना और उस वस्तु को बढ़ावा देना होता है। इसे बाज़ार तक पहुँचने का ‘शार्ट-कट’ तरीका भी माना गया है।
औद्योगीकरण के इस युग में उत्पादन बढ़ने के कारण यह बहुत आवश्यक हो गया है कि उत्पादित वस्तुओं को न केवल जन-जन तक पहुँचाया जाए बल्कि उन्हें उस वस्तु की भी पूरी जानकारी दी जाए। ताकि लोग अपने आवश्यकतानुसार उस वस्तु को लेने में रूचि ले और उन्हें यह भी पता चल जाए की कौन सी वस्तु लेना उनके लिए ज्यादा लाभदायक है। विज्ञापन जानकारी भी प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए कोई भी वस्तु जब बाज़ार में नई आती है तो उसके रूप, रंग, गुण की जानकारी विज्ञापनों के माध्यम से ही मिलती है। अतः विज्ञापन के बिना किसी भी व्यापार का विकास होना असम्भव है। कुमुद शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘भूमंडलीकरण और मीडिया’ में विज्ञापन के बारे में लिखा है, —“बिना विज्ञापन किए व्यापार करना किसी खुबसूरत लड़की को अंधेरे में आँख मारने के समान है, अंधेरे में तुम जानते हो कि तुम क्या कर रहे हो, लेकिन दूसरा कोई नहीं जानता अतः संभावित लाभ नहीं होता बात बहुत स्पष्ट है कि बिना विज्ञापन के किसी उत्पाद की जानकारी समाज तक पहुँचाकर उसे बेचना अब असंभव सा है।”5 विज्ञापन के आभाव में यह व्यवसाय केवल मुनाफा देने में ही असमर्थ सिद्ध नहीं होता, बल्कि घाटे का सौदा भी साबित होता है। आशय यह है कि उत्पादित वस्तु को लोगों में लोकप्रिय बनाने का पूरा कार्य विज्ञापन द्वारा ही किया जाता है।
विज्ञापन हमारी सहायता करते हैं कि बाज़ार में किस प्रकार की नई सामग्री आई हैं इसकी जानकारी देने में विज्ञापन ग्राहक और निर्माता के बीच कड़ी का काम करते हैं।
विज्ञापन के निम्नलिखित कार्य हैं:—
- नवीन वस्तुओं और सेवाओं की सूचना देना।
- वस्तु की उपयोगिता बताते हुए लोगों का ध्यान उसकी ओर आकर्षित करना।
- उपभोक्ताओं में वस्तु के प्रति रूचि तथा विश्वास पैदा करना।
- विशेष छूट आदि की जानकारी लोगों को देना।
- वस्तु को स्वीकार करने अपनाने और उसे खरीदने की प्रेरणा लोगों को देना।
- अन्य उत्पादन कम्पनियों के उत्पादनों की जानकारी को अपने उत्पादन से तुलना कर उसकी जानकारी लोगों को देना।
- बाज़ार में उत्पादन कम्पनियों की स्थिरता को बनाये रखना।
विज्ञापन में आकर्षण, प्रयोगशीलता, विश्वसनीय तथा व्यावसायिकता का मेल होना चाहिए। कम समय में अधिक बातों को अभिव्यक्त करने की क्षमता इसमें होना चाहिए इसकी भाषा माध्यम के साथ बदलती है। दंगल झाल्टे ने विज्ञापन की विशेषताओं के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है, —“व्यावसायिक जगत में वस्तुओं के निर्माताओं द्वारा उपभोक्ताओं को आकर्षित करके उन्हें अपने उत्पाद खरीदने के लिए उत्प्रेरित करने वाले विज्ञापन अपने में कुछ विशेषताएँ लिए होते हैं, जैसे –
- उपभोक्ताओं के ध्यानाकर्षण की शक्ति।
- उत्पादित वस्तु के बारे में सूचना या जानकारी देना।
- वस्तु के बारे में उपभोक्ताओं के मन में विश्वास निर्माण करना।
- उपभोक्ताओं की सूक्ष्म इच्छाओं को जाग्रत करना।
- उपभोक्ताओं को वस्तु के क्रय संबंधित निर्णय लेने में सहायक होगा।
- उत्पादित वस्तु की श्रेष्ठता अथवा वरीयता दर्शाना या सिद्ध करना।
- उत्पादित वस्तु के बारे में तकनीकी या अन्य आवश्यक जानकारी देना तथा उसकी आवश्यकता एवं उपयोगिता उपभोक्ता को बताना।”6
विज्ञापन का क्षेत्र पूरी तरह से व्यावसायिक है। आज विज्ञापन का कार्य तथा उपयोगिता व्यावसायिक लाभ से ही संबंधित है। ‘हिंदी’ भारत में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली तथा समझने वाली भाषा है। विज्ञापन के माध्यम के रूप में हिन्दी सबसे महत्वपूर्ण भाषा है। आज विज्ञापनों में हिंदी भाषा का ही बोलबाला है आज ज्यादातर विज्ञापन हिंदी में ही देखने को मिलता है। आज हिंदी विज्ञापन की आवश्यकता के अनुरूप नया रूप ग्रहण कर रही है। विज्ञापन के अनुसार हिंदी भाषा में आए दिन नये प्रयोग हो रहे हैं। इसमें हिंदी भाषा का विकास हो रहा है आज यह मात्र पुस्तकों की भाषा न होकर नए समय और समाज की जीवंत भाषा का रूप ग्रहण कर रही है। विज्ञापन के वर्तमान रूप में हिंदी ने अपनी महत्वपूर्ण जगह बना लिया है। हमारा व्यक्तित्व और जीवन भी इससे पूरी तरह से प्रभावित हैं। हिंदी के क्रिया पदों के प्रयोग से विज्ञापनों में अधिक कह देने की क्षमता पैदा होती है। जैसे—जरूरत है, चाहते हो, आते हैं, जाते हैं, आए आदि शब्दों के प्रयोग से विज्ञापनों में प्रयोग की जाने वाली हिंदी – शब्दावली के परिवर्तन होने के साथ बदल जाती है। डॉ० तारेश भाटिया के शब्दों में, “निश्चित ही विज्ञान क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली हिंदी भाषा विज्ञापन की अपनी भीतरी और बाहरी आवश्यकताओं के अनुसार एक नया रूप ग्रहण कर रही है। आधुनिक होने के साथ-साथ हिंदी जीवंत भाषा भी है, वह अपने प्रयोक्ताओं की किसी भी आवश्कता की अवमानना नहीं करती। स्वाभाविक है कि प्रयोग के इस नए क्षेत्र में वह अपने नए रूप संरचना के साथ उभरी है।”7
आज विज्ञापन की दुनिया हिंदी के बिना अधूरी हैं। देश-विदेश की कम्पनियाँ अपना विज्ञापन हिंदी में बना रहे हैं क्योंकि किसी भी वर्ग, प्रान्त का व्यक्ति क्यों न हो हिंदी भाषा में उसे प्रभावित करने की क्षमता है। इसने हमारे जीवन को ही बदल कर रख दिया है, अपने रंग में पूरे भारत को रंग दिया है। बच्चे से लेकर बड़े, बूढ़े, पुरुष-स्त्री सभी को विज्ञापन ने अपनी ओर आकर्षित करके रखा है। हर दिन नए विज्ञापन ने बाजार को ग्राहकों से भर दिया है। नयी-नयी शब्दावली के कारण हिंदी का शब्द भंडार बढ़ रहा है। उसकी बोधगम्यता,कलात्मकता, यांत्रिकता अधिक लचीली हो गई है। उसकी शैली उच्च एवं मिश्रित हो गई है। उसका रचनात्मक पक्ष काफी रोचक बन गया है इसने रोजी-रोटी के लिए भी आज नए रास्ते खोल दिए हैं।
वर्तमान समय में कई विज्ञापन ऐसे भी हैं जो हमारे रोज-मर्रा के जीवन के अभिन्न अंग बन गए हैं। जिनकी आकृतियाँ, चित्र सोते-जागते हमारे मस्तिष्क में घूमते रहते हैं। इसमें कुछ विज्ञापन ऐसे भी हैं जो हम बरसों से सुनते आ रहे हैं और आज भी हमें इन्हें सुनना अच्छा लगता है। जैसे—
- “कपड़े बोलते है फेना ही लेना”
- “क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है?”
- “हाथ धोये साबुन से, तो रोग मिटेंगे जीवन से”
- “लुभावने दावे या रूप मंत्रा, क्या है आपका चुनाव?”
मुहावरों, कहावतों का का प्रयोग भी विज्ञापन में देखने/सुनने को मिलता है। जैसे—
- “जान है तो जहाँन है।”(बीमा निगम)
- “शिल्पा चार चाँद लगाएँ।” (बिंदी)
जल,पर्यावरण, स्वच्छता, भ्रष्टाचार, शिक्षा आदि विषयों पर भी विज्ञापन द्वारा लोगों में जागरूकता फैलाया जाता है ताकि देश किसी भी क्षेत्र में दूसरे देशों से पीछे न रहे। इस तरह एक विज्ञापन द्वारा करोड़ो लोगों तक उस संदेश को पहुँचाया जाता है। लोगों को उनके कर्तव्यों का बोध कराया जाता है जो देश के विकास के लिए बहुत जरुरी हैं। जैसे—
- “जल सुरक्षित जीवन सुरक्षित”
- “प्लास्टिक हटाओ दुनिया बचाओ”
- “सर्व शिक्षा अभियान, सब पढ़े सब बढ़े”
- “हर सपना सच करेगा इंडिया, बनेगा स्वच्छ इंडिया”
- देश को आगे बढ़ाना है, भ्रष्टाचार मिटाना है”
पल्स पोलियो, एड्स, मलेरिया जैसे विषयों पर लोगों को जागरूक करने के लिए विज्ञापन प्रसारित किए जाते हैं। इसके साथ-साथ राष्ट्रीय भावना, देश, एकता, बंधुता का पाठ समझाने के लिए भी सरकार द्वारा हिंदी विज्ञापन का प्रसारण किया जाता है, जैसे—
- “पोलियों डोज पिलाओ, देश को बचाओ”
- “सही और पूरी जानकारी दूर रखे एड्स की बीमारी”
- एकता की जान है, हिंदी देश की शान है”
- अनेकता में एकता ही हमारी शान है, इसलिए तो हमारा भारत महान है”
- “हमारी स्वतंत्रता कहाँ हैं, राष्ट्रभाषा जहाँ है”
संक्षेप में, कहें तो आज विज्ञापन उत्पादक और उपभोक्ता दोनों के लिए आवश्यक बन बैठा है। आज के समय में विज्ञापन की मांग इतनी बढ़ गई है कि बिना इसके वस्तु को बेचना मुश्किल हो गया है। हमारे सामाजिक, आर्थिक एवं व्यक्तिगत जीवन से विज्ञापन आज इस तरह जुड़ गया है कि हम सब के लिए इसके बिना रहना असम्भव हो गया है। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ने विज्ञापन की हिंदी को परिणात्मक एवम् गुणात्मक ढंग से बढ़ावा दिया है। समय के साथ-साथ विज्ञापन में हिंदी की नयी शब्दावली का प्रयोग किया जा रहा है। विज्ञापनों की भाषा में “गागर में सागर” भरने की क्षमता होती है अर्थात कम से कम शब्दों में बहुत कुछ कहकर अपना गहरा प्रभाव छोड़ जाना यह विज्ञापन और हिंदी भाषा का मिला-जुला कमाल है। विज्ञापन हिंदी की सबसे बड़ी ताकत है। इसने हमारे जीवन को ही बदल कर रख दिया है। हर चैनल पर दसवें मिनट पर रंग-बिरंगे विज्ञापन देखने को मिलते हैं जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, और लोग भी उससे आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकते। देश-विदेश की कम्पनियाँ भी आज हिंदी में ही विज्ञापन करना पसंद करती हैं क्योंकि हिंदी आधिकांश लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है। विज्ञापन हिंदी के साथ जुड़कर लोगों में सद्भावना का प्रचार-प्रसार करने के साथ-साथ भाईचारा बढ़ाने का भी काम करती है। अपने रंग में पूरे भारत को रंग दिया है और हमारे जीवन को ही बदल दिया है।
संदर्भ ग्रन्थ सूची :
- शर्मा, डॉ० ओमप्रकाश, जनसंचार और पत्रकारिता विविध आयाम, पुणे, निराली प्रकाशन, 2012, पृष्ठ संख्या-57
- वर्मा, नेहा, पत्रकारिता एवं संपादन कला, नई दिल्ली, संजय प्रकाशन, 2007, पृष्ठ संख्या-227
- नागलक्ष्मी, प्रयोजनमूलक हिंदी प्रासंगिकता एवं परिदृश्य, मथुरा, जवाहर पुस्तकालय, 2003, पृष्ठ संख्या-287
- भाटिया, तारेश, आधुनिक हिंदी विज्ञापन और जनसंपर्क, नई दिल्ली, तक्षशिला प्रकाशन, तृतीय संस्करण, 2007, पृष्ठ संख्या-71
- शर्मा, कुमुद, भूमंडलीकरण और मिडिया, नई दिल्ली, ग्रन्थ अकादमी, 2003, पृष्ठ संख्या-140
- झाल्टे, दंगल, प्रयोजनमूलक हिंदी : सिद्धान्त और प्रयोग, नई दिल्ली, वाणी प्रकाशन, द्वितीय संस्करण, 2006, पृष्ठ संख्या-227
- भाटिया, तारेश, आधुनिक हिंदी विज्ञापन और जनसंपर्क, नई दिल्ली, तक्षशिला प्रकाशन, तृतीय संस्करण, 2007, पृष्ठ संख्या-31
wahhh
बहुत सुंदर लेख
धन्यवाद डियर
जैसे विज्ञापन आम जन पर अपना प्रभाव डालता है उसी प्रकार आपका शोध लेख भी आपके पाठक पर प्रभाव डालेगा । बहुत ही सुंदर लेख लिखा है सपना।
शुक्रिया दिनेश.