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अरे बाप रे, आप तो कंचे खेलते हैं…! 

“क्यूं कंचे खेलना ग़लत है..?

मैं तो ताश भी खेलता हूँ,

तब तो ताश खेलना पाप हो जाएगा हैना..?”

क्या..? ताश भी खेलते हैं, कल को जुआ भी खेलेंगे,

हुंह!

“तो क्या क्रिकेट मैच मैं  तो रोज़ ही खेलता हूँ।

बिना जुआ के क्रिकेट मैच खेलने में मज़ा ही क्या कोई मन लगाकर खेलता ही नहीं ,

कोई बड़ा विषय है..?”

हाँ !

मेरे लिए हैना बड़ा विषय, क्या जुआड़ी बनना है न आपको..?

उसी की प्रीप्रेशन कर रहे हैं शायद,

“हुंह!”

“हे राम! कैसे लड़के से प्यार हो गया”

मतलब हद्द है!

“क्या कैसे लड़के से प्यार हो गया..?”

कुछ जानती समझती भी है आप, बस कुछ भी बोले जा रही हैं,

“ताश वो ही खेलते हैं जिनके अंदर बुद्धि होती हैं,

जो थोड़ा बुद्धिमान होते हैं, सब थोड़ी ताश खेल लेते हैं,

कंचे वहीं खेलते हैं जिनका लक्ष्य के प्रति रूझान होता है”

समझीं कुछ..?

हमें दिख रहा है, आपका लक्ष्य के प्रति रूझान कितना है, और कितने बुद्धिमान हैं…?

यार अब तो बड़े हो गये है न, अपने शहर में भी ऐसी ही कंचे खेलते होंगे,

इन गाँव वालों का चल जाएगा, आपका नहीं चलेगा,

मुझे तो यकीन नहीं हो रहा, ये ताश ये कंचे…

अरे! आप तो कुछ भी कह रही हैं,

“किस शास्त्र में लिखा है?”

“कंचा खेलना ग़लत हैं, और ताश खेलना पाप है”

“पता भी है इसे कितने बुद्धिमान लोगों ने बनाया था”

हुलकी न पड़े ऐसे बुद्धिमान लोगों के ऊपर,

ऐसी चीज़े बनाया क्यूं..?

पता भी है,

“कितने लोगों के घर उजड़ जाते हैं,

कितने लोगों के बच्चे अच्छी शिक्षा से वंचित हो जाते हैं”

बस आप खाइए कसम ताश नहीं खेलेंगे,

ओ हो! अगर बोलना ही था तो बोलती न कि जुआं नहीं खेलेंगे,

बताइए भला इस बेचारे ताश का क्या दोष है…

अरे है दोष खाइए कसम,

अजीब लड़की हो,

हाँ ठीक है!

मगर ताश खेलेंगे जुआ नहीं खेलेंगे प्रोमिस!

अरे वाह! हां ये ठीक है,

पर कंचे तो मत खेला करिए, मुझे एक भी अच्छा नहीं लगता,

गर्मियों की शाम में, जब भी अपने घर के सामने,

मासूम बच्चो को कंचे खेलते देखता हूँ,

तो तेरा ही ख़्याल आता है,

उन्हीं बच्चों में से किसी एक बच्चे को बुला कर उसे गोद में ले लेता हूँ,

प्यार से उसके बालों को सहलाते हुए मेरे,

मुँह से तेरे बोले शब्द अनायास ही फूटते हैं,

अरे बाप रे आप तो कंचे खेलते हैं…

मैंने अपने बचपन में जो कंचे जीते थे,

वो कंचे अभी तक कम नहीं हुए,

उन्हीं में से कुछ कंचे उस बच्चे को दे देता हूँ,

वो मुस्कुराता हुआ,

जल्दी से भाग जाता है कि मैं उससे कंचे वापस न ले लूँ,

उस मुस्कुराते चेहरे के साथ कानों में तेरी आवाज़ें गूंजनें लगती हैं,

अरे बाप रे, आप तो कंचे खेलते हैं…

अरे बाप रे, आप तो कंचे खेलते हैं, कंचे खेलते हैं”। 

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One thought on “संस्मरण : अरे बाप रे!”

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