पाँचवीं तक घर से तख्ती लेकर स्कूल गए थे। स्लेट को जीभ से चाटकर अक्षर मिटाने की हमारी स्थाई आदत थी। इस पापबोध के साथ कि विद्यामाता नाराज न हो जायें, कक्षा के तनाव में पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर… Read More

पाँचवीं तक घर से तख्ती लेकर स्कूल गए थे। स्लेट को जीभ से चाटकर अक्षर मिटाने की हमारी स्थाई आदत थी। इस पापबोध के साथ कि विद्यामाता नाराज न हो जायें, कक्षा के तनाव में पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर… Read More
अरे बाप रे, आप तो कंचे खेलते हैं “क्यूं कंचे खेलना ग़लत है..? मैं तो ताश भी खेलता हूँ तब तो ताश खेलना पाप हो जाएगा हैना..?” क्या..? ताश भी खेलते हैं, कल का जुआ भी खेलेंगे हुंह! “तो क्या… Read More
“सुनिए ‘आशा ताई’,” हां? अरे सुनिए तो, कहिए तो.. “आप सुनती ही कहा हैं. कब से आशा ताई आशा ताई कर रहें हैं.” “अरे कबसे सुन ही तो रही हूं. वैसे आज आप बड़ी तारीफ़ कर रहे हैं. आशा ताई…”… Read More
जीते-जागते निकल जाता हूँ द्वन्द्व के दुर्गम मार्ग को, युद्ध होता है विचारों के विशाल अवनि पर जीत है, हार है स्वीकार है, तिरस्कार है निंदा-स्तुति है, मान-अपमान है मानव के इस जग में, अंतरंग के संगम क्षेत्र में समेटकर… Read More
आज तुम्हे एक रात की बात बताता हूँ जो थी तो पूर्णिमा की रात लेकिन मेरे जीवन की वो सबसे आंधेरी रात थी। ये बातें मैं सिर्फ तुमसे कह रहा हूँ क्योंकि तुम्हारे सिवा कोई भी मेरे इतने करीब नही… Read More
तुम देवी हो या चुड़ैल..? मै मानता हूं तेरा गुनाहगार हूं. तुम आज वर्षो बाद मिल रही हों. तुम्हें मुझसे कई सारी शिकायते हो रही है कि- “मैं कहा करता था कि तुम मेरी लिए देवी हो. मै तुम्हारें सिवाय… Read More
आज के ही दिन ठीक दो साल पहले भगवान महाकाल और सती के परम् भक्त राजा विक्रमादित्य की नगरी में अपुन मौजूद थे। दो साल पहले की इस घटना को यात्रा वृतांत या कहें संस्मरण का रूप देने का प्रथम… Read More
जीवन के 25 वसन्त में यह तीसरी दिवाली होगी जब बिना पिता जी के आशीर्वाद के दिवाली बनाई जाएगी और मेरे जहन में वो यादें हमेशा ताज़ा बनी रहेंगी जो पिता जी के साथ बनी थीं। उन्हें ताउम्र अपने जीवन… Read More
कुछ लेखक होते हैं जो बहुत कुछ लिख जाने के बाद भी अपना पता नहीं दे पाते तो कुछ लेखक ऐसे भी होते हैं जिन की रचनाएं तुरंत उन का पता दे देती हैं। पर किसी लेखक की रचना ही… Read More
मुझे साइकल चलाना सीखना था। पर दुर्भाग्य से मेरे घर में साइकल नही थी। मोहल्ले के सभी बच्चे साइकल चलाते रोज दिख जाया करते थे। उन्हें साइकल चलाते देख कर मुझे रोज उनसे ईर्ष्या और खुद पर शर्मिंदगी महसूस होती। एक… Read More