ramlala abhiram

रामलला प्राण प्रतिष्ठा दिवस विशेष : रामलला अभिराम

सौभाग्य मना रहे हैं जन-जन, करके राम का गान। पूरी करके प्रतिज्ञा, समारोह प्रतिष्ठा प्राण। जन का मन प्रफुल्लित हुआ, अवध नजारा देख। भव्य बालरूप राम का, ‘अजस्र’ करें प्रणाम। राम दरबार सज गया, शोभा अति अभिराम। महापर्व श्री राम… Read More

kite in butterfly shape

कविता : कागजी तितली

ठिठुरन सी लगे, सुबह के हल्के रंग रंग में । जकड़न भी जैसे लगे, देह के हर इक अंग में ।। उड़ती सी लगे, धड़कन आज आकाश में। डोर भी है हाथ में, हवा भी है आज साथ में। पर… Read More

nayasawera2023

कविता : लक्ष्य नए अपनाए

आओ, खुशियां बाहों में भर लें, आज लक्ष्य नए अपनाए । नए वर्ष की नवकिरणों से, अंधियारों को मिटाए । ‘ अजस्र ‘ आरंभ ये नव वर्ष का, सुखद स्मृतियां आधार बने। दुःख की काली रातें भूलकर, खुशियों के दिन… Read More

happy-new-year-2024

कविता : गुजर गया यह साल

थोड़ी खुशियां, थोड़े गम थे, यादें रह गई बाकी। जिनको जो मिलना था मिल गया, कुछ को आशा जरा सी। ‘अजस्र’ आशा से जीवन चलता, दिन-दिन, पल-पल गिन-गिन। आस टूटे तो श्वास टूट जाए, गुजरा साल वो अपना ही। दिन-दिन,… Read More

little-girls

कविता : बेटी – बंदनवार

जीवन आशाओं की, आन है बेटी । गाथाऐं ‘ अजस्र ‘ , गुणगान है बेटी । विश्वजागृति जन-अभियान है बेटी । सप्त सावित्री धर्म, पहचान है बेटी । पिता का आदर्श, सम्मान है बेटी । खुद मां का रूप, उपमान… Read More

sainik-2023

कविता : पाती सैनिक-सपूत की

आऊंगा मैं तुझसे मिलने ,माँ मेरी ए , खाकर कसम तेरी कहता हूं । देश-तिरंगे का मान बढ़ाने को , तुझसे दूर मैं रहता हूँ । आऊंगा मैं तुझसे मिलने…… चिट्ठी तेरी मुझको आई है जो माँ , मेरा ही… Read More

aditiya

कविता : आदित्य, आदित्य ओर चला

धरती से उड़कर आदित्य, उस आदित्य ओर चला। बदल-बदल कर वह कक्षाएँ, एक बार फिर वो सम्भला। इसरो की आशाएँ उस पर। भारत-विश्व स्वाभिमान है। *अजस्र* भास्कर देख नजारा, विस्मय स्वर उससे निकला। कदम-कदम आगे ही बढ़ता, ‘आदित्य’, ‘आदित्य’ का… Read More

savidhan k fal

कविता : फल संविधान से पके हुए

पेड़ के ऊपर बैठकर तुम , पेड़ की डाल को काट रहे । बुद्धिमत्ता कहकर इसको भी , पांव कुल्हाड़ी मार रहे । ‘ अजस्र ‘ इतिहास के जख्मों को भरना , काम समय का होगा भविष्य । जख्मों को… Read More

zimadari

कविता : पर आप तो

डर लग रहा है..!? हां ..!! लग रहा है । डरपोक हो……!? हां…..हूं ….!!!!!!!! क्योंकि ……….!!? बाल बच्चेदार जो हूं ..!! जिम्मेदारियां हैं ….!! अभी कई मुझ पर … आंदोलन नहीं कर सकता… क्रांति की …..!! क्रांति की तो ,… Read More

kanaha

कविता : मन तेरे क्या आए

ककोड़े दो सौ के पाव हो गए, नहीं जिनका कोई भाव । कान्हा हमरे अब तो जन्म ले, रख हमसे जरा लगाव । ‘ अजस्र ‘ आस्था क्योंकर बिकती, तुच्छ स्वार्थों मोल । ईद, दिवाली, क्रिसमस और बैसाखी, ऐसा कौन… Read More