पेड़ के ऊपर बैठकर तुम ,
पेड़ की डाल को काट रहे ।
बुद्धिमत्ता कहकर इसको भी ,
पांव कुल्हाड़ी मार रहे ।
‘ अजस्र ‘ इतिहास के जख्मों को भरना ,
काम समय का होगा भविष्य ।
जख्मों को अपने कुरेद-कुरेद कर,
नासूर तो खुद ही बना रहे ।
स्व की कोटर बैठ कर तुम ,
कूपमंडूक बन जाओगे ।
उन्मुक्त गगन है ,तुमको पुकारे,
पंख जो अपने फैलाओगे ।
‘ अजस्र ‘ प्रेम की सृष्टि देखो,
असंख्य रंगों से भरा संसार ।
बहकावे में भ्रमित होकर ,
अपनों से ही कट जाओगे ।
पेड़ मैं हूं तो तना भीम है,
पुष्प-पत्र सब खिले हुए ।
जड़ों में संस्कृति,वो भारत की,
तन और मन है मिले हुए ।
एक ने मुझको दिया है जीवन,
एक ने जीना सिखलाया ।
भारत-भीम-अजस्र सूर्य वो,
फल संविधान से पके हुए ।
शासन, सिंहासन पाना है तो ,
पहले उसके योग्य बनो ।
अन्याय से जीत मिल ही जाएगी,
तान के सीना उससे ठनो ।
सफल मुकाम खुद को ही बनाना,
गहन मेहनत प्रयासों से,
तोड़ बैसाखी ,अब पांव संभालो ,
‘ अजस्र ‘ भविष्य आप चुनो ।