अपनी भक्ति करने का
हे माँ! तुम अधिकार दे दो।
मेरी भक्ति का मुझको
हे माँ! तुम प्रसाद दे दो।
मुझे धन दौलत नहीं
हे माँ! बस दर्शन दे दो।
और अपना हाथ हे माँ!
मेरे सिर पर रख दो।।
बहुत दौड़ा हूँ मैं
तुम्हारे दर्शन के लिए।
मगर दर्शन नहीं मिले
मेरे अभिमान के चलते।
मगर आप तो माँ है
हम सब बच्चों की।
तो कैसे भूल सकती हो
तुम अपने बच्चों को।।
समझ आया तेरा ये
दया का भाव हे माँ!
जग जननी है तू माँ
जो सब कुछ जानती है।
फिर क्यों कष्ट देती हो
तुम अपने बच्चों को।
शायद संसार को समझाने
तुम्हीं ये खेल रचती हो।।
तेरे दर से हे माँ!
कोई खाली नहीं जाता।
दुआ उसकी जो भी हो
वो पूरी तुम कर देती हो।
तभी तो भक्तगण
जपा करते है तेरा नाम।
और तुम भी माँ होने का
सदा निभाती हो फर्ज।।