धरती से उड़कर आदित्य,
उस आदित्य ओर चला।
बदल-बदल कर वह कक्षाएँ,
एक बार फिर वो सम्भला।
इसरो की आशाएँ उस पर।
भारत-विश्व स्वाभिमान है।
*अजस्र* भास्कर देख नजारा,
विस्मय स्वर उससे निकला।
कदम-कदम आगे ही बढ़ता,
‘आदित्य’, ‘आदित्य’ का है जो पथिक।
इसरो ने पाथेय दिया जो,
मार्ग कट गया सभी, क्षणिक।
‘लक्ष्य सफल हो’ भारत-जन,
सब देते हैं उसको आशीष।
भारत-अजस्र अंतरिक्ष प्रसारित,
उस आदित्य की भावी जीत।
टिक-टिक, टिक-टिक घड़ियां गिनते,
एक-एक सब इसरोजन।
कण-कण से क्विंटल कर डाला,
तुम सबको *अजस्र* नमन।
भारत के कोने-कोने से,
आशीष मिले प्रबल, घनघोर।
भारत भावी भविष्य निर्भर,
तुम पर ही,
हे…!
जन गण मन।