mansanti

मन-मग रहत ,
बस एक उलझन ।
हदय बस तब ,
चयन उस भगवन ।
जतन जब सरजन ,
अब अनवरत अर
अनवरत ।
जग-जन चमन सद,
बढ़त बस बरकत ।

ईश ,असलम ,
धन-धन ,सत-मदद ।
इस , उस सरजन पर ,
भगतन मन उलझन।
तन-मन-धन-जतन
उस पर बस अरपण ।
रत-रत भगत अर ,
करत कई जतनन।
बस उस पद दरशन।
बस उस पद दरशन ।

तन तड़पन ,
रहत जल, जल-जल ,
अर मन बस ,
बसत जड़ ,
सह उस तड़पन ।
टप-टप जब जल बह ,
नयनन सब नयनन ।
गगन गरज घम ,
बस उमड़न, अर उमड़न ।
जल-कल तब उदय रह ,
अर तट बह नदयन ।

मन बह भय-डर ,
नहरन पर उमगन ।
जगत बस जल-जल ,
मन भर अर उमगन ।
तन रह , बस अचल ,
मन उमग उस भगवन ।
हदय बसत अक्ष ,
तब परकट उस सरजन ।
अनवरत जतन तब,
हत-हट हदय जकड़न ।
दरश जब करत सब ,
मगन हर तन-मन ।
कर सकत ,
तब सब नमन ।
बस एक उस भगवन।
बस एक उस भगवन ।।

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