पत्र-साहित्य ही वह विधा है जिसके द्वारा मनुष्य समाज में रहते हुए अपने भावों एवं विचारों को दूसरों तक पहुँचाता है। पत्र सूचना संप्रेषण का सबसे प्राचीनतम साधन है।प्राचीनकाल से ही पत्र का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व रहा… Read More
शोध लेख : समकालीन जीवन में संत साहित्य की प्रासंगिकता
प्रस्तावना : निर्गुण भक्तिधारा के कवियों को ‘संत’ शब्द से संबोधित किया गया है। अपने हित के साथ जो लोक कल्याण की भी चिंतन करता है, वही संत कहलाने का अधिकारी है। इन संतों द्वारा बताये गये विचार तत्कालीन समाज… Read More
शोध लेख : लोक संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में बुन्देलखण्ड
प्रस्तावना- लोक संस्कृति का अर्थ विविध रूपों में ग्रहण किया जा सकता है, लोक संस्कृति किसी भी क्षेत्र विशेष की पहचान होती है। जिसमें उस क्षेत्र का संपूर्ण इतिहास और जन-जीवन विद्यमान रहता है। भारत में लोक संस्कृति का इतिहास… Read More
शोध आलेख : ‘गदर की चिनगारियाँ’ नाटक-संग्रह में चित्रित नारी सशक्तीकरण
नारी-सशक्तीकरण समय की आवाज़ भी है और माँग भी। इसे नारी-विमर्श का क्रियात्मक रूप कह सकते हैं। यह एक सामाजिक उपक्रम ही कहा जाएगा। कहीं-कहीं इसके लिए नारी सबलीकरण पद का भी प्रयोग होता है। इसका विशेष प्रयोग प्रशासनिक और… Read More
शोध लेख : रंगमंचीय संसार में उभरता आदिवासी रंगमंच
आदिवासी का शाब्दिक अर्थ है- आदिम युग में रहने वाली जातियां। मूलतः यह वे जातियां है जो 5000 वर्ष पुरानी भारतीय सभ्यता को संजोयें हुए है। आदिवासी भारतीय प्रायद्वीप के मूल निवासी है। मूल निवासी होने के कारण इन्हें सामान्यतः… Read More
शोध लेख : नारी संघर्ष का प्रतिबिंब ‘सेवासदन’
सामाजिक सरोकारों से ओत-प्रोत प्रेमचंद द्वारा रचित ‘सेवासदन’ उपन्यास की रचना आज से लगभग सौ साल पहले 1918 में की गई थी। उर्दू में इस उपन्यास का प्रकाशन 1919 में ‘बाज़ारे-हुस्न’ के नाम से हुआ था। प्रेमचंद अत्यंत संवेदनशील उपन्यासकार… Read More
शोध लेख : ‘अस्तित्व’ उपन्यास में चित्रित नारी अस्मिता
अस्तित्व से अभिप्राय है स्वयं के होने का बोध अर्थात अपनी खुद की पहचान। यदि बात नारी सन्दर्भ में की जाये तो आज नारी स्वयं के अस्तित्व की तलाश में भटक रही है। वर्तमान प्रगति के बावजूद सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक… Read More
शोध लेख : हिंदी के संदर्भ में विज्ञापन की दुनिया
वर्तमान युग में विज्ञापन हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। आज हमारी नज़र जहाँ-जहाँ भी जाती है वहाँ हमें विज्ञापन ही विज्ञापन नज़र आते हैं। सवेरे-सवेरे आँख खुलते ही गर्म-मा-गर्म चाय की चुस्की के साथ जब हम अखबार… Read More
शोध लेख : हमारे देश की गरिमामयी अपराजिताएँ
नारी तुम संजीवनी हो और सुधारस जीवन की सौम्या हो तुम भावमयी कवि की कोमल कल्पना… … ‘संजीवनी’ के रूप में मान्यता निश्चय ही नारी-गरिमा को उद्घाटित करता है। अनादिकाल से नारी – शक्ति को विविध रूपों में मान्यता मिलती… Read More
शोध लेख : नवजागरणकालीन हिंदी उपन्यास और साम्प्रदायिकता
नवजागरण आधुनिक भारतीय इतिहास का एक ऐसा पड़ाव था, जहाँ से संभवतः सभी आधुनिक विचार, सभी आधुनिक विमर्शों की रूपरेखा तैयार हुई। वर्तमान में जितने भी विमर्श हैं, उन सबका एक महत्त्वपूर्ण आधार भारतीय पुनर्जागरण में रूपायित होता है। नवजागरण… Read More