कविता : जाने कब से

ये लड़ाई इतनी आसान नहीं, बहुत ही कठिन है। है जितनी मुश्किल ये राहें, मंजिल पाना उतना ही जटिल है। मद्धिम-मद्धिम क्षीण हो रही मेरे भीतर की प्रबल इच्छा-शक्ति, हे! नाथ! मेरे भीतर की आत्मशक्ति जगाओ। जो है मुझमें पाने… Read More

एक दिया चौखट पर

नहीं मनती दिवाली अब घर पर कहाँ से शुरू करें बल्बों की झालर लेकर घर की छत के कोने-कोने में अब कोई नहीं घूमता… … पेचकस, टेस्टर, सेलो टेप लेकर दो तीन बिजली के झटके खाकर अब इलेक्ट्रिशियन कोई नहीं… Read More

रोशन दिवाली कब

दीपों की जगमग आज हुई रोशन, चहुँओर लगे देखो खुशहाली। मांवस रात लगे पूनम सी, काली है पर भरपूर उजियाली। पर जिससे हर घर में है रौनक, उसका घर आज लगता है खाली। सीमा पे बैठ वो लिए बन्दूक, भारत… Read More

कविता : इंद्रधनुषी रात

इंद्रधनुषी रात थकने सी लगी है। भोर में कोयल कुहकने सी लगी है।। गीत मंगल के सजे तोरण कलश पर तलहथी की छाप उगने सी लगी  है।। गंध-मेंहदी ने किया तन-मन सुवासित बाग में  बेला चमकने सी लगी है।। छंद… Read More

कविता : जीवन ही पूरा महक जाय जब साथ हो सच्चा मित्र

कुछ पल के लिये कपड़ों को महका देती है इत्र पर जीवन ही पूरा महक जाय जब साथ हो सच्चा मित्र बसा हो कैसा मन में हमारे गलत भाव या दोष भले कभी भी दिखा दे हम उस पर अपना… Read More

कविता : शान्त का श्रेष्ठ प्रदर्शन

उपकार करो निश्छल हो जग में फिर भी डरना पड़ता है इंसानी बस्ती में इंसानों को,इंसानों से डरना पड़ता है दूध पिलाओ,चमर हिलाओ, सर्वस्व थमा दो तुम उसको फिर भी गर काटे दौड़े तो, फन एड़ी से रगड़ना पड़ता है… Read More

इस देश की पहचान अब ‘कलाम’ बने

(मित्रों, मैंने यह रचना डॉ. कलाम के प्रमुख सिद्धांतों से प्रभावित होकर लिखी है इसलिए इसमें बहुत सी ऐसी बातें हैं जो सामान्य होते हुए भी सामान्य नहीं है। जिसे मैंने कुछ बिन्दुओं को निर्धारित करते हुए आप सब तक… Read More

ख़ामोश क़त्ल

देखो उस मेट्रो को… कैसे खिलखिला के हँस रही है… सुना है, इसने कई पेड़ों का क़त्ल कर दिया कल रात… कल रात जब हम गहरी नींद में थे कुछ पेड़ सुबक रहे थे अंधेरे में… कइयों ने आवाज़ लगाई… Read More

सुबोध श्रीवास्तव की कविताएं

बंदूकें तुम्हें भले ही भाती हो अपने खेतों में खड़ी बंदूकों की फसल लेकिन- मुझे आनन्दित करती है पीली-पीली सरसों और/दूर तक लहलहाती गेहूं की बालियों से उपजता संगीत। तुम्हारे बच्चों को शायद लोरियों सा सुख भी देती होगी गोलियों… Read More

कविता : यह हनी ट्रैप है

स्त्री फँसायेगी तुम्हें जाल में फंसना मत यही सिखाया गया है नरक का द्वार जो है मेनका का काम ही है आप जैसे तपस्वियों का तप भंग करना आप बहक गये तो क्या इंसान ही तो हैं आखिरभोले भाले लोग….… Read More