रात बहुत सर्द थी
सोचा लिहाफ़ लेलूं
लेकिन,
उस लिहाफ़ में बेख़बर
वो भी लिपटी थी
ऐसे में ख़्याल आया
कहीं…
कहीं उसकी नींद में
खलल न हो जाए
इसी ख़्याल से
ठिठुरता रहा रात भर
लेकिन एक सुकूँ था
उसको देखकर
सबसे बेख़बर वो
किसी ख़्याल में
सोई हुई मुस्कुरा रही थी
न जाने कब रात गुज़र गई
उसे देखते-देखते
और सुबह की किरण
उसके चेहरे पर
किलकारियाँ कर रही थीं
जिससे उसकी ख़ूबसूरती में
और निखार आ रहा था
मासूम-सा उसका चेहरा
फूलों की तरह कोमल, तरोताज़ा था
जो मुझमें एक नई ताज़गी का
एहसास भर रहा था ।
बहुत ही सुंदर। बेहद कोमल भाव तथा शब्दों का उम्दा चयन।