28/02/202405/03/2024 योगेन्द्र पाण्डेय तुम सृजन हो कवि के अंतर्मन का शब्दों की दीपशिखा और छंदों के तार पे कसी अलंकार से विभूषित तुम सृजन हो कवि के अन्तरमन का तुझमें बहती हैं भावनाएं नित कलकल नदी सी निरन्तर तुम हो वसंत ऋतु की सुरभित उच्छवास तुम सृजन हो कवि के अंतर्मन का !! +70 About Author योगेन्द्र पाण्डेय कवि सलेमपुर, देवरिया (उ.प्र.) See author's posts