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कविता : शिवाजी महाराज

शिवाजी महाराज याने? सिर्फ़ छत्रपति शिवाजी महाराज नहीं, बल्कि शिवाजी महाराज याने, अभिव्यक्ति की आज़ादी, किसानों का आंदोलन कामगारों का आंदोलन उत्तम प्रशासक जाती अंत स्त्री सम्मान शिवाजी महाराज याने? सिर्फ़ भगवा पताका और सियासी रंग नहीं, शिवाजी महाराज याने,… Read More

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कविता : सिसकते किताबों के पन्ने

किसी किताबख़ाने में जाओगे आप कभी, तो हर क़िताब को अच्छे से झांककर देख लेना, हा, सिर्फ मेरी ही नही होगी हर किताब मौजूद किताबो में, पर बिल्कुल किसीने मेरी तरह मोड़ के रखे होंगे किताबो के पन्ने, जैसे कोई… Read More

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कविता : मोड़ा हुआ ‘किताब’ का पन्ना

कई महीनों से बल्कि साल के बराबर वैसे देखा जाए तो हमेशा से.. रैक में पड़ी किताबे जद्दोजहद करने के बाद भी, सड़को पर निकलकर सांस्कृतिक सामाजिक राजकीय विद्रोह कर पाने में नाकामयाब रही हैं। शायद, यह पूरी तरह सच… Read More

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कविता : चट्टान

ये चट्टान हैं… आजाद -ए- दौर की, इसे चाहे तुम कह दो जो तुम्हारे जी में आए खालिस्तानी, आतंकवादी जो तुम्हे सही लगे। जोड़ दो चाहे रिश्ता उनका चीन और पाकिस्तान से फिर भी उनके हौसले बुलंद हैं, उनके रगों… Read More