poem-siskate-kitab-ke-panne

किसी किताबखाने में जाओगे आप कभी
तो हर क़िताब को अच्छे से झांककर देख लेना
हा, सिर्फ मेरी ही नही होगी हर किताब मौजूद किताबो में
पर बिल्कुल किसीने मेरी तरह मोड़ के रखे होंगे किताबो के पन्ने
जैसे कोई अपनी खुशियों को समेटकर रख देता हैं
किसी संदुख में, कांच की शीशी में,
शहर के कोने में, फिल्मोके गानों में, किसी कवि के कविताओ में और सिसकियां लेते अफसानों में

अगर किसी किताब का पहला ही पन्ना
मोड़ा हुआ मिल जाए तो याद कर लेना उस दिन को
जिस दिन हम पहली बार मिले थे
और उस वक्त मैंने आपको कविता सुनाई होगी
और सुनो ना,
किताब का आखरी पन्ना
बेहद ही दर्दभरा हो सकता हैं
उसको हो सके तो देखना ही मत, बल्कि मुमकिन हो तो फिर से एक बार मोड़ देना उस किताब के पन्ने को

और शुक्रिया अदा कर देना उस किसान का
जिसने पेड़ पौधे लगाए और उससे काग़ज़ बनकर आया
उस कागज़ पर में कविताएं लिखकर हमारे चंद लम्हे संभालकर रख पाया,
शुक्रिया अदा करना मेरे कवि मित्र पाश का जिसने
टूटते हुवे सपनों से संभालने का बल दिया
यह कह कर की सबसे खतरनाक होता हैं हमारे सपनों का मर जाना
और ख़ास कर आखरी शुक्रिया कबाड़ी वालों का करना मत भूलना
जिन कबाड़ी वालों ने यह किताबे जलाने के बजाएं,
पानी में बहाने के बजाए
बाजार में बेचने के बहाने तुम्हारे हात में थाम दी

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