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शीर्षक : प्रकाश – एक द्युति (हाइकु क्षितिज)
लेखक : मनीष कुमार श्रीवास्तव
प्रकाशक : द इंडियन वर्डस्मिथ, पंचकुला
मूल्य : 250/-

साहित्य के क्षेत्र में ‘हाइकु’ एक ऐसी काव्य विधा है, जिसमें कलमकार बहुत कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह जाता है और इस संदर्भ में कविवर मनीष कुमार श्रीवास्तव एक सधे हुए साहित्यकर हैं, जो साहित्य को सेवा मानकर समाज और देशकाल की समसामयिक विषयों का रेखांकन करते रहे हैं। कवि का पहला हाइकु संग्रह- ‘प्रकाशः एक द्युति’ (हाइकु क्षितिज) का प्रकाशन भारतवर्ष के जानेमाने साहित्यकार और सम्पादक विकास शर्मा ‘दक्ष’ के दिशा निर्देशन और मार्गदर्शन में ‘द इंडियन वर्डस्मिथ’ पंचकुला हरियाणा द्वारा हो रहा है। कवि की सरल, सहज भावाभिव्यक्ति उनके व्यवहारगत गुणों की परिचायक लगती है। कविवर मनीष कुमार के हृदय में अंकुरित साहित्यिक भाव जो पुष्पित और पल्लवित होकर हाइकु संग्रह के रूप में समाज के पटल पर आमजनों के लिए समर्पित होने जा रहे है। ऐसा कहा जाता रहा है कि प्रत्येक रचनकार का नयी कृति के साथ नया जन्म होता है। कलमकार मनीष कुमार जी द्वारा प्रस्तावित इस हाइकु संग्रह में कवि का चिंतन स्पष्टरूप से समाज और देशकाल के समसामयिक विषयों पर दिख रहा है। जिसमें अनेक तथ्य ऐसे हैं जैसे लगता है कि कवि आँखों देखा हाल सुना रहा है। तात्पर्य ये कि उक्त संदर्भित तथ्य पर कवि ने गहरा चिंतन किया है। उदाहरण स्वरूप इस पुस्तक के कुछ अंश देखें …
प्रेम दिवस–
नवयुवती पर
चाकु से वार
(हाइकु क्र.-40)
प्रेम दिवस–
रेलवे ट्रैक पर
युगल शव
(हाइकु क्र.-45)
उपरोक्त दोनों हाइकु में वर्णित तथ्यों का संदर्भित संदर्भ आम जनता तथा समाजिक सरोकार के साथ-साथ युवापीढ़ी के लिए संदेश भी है। रचना में सरलतम शब्दों का प्रयोग है, जिससे पाठक भी कवि का आशय, आसानी सें समझ आ जाएगा। इस पुस्तक में सम्मिलित सभी हाइकु का सरोकार सामाजिक तथ्यों और सामायिक गतिविधियों से है। सामाजिक प्रवाह की दिशा और स्थिति से कवि पूर्ण रूप से प्रभावित जान पड़ता है।

भारतीय साहित्य के इतिहास में हाइकु काव्य विधा का उल्लेख बहुत कम देखने को मिलता है। कवि मनीष कुमार ने अपने प्रक्कथन में इस विधा पर विशेष प्रकाश डाला है। जब मैंने इस पुस्तक के प्रक्कथन का अध्ययन किया तो मुझे लगा कि कविवर का अध्ययन और चिंतन, शोधात्मक्त शैली से परिपूर्ण है। यानि कवि कुछ लिखने से पहले गम्भीर चिंतन करता है। और चिंतन के प्रमाणिकता के लिए अन्य लेखकों के ग्रंथ का पठन और उस पर चिंतन-मनन करता है, विवेचना भी करता है तब जाकर अपनी अनुभूति और अभिव्यक्ति प्रकट करता है। कवि ने साहित्य को अपने जीवन की साधना बनाने के लिए कठिन परिश्रम और तप भी किया है। प्राय: लम्बी रचनाओं का सृजन करना आसान होता है। और हाइकु एक ऐसी विधा है, जिसमें मात्र तीन पक्तियाँ ही होती हैं। जिसमें कारण और परिणाम दोनों दर्शाना पड़ता है। इस विधा के व्याकरण के अनुसार प्रथम पंक्ति में पाँच, द्वितीय पंक्ति में सात, और तृतीय पंक्ति में पाँच वर्ण होते हैं। अर्थात कुल सत्रह वर्ण में रचना पूरी करनी होती है। इसमें कवि की दक्षता और सिद्धहस्तता सिद्ध होती है। हाइकु एक जापानी विधा है, जो भारत देश में भी लोकप्रिय है। हाइकु लघु कविता के रूप में लिखा जाता है। भारतवर्ष के साहित्यिक इतिहास में इस विधा की चर्चा भले ही कम देखने को मिले पर वैश्विक स्तर पर इस विधा का महत्व काफी है। कविवर मनीष कुमार श्रीवास्तव द्वारा हाइकु विधा के माध्यम से रेखांकित तथ्यों का तथ्यात्मक संदर्भों की संदर्भित कथन और कवि का आशय सारगर्भित तथा अति महत्वपूर्ण है। भारतवर्ष में इस विधा के प्रेरणास्रोत महान साहित्यकार रविन्द्रनाथ टैगोर को माना जाता है या यूँ कहिए, भारत में इस विधा को लाने का श्रेय टैगोर जी को है। जैसा की मनीष कुमार जी ने अपने प्रक्कथन में भी कहा है,

“कवि सदैव आशावादी होता है और साहित्य जगत का विधाता भी। जो देखता है उस पर वृत्तांत तैयार करता है। कवि का मनमस्तिष्क कभी खाली नहीं रहता है। उसके मनमस्तिष्क पर विचारणीय प्रश्न उमड़ता-घुमड़ता रहते हैं”।

इसका स्पष्ट उदाहरण कविवर मनीष कुमार के लेखन में देखने को मिल रहा है। इस हाइकु क्षितिज मे ऐसे अनेक प्रसंग पर कवि की लेखनी चली है जो समाज के यथार्थ को रेखांकित करती है।
लॉकडाउन–
सूनी सड़क पर
पैदल यात्री
(हाईकु क्र. 07)
जन्म दिवस–
मूर्ति पर धूल की
मोटी परत
(हाईकु क्र. 30)
उपरोक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि प्रबुद्धजनों और प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करना चाहता है। वैश्विक महामारी कोरोना के कारण लॉकडाउन की स्थिति पर भी कवि विचारणीय प्रश्न उठा कर संदेश देना चाह रहा है। जिस पर प्रशासन और आमजन विचार करें। और दूसरे तथ्य में कवि कहता है कि महानगर हो या शहर का चौक चौराहा और उद्यानों या पार्कों में महापुरुषों की प्रतिमा लगी हुई है जिस पर धूल की मोटी परत जमी रहती है। महापुरुषों का जन्मदिन भी मनाते हैं। उसी विषय को कवि संक्षिप्त रूप से रखते हुए समाज को आइना दिखाना चाह रहा है। प्रेमप्रसंगों का वर्णन करने में भी कवि कुशल है । अर्थात प्रेम के महान और विकृत दोनों रूपों के वर्णन में कुशल ।
रात्रि प्रहर —
मोबाइल में पिया
वीडियो काल
(हाइकु क्र.52)
“प्रकाशःएक द्युति” (हाइकु क्षितिज) में कवि मनीष कुमार श्रीवास्तव की अनुभूति और अभिव्यक्ति में गाँव-शहर, प्रकृति, सौदर्य, प्रेम-प्रसंग आदि विषयों का समागम है। कवि की लेखनी ने काव्य सागर को शब्द-गागर में भरने का सार्थक प्रयास किया है। कविवर कि इस श्रमसाधना पर कुछ लिखने का सुअवसर मिला, इसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ। इस पुस्तक के सृजनकर्ता लेखक एवं कवि श्री मनीष कुमार श्रीवास्तव जी और सम्पादक श्री विकास शर्मा ‘दक्ष’ जी को कोटि-कोटि बधाई और साधुवाद।

समीक्षक
राज नारायण द्विवेदी
अम्बिकापुर छत्तीसगढ़
Raj Narayan divedi

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