shatranj ke khilari 1977

शतरंज के खिलाड़ी प्रेमचन्द की वह कहानी है, जिसमें उन्होंने डलहौजी की हड़प नीति का शिकार बनते अवध की कहानी को दर्शाया है, जो अवध के नवाब वाजिद अली शाह के नेतृत्व में ऐशो आराम में बेफिक्र होकर सोया हुआ था और उसे अपनी रंगीनियों से फुर्सत नहीं थी। प्रेमचन्द की यह कहानी इसी पृष्ठभूमि में अवध के दो जागीरदारों मिर्जा सज्जाद अली और मीर रोशन अली की आरामतलबी और शतरंज प्रेम की कहानी कहती है, जिसमें ये दोनों अंग्रेजों के खिलाफ वाजिद अली शाह के संभावित युद्ध में शामिल होने से बचने के लिए एक मस्जिद में जाकर शतरंज खेलते हैं और मामूली बात पर आपस में भिड़कर ख़त्म हो जाते हैं। पतनोन्मुखी अवध के समाज के इस चित्रण को सत्यजीत राय इसी नाम से सन 1977 में फ़िल्म बनाकर चित्रपट पर उकेरते हैं और अमिताभ बच्चन का सूत्रधार के रूप में प्रयोग करते हुए कथा में सिनेमा की आवश्यकता के अनुरूप कतिपय परिवर्तन भी करते हैं, जैसे – मीर और मिर्ज़ा का अंत में मरना न दिखाना, मीर साहब की पत्नी के आशिक अकील की कथा जोड़ना, कैप्टन विल्सन और जनरल आउट्रम की कथा जोड़ना, अब्बा जानी का प्रसंग, कल्लू नाम के लड़के की कथा आदि लेकिन ये प्रसंग कहानी की अन्विति को प्रभावशाली बनाने का काम करते हैं। टॉम आल्टर के पात्र कैप्टन विल्सन को प्रभावशाली बनाने के लिए सत्यजीत राय ने फ़िल्म की शूटिंग से छह माह पहले टॉम को पत्र लिखकर उनके कुछ बाल मांगे थे ताकि उनके लंबे बाल दिखाने के लिए उनके बालों के रंग की ही विग तैयार की जा सके। सत्यजीत राय इतनी छोटी छोट बातों को भी ध्यान दिया करते थे जो इस फिल्म में सर्वत्र परिलक्षित होता है। उन्होंने इस फ़िल्म में पात्रों का चयन इतना उचित किया है कि प्रतीत होता है मानो ये सब सन 1856 के अवध के ही लोग हों। फ़िल्म में सर रिचर्ड एटनबरो ने अवध के रेजिडेंट जनरल आउट्रम की भूमिका निभाई है, जिन्होंने बाद में गांधी फ़िल्म बनाई। भारत की गरमी से परेशान होता देख सत्यजीत राय ने सर रिचर्ड एटनबरो के लिए वातानुकूलित कार की व्यवस्था की जो उस समय कलकत्ता में केवल बंगाली अभिनेता उत्तम कुमार के पास ही थी। राय साहब के कहते ही उत्तम कुमार ने अपनी कार सर रिचर्ड एटनबरो के लिए भेज दी थी ताकि खाली समय में वे उसमें आराम कर सकें। इस फिल्म मेंसंजीव कुमार, सईद जाफरी, अमजद खान, टॉम आल्टर, सर रिचर्ड एटनबरो, शबाना आज़मी, फरीदा जलाल, फारुख शेख, लीला मिश्रा, विक्टर बनर्जी, डेविड, आग़ा, वीणा सभी ने अपने करियर का बेहतरीन अभिनय किया है और प्रेमचन्द की कहानी को नए सिरे से प्रस्तुत करते हुए सत्यजीत राय ने भी इस बात का ध्यान रखा है कि कहानी की आत्म जीवंत रहे। आज हॉटस्टार पर इस फ़िल्म को देखते हुए मुझे लखनऊ की वे गलियां जेहन में ताजा हो गईं, जिनमें बचपन और किशोरावस्था में मैं न जाने कितने बार गुजरा था। फ़िल्म की प्रस्तुति शैली अद्भुत है और अवध को इसके मूल रूप में पेश करने में सफल है। सत्यजीत राय के सिने कौशल को नमन।

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