तू स्वर की देवी, माँ वीणापाणि,
शुभ्रकमल सिंहासना ।
ममतामयी मूरत ,बुद्धि की सूरत ,
प्रेम पूरण प्रति प्रेरणा ।
‘अजस्र ‘ तेरे चरणों में बैठा ,
कर जोड़े, करता माँ वंदना ,
ये वंदना ,ये वंदना ।
तू स्वर की देवी …..
ब्रह्मतनया तू ,हंसवाहिनी ,
वेदमुखी तू सृजन कर ।
सात सुरों की तू स्वर-सरिता ,
वीणा में तेरे संगीत प्रखर ।
‘अजस्र’ ज्ञान है मूढ़ बेसुर में ,
वीणा तारों को झनकारना ,
झनकारना, झनकारना ।
तू स्वर की देवी, माँ वीणापाणि,
शुभ्रकमल सिंहासना ।
ममतामयी मूरत ,बुद्धि की सूरत ,
प्रेम पूरण प्रति प्रेरणा ।
‘अजस्र’ तेरे चरणों में बैठा ,
कर जोड़े, करता माँ वंदना ,
ये वंदना ये वंदना ।
तू स्वर की देवी ….
तम रूपी जग में अज्ञान प्रसारित ,
ओझल सृष्टि उसमें जाती मही।
सूखी मसि ,कलम अवरुद्ध हो,
वाणी जाए ना अब तो कही ।
ज्ञान प्रवाह तेरा हो जन-जन में ,
जगत विद्व हो सभी मना ,
सभी मना ,सभी मना ।
तू स्वर की देवी, माँ वीणापाणि,
शुभ्रकमल सिंहासना ।
ममतामयी मूरत ,बुद्धि की सूरत ,
प्रेम पूरण प्रति प्रेरणा।
‘अजस्र’ तेरे चरणों में बैठा ,
कर जोड़े , करता माँ वंदना ,
ये वंदना, ये वंदना ।
तू स्वर की देवी …..
कल-कल झरने ,उड़ते पंछी ,
बहती हवा संसार में ।
चिड़िया चूं चूं ,या घनगर्जन ,
सब स्वर सुर और ताल में ।
ऐसे ही स्वर मेरे गीतों में भरके ,
वाणी को मेरी निखारना,
निखारना ,निखारना ।
तू स्वर की देवी, माँ वीणापाणि,
शुभ्रकमल सिंहासना ।
ममतामयी मूरत ,बुद्धि की सूरत ,
प्रेम पूरण प्रति प्रेरणा ।
‘अजस्र’ तेरे चरणों में बैठा ,
कर जोड़े, करता माँ वंदना ,
ये वंदना ,ये वंदना ।
तू स्वर की देवी …..
हाथ तेरा हो, शीश पे मेरे ,
वाणी बुद्धि मेरी प्रखर बने ।
शब्द स्वरों से निथर के निकले ,
आशीष तेरा ‘अजस्र’ फले ।
बुद्धि मेरी रुद्ध मन्द सी बोझिल ,
पल पल उसको तू सँवारना ,
सँवारना, सँवारना ।
तू स्वर की देवी, माँ वीणापाणि,
शुभ्रकमल सिंहासना ।
ममतामयी मूरत ,बुद्धि की सूरत ,
प्रेम पूरण प्रति प्रेरणा ।
‘ अजस्र ‘ तेरे चरणों में बैठा ,
कर जोड़े करता माँ वंदना ,
ये वंदना, ये वंदना ।
तू स्वर की देवी …..