कवि हमेशा सीमाएँ तोड़ता है, वे चाहें जिस भी प्रकार की हों— राजनीतिक, समाजिक, धार्मिक अथवा आर्थिक। मनुष्य सामाजिक प्राणी है और समाज के बिना उसका काम नहीं चलता, इसलिए वह सामाजिक नियमों में आसानी से बँध जाता है। यहाँ… Read More
पुस्तक समीक्षा : भूख परोसती है अनुपमा गाँगुली का चौथा प्यार
हिंदी साहित्य में नई वाली हिंदी के नाम से मुकाम बना रहे आज के लेखकों में प्रेम सबसे महत्वपूर्ण और केन्द्रीय बिंदु बनकर उभरा है। लेकिन अभी तक मुझे उस तरह के प्रेम में डूबे कहानी के नायक या नायिकाएँ… Read More
पुस्तक समीक्षा : विज्ञप्ति भर बारिश में समय के संक्रमण से जूझती कविता
हिन्दी साहित्य आदिकाल से लेकर आज तक के दो हज़ार वर्ष से भी अधिक का एक दीर्घकालिक समयांतराल पार कर चुका है। इस दौरान इसमें कई आंदोलन हुए, कई विचारधाराओं ने जन्म लिया तथा अपनी साँसें स्वर्णिम इतिहास के रूप… Read More
बुक रिव्यू : हाशिये के लोगों में झाँकती : किन्नर समाज संदर्भ ‘तीसरी ताली’
यह पृथ्वी अनेक विचित्रताओं से युक्त है। और उतना ही विचित्र और रहस्यों स युक्त हैं यह ब्रह्मांड, उसके चराचर जीव जगत। मनुष्य का जब से जन्म अथवा उद्भव हुआ है तब से लेकर अब तक उसने कई आविष्कार किए… Read More
पुस्तक समीक्षा : प्रेम की ताकत से सामाजिक बदलाव का बिगुल फूंकता उपन्यास ‘नेत्रा’
ढाई आखर का शब्द ‘प्रेम’ विश्व साहित्य में शायद सर्वाधिक चर्चित या कि विवादित रहता आया है। पुराख्यानों से लगायत अधुनातन साहित्य तक काव्य और कथा सर्जना के केन्द्रीय तत्व के रूप में प्रेम को व्यापक स्वीकृति एवं अभिव्यक्ति मिलना… Read More