यह पृथ्वी अनेक विचित्रताओं से युक्त है। और उतना ही विचित्र और रहस्यों स युक्त हैं यह ब्रह्मांड, उसके चराचर जीव जगत। मनुष्य का जब से जन्म अथवा उद्भव हुआ है तब से लेकर अब तक उसने कई आविष्कार किए और उनके सकारात्मक, नकारात्मक प्रभाव भी उसने झेले हैं। धर्म, समाज, राजनीति, विचारधारा, वर्ण, जाति, रूप, रंग के आधार पर भी इस दुनिया में कई विचित्रताएँ हैं। उन्हीं में से एक विचित्र कही जाने वाली किन्तु हम जैसी साधारण मनुष्य जाति है- जिसे दुनिया किन्नर, क्लीव, नपुंसक, बाय्यका, छक्का और न जाने क्या-क्या कहती है।
‘किन्नर समाज सन्दर्भ तीसरी ताली’ पार्वती कुमारी की पहली ही किताब उस दुनिया का चक्कर लगाती है और हमें अवगत ही नहीं कराती अपितु कदम-दर-कदम उनकी दुनिया और दु:खों से भी रूबरू कराती है। इंसानों और उससे पहले कौन थे? कौन सी प्रजातियाँ थीं? और अब इंसानों में स्त्री पुरुष के इतर कौन से लिंग हैं? उनका जीवन कैसा है? इन तमाम सवालातों से भी लेखिका जूझती है, तो उसका जूझना सफल ही नहीं होता अपितु रोचक जानकारियों के साथ-साथ हमें अनेक रसाभावों में भी गोते लगवाता है। मनुष्य जाति की संरचना और इतिहास पर बात करते हुए लेखिका बी० एस गुहा का संदर्भ लेते हुए लिखती है – “भारतीय सामाजिक संरचना में कुल छ: प्रजातियाँ मानी हैं – नीग्रेटो, प्रोटो-ऑस्टलाइड, मगोलायड इनमें प्रमुख है, इनमें अंतिम प्रजाति नोर्डिक थी। जिसका 1700 ई० पू० में धीरे-धीरे पतन होने लगा था। इतिहास और संरचनाओं की गली से होते हुए यह किताब धर्म पर पहुँचती है तो धर्म, कर्म, पुनर्जन्म, पुरुषार्थ आदि ऋणों से उऋण होने का प्रयास करती है। धर्म की यह यात्रा वर्ण और परिवर्तनशील जाति व्यवस्था से होते हुए उसकी शुचिताओं पर भी समझ विकसित करती है। जातियों का यह समूह समाज कहलाता है और उस समाज में ही भिन्न-भिन्न प्रकार के लोग निवास करते हैं और अपनी सामाजिक आवश्यकताएँ पूरी करते हैं।
पार्वती केवल किन्नरों ही नहीं अपितु उन उपेक्षित स्त्रियों की सामाजिक स्थिति को भी स्पष्ट रूप से बयाँ करती है जो भारतीय समाज के इतना विकसित हो जाने के बाद भी आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। मर्दवादी समाज की जकड़नो में बंद उस स्त्री के दुखों को एक स्त्री ही भली भांति समझ सकती है। हालांकि यह भी कुछ के लिए विवाद का विषय हो सकता है, किन्तु स्त्रियों का समाज हमेशा से एक सा रहा है। उनका भूत इतना कटु हो चला है कि उसने वर्तमान को भी अपनी चपेट में लिया हुआ है। जिस कारण उनका जीवन अत्यंत त्रासद बना हुआ है और इस त्रासद जीवन को जिया नहीं ढोया जाता है। उसे स्त्री और किन्नर दोनों ही समान रूपों में भिन्न वैश्विक धरातलों, मानदंडों के आधार पर ढोते आ रहे हैं। पति के लिए चरित्र, संतान के लिए ममता, समाज के लिए शील और देश के लिए करुणा संजोने वाली समझी जाती रही स्त्री की स्थिति उस किन्नर समाज से कुछ ही भिन्न है।
‘किन्नर समाज संदर्भ तीसरी ताली’ पुस्तक स्त्री, किन्नरों के अलावा समाज के अन्य शोषित वर्ग दलितों, आदिवासियों पर भी अपनी एक अलग समझ विकसित करने का मौका देती है। विमर्शों के इस दौर में धूमिल होती अस्मिताओं और बौद्धिकता में किन्नरों को लेकर लोगों में रूढ़िगत परम्पराएँ विद्यमान हैं। इसी कारण वे स्त्री और पुरुष के इतर किसी तीसरे को शामिल करने के बारे में सोच ही नहीं पाते। लिंगधारी समाज के इस वितंडे में केवल उन्हीं का परचम लहराएगा, ऐसा उनका मानना है। इसीलिए वे लिंगविहीनों को इस दुनिया में जीना अभिशाप मानते हैं। इन अभिशप्त लिंगियों के जन्म की अवधारणा भी हमें इस पुस्तक को पढ़ने पर भली-भांति समझ आती है। किन्नरों को लेकर जब से उन्होंने तथा दूसरे सामान्य लोगों ने उनके हितों में आवाज उठानी शुरू की है तब से कुछ अंश परिवर्तन अवश्य हुआ है, किन्तु बकौल लेखिका ‘इस बीच मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालय का कहना है’- “हिजड़े पुरुष ही हैं और उन्हें महिला नहीं माना जा सकता। उच्च न्यायालय ने एक निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा है कि हिजड़े तकनीकी तौर पर पुरुष ही होते हैं।” इस विचार को लेखिका जितना तर्कसंगत नहीं मानती उतना ही मैं भी इसे जायज नहीं मानता क्योंकि उनके जीवन को किसी एक लिंग में बांधकर परिभाषित करना नामुनकिन है।
किन्नरों का इतिहास हमारे पुराणों, आख्यानों से भी प्राचीनतम है और अनेक राजाओं, महाराजाओं की कहानियों में भी हमने इन्हें पढ़ा, सुना है। बावजूद इसके हमने इनको नजरअंदाज ही करने की कोशिश की है हमेशा। लिंगधारी समाज में बधाई माँगकर जीवनयापन करने वाले इस समाज का सम्पूर्ण जीवन गुमनामी के अंधेरों में कैद रहने पर मजबूर है। कुल पाँच अध्यायों में विभक्त यह पुस्तक किन्नर समाज के सैद्धांतिक, व्यवहारिक, साहित्यिक और सामजिक यथार्थ को पाठक के समक्ष बेहद साफगोई से रखती हैं। भारतीय समाज की संरचना और किन्नर समाज, हिंदी साहित्य में किन्नर समाज, समकालीन समय में किन्नर समाज, तीसरी ताली की कथा संरचना और किन्नर समाज की भाषा का सामाजिक यथार्थ। इन पाँच अध्यायों के समायोजन के इतर तीसरी ताली उपन्यास के लेखक प्रदीप सौरभ से लेखिका पार्वती कुमारी की लंबी अंतरंग बातचीत, राधा किन्नार तथा कोथी किन्नर विक्रमादित्य से भेंट भी इसमें शामिल है। यमदीप, किन्नर कथा, तीसरी ताली, मैं भी औरत हूँ, गुलाम मंडी, पोस्ट बोक्स नंबर- 203 नाला सोपारा, मई पायल आदि उपन्यासों तथा किन्नर आधारित कहानियों, कविताओं को पढ़ने, समझने, गुनने के बाद जो मथा गया साहित्य है, वह यह पुस्तक रूप में उपस्थित है।