हिंदी साहित्य में नई वाली हिंदी के नाम से मुकाम बना रहे आज के लेखकों में प्रेम सबसे महत्वपूर्ण और केन्द्रीय बिंदु बनकर उभरा है। लेकिन अभी तक मुझे उस तरह के प्रेम में डूबे कहानी के नायक या नायिकाएँ नजर नहीं आए। एक दिन यूँ ही एक सोशल परिचित के साथ फेसबुक पर बात हुई। तब उन्होंने विजय श्री की एक पोस्ट का लिंक मेरे हाजिर कर दिया। उस पोस्ट को पढ़ने के तुरंत बाद विजय श्री का पहला कहानी संग्रह ‘अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार’ अमेजन से ऑर्डर कर दिया। एक-दो कहनियाँ पढ़ने के बाद उसे अनमने ढंग से वापस किताबों की शेल्फ में करीने से मैंने सहेज कर रख दिया। इस बीच कुछ नए लेखकों की किताबों की समीक्षाएँ करते हुए ‘अनुपमा गांगुली’ फिर से मेरी नजरों के सामने आ गई। हालांकि फेसबुक पर विजय श्री की पढ़ी गई पोस्ट और इस किताब से दोनों का कोई सम्बन्ध न था। खैर अनुपमा गांगुली एक बार फिर मेरे सामने कूद पढ़ी जैसे आतुरता से कह रही हो मुझे कब पढोगे?

देर रात और उसके बाद अगले दिन सुबह जब इस किताब से फारिग हुआ तो लगा पढ़ने का सुख भी अलग होता है। हालांकि मेरी कम समझी और कम अक्ली के कारण मैं कई कई लाइनों को कई दफ़ा पढ़ता हूँ। ऐसा ही इस किताब में भी हुआ। विजय श्री अब एक जाना पहचाना नाम साहित्य की दुनिया में बन चुकी हैं। साहित्य ही एकमात्र ऐसी जगह है इस दुनिया में जहाँ क़िस्मत नहीं बल्कि आपका लेखन आपको पहचान दिलाता है। पहले पहल मुझे यह कोई उपन्यास सा लगा था किन्तु जब यह हाथ में आया तो मुँह से एक लम्बा सा उंह… कहानियाँ है। शब्द टपक पड़ा। मेरा न पढ़ने का मन तभी हो गया था। पढूं न पढूं की उहापोह में यह किताब कुछ बाद में पढ़ी गई तो मलाल हुआ कि यह किताब पहले क्यों न पढ़ी। खैर देर आए दुरस्त आए। हिंदी साहित्य में इस तरह की नई, कलात्मक, बिम्ब और प्रतीक शैली से भरी हुई कहानियाँ आजकल कम लिखी जा रही हैं। विजय श्री इस सबके अलावा इस लिए भी दिल जीत लेती हैं कि उनकी कुछ एक कहानियों को यदि नाटक की शक्ल में आपके सामने प्रस्तुती देनी पड़े तो वे उसमें भी अव्वल दर्जा हासिल कर सकती हैं। विशेष कर ‘समंदर से लौटती नदी’ इस कहानी को नाट्यरूपांतरित करके नाटक की शक्ल में भी खेला जा सकता है। विजय श्री की एक अन्य कहानी ‘खुजराहो’ शुरुआत और बीच में थोड़ा परेशान जरुर करती है किन्तु जब इस कहानी का अंत होता है तो किसी फिल्म की तरह पूरी कहानी आपके दिमाग में फिट बैठ जाती है।

इस कहानी संग्रह की कहानियाँ ‘पहले प्रेम की दूसरी पारी’, ‘भेड़िया’, ‘अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार’, ‘समंदर से लौटती नदी’, ‘एक उदास शाम के अंत में’, ‘खिड़की’, ‘खुजराहो’, ‘चिड़िया उड़’ और ‘विस्तृत रिश्तों की संक्षिप्त कहानियाँ’ मिलाकर कुल 9 कहानियाँ इस संग्रह में दर्ज हैं। भेड़िया और खिड़की कहानी मुझे अपने स्तर पर सबसे अधिक पसंद आई और वहीँ खुजराहो और एक उदास शाम के अंत में थोड़ा कमतर।

खैर जब इतना सब अच्छा अच्छा काफ़ी टाइम बाद पढ़ने को मिला है तो हमें भी सकारात्मक होना चाहिए। हमेशा नकारात्मक ढूंढने वाला मुझ जैसा आदमी अगर यहाँ सकारात्मकता खोज रहा है तो आप समझ सकते हैं कि मैं क्या कहना चाह रहा हूँ। नई वाली हिंदी के नाम पर आए इस संग्रह को यदि कोई सहेज कर भविष्य में विजय श्री पर शोध कार्य करना चाहे तो उसके लिए यह संग्रह बेहतरीन होगा। विजय श्री प्रतीक, बिम्ब के लिए ही नहीं अपितु नए शब्दों की खोज के लिए भी साहित्य में अपना एक अलग मुकाम बना पाने में कामयाब होगी।

किताब की कहानियों से कुछ विशेष आपके लिए खोज कर निकाली गई पंक्तियाँ यहाँ हाजिर हैं जिनसे आप इस संग्रह और लेखिका की लेखनी का सहज अंदाजा लगा सकते हैं। विशेष कर कहानी लिखने का जो अंदाज है वह वर्तमान काल से होते हुए भूत और फिर वर्तमान में जिस तरह आता जाता है वह अंदाज नएपन को दर्शाता है।

बियर के साथ अब वह कुछ मुखर होने लगी है। वह नई-पुरानी, इधर-उधर की बतिया रही है। पुराने दोस्त, कॉलेज के कुछ मज्दार किस्से, पति, बच्चे, घर-बार। किन्तु वह कुछ भी अनर्गल सुनना नहीं चाहता। ये उसके लिए वांछित बाते नहीं हैं। वह वक्त के साथ धुंधला गए अपने रूमानियत भरे पलों को उसके साथ साझा और ताजा करना चाहता है। वह चाहता है बगल वाले युवा लड़के की तरह वह उसकी सुरमई आँखों में डूबकर बातें करे और बदले में वह उस लड़की की तरह अपनी शर्मीली हँसी के जर्रे बिखेरती रहे। (पहले प्रेम की दूसरी पारी-कहानी)

इस तरह की समस्या में अक्सर कारण ही उसका निदान भी होता है और डॉक्टर उसके डर को पकड़ पाए यह तब तक सम्भव नहीं जब तक कि वह उन्हें अपने भीतर दाख़िल होने की अनुमति नहीं देता। किन्तु अपनी निजी संवेदनाओं के तंतुओं को वह किसी भी साझे के दायरे से समेट चुका है। वह आजकल चुप रहता है। कई-कई रोज बिना एक शब्द कहे।…..उसे शराब नहीं चढ़ती। औरत का गर्म जिस्म उसे उत्तेजित नहीं करता। उसके सामने दरवाजे पर दस्तकें होती हैं, फोन टर्राता रहता है और वह बिना कोई हरकत किए घंटों दीवार को घूरता रहता है। …… मौत वो सबसे बुरी चीज नहीं जो हमारे साथ हो सकती है, बिना मौत भी हम कई बार मरते हैं।  (भेड़िया- कहानी)

अचानक उसने देबू को कसकर अपनी गोद में भींच लिया। उसकी नसें सख्त हो गईं उसने पल्लू फैलाकर एक पल में ब्लाउज के हूक खोल दिए। देबू नदीदा-सा छाती से चिपट गया। अब उसके लिए जैसे वहाँ कोई न था। उसे किसी की शर्म न थी। उसके कानों में कोई आवाज न थी। न पंखे की खिटट-खिटट, न भीड़ की किच-किच, न उसे पुकारती कोई आवाज। दहाड़े मारता हुआ देबू था और वह थी। वह थी और देबू था। रबड़ की चाभियाँ मुठ्ठी में फ़िजूल-सी पड़ी थीं। उसने खिड़की से बाहर हाथ निकाला और मुठ्ठी खोल दी।(अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार– कहानी)

साहित्य की कहानी और उपन्यास एक ऐसी विधा है जिसमें आपको उसके सभी तत्वों पर खरा उतरना लाजमी होता है तभी वे कहानियाँ सही मायने में उस खाँचे में फिट बैठती है जैसी परम्परा और बँधी-बंधाई परिपाटी को भी विजयश्री बखूबी तोड़ती है। और साहित्य की एक ऐसी भूख उनके लेखन में दिखाई देती है जो उन परम्पराओं और मायनों को अपने तथा अपनी कहानी के पात्रों के अनुकूल ढाल पाने में कामयाब होती हैं।

पुस्तक – अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार
विधा – कहानी संग्रह
लेखिका – विजय श्री तनवीर

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