गाँव के एक घर में आग लग गई थी, वहीं गाँव के मंदिर में लोग नारियल फोड़ रहे थे। जिस घर में आग लगी थी उस घर का लड़का एक रात किसी दूसरे गाँव की लड़की के साथ उस मंदिर में अकेले पाया गया था। गाँव के कई लोग यह भी कह रहे थे कि यह हर रात इस लड़की को मंदिर लेकर आता है। उस दिन उस लड़के की जमकर मरम्मत की गई और गाँव के चौधरियों और पंडितो ने उसे और उसके बाप को मंदिर में आने से खबरदार कर दिया।  लड़के का बाप गंजेड़ी है, उसे ना तो घर से लेना देना है ना ही लड़के से। उसका लड़का 35 साल का कुंवारा है पर उसके बाप को कोई खबर नही है। घर में एक भैंस बंधी हुई है, जो गाँव में सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंस है। ये दोनों बाप बेटे इसी भैंस के दूध के सहारे चल रहे है, सारा दूध बाहर गाँव जाता है क्योंकि गाँव में उन्हें कोई पूंछता नही पर उस भैंस से सभी जलते है, क्योंकि उसके जैसी कोई दूसरी पूरे गाँव में नही आज उस भैंस को आग की लपटें सामने दिखाई दे रही है, शायद उसे अपनी मृत्यु ही सामने दिखाई दे रही है क्योंकि उसके अथक प्रयासों के बाद भी वह उस लोहे की संकरी जो उसके गले में बाँधी गई है उसे तोड़ पाने में असफल हो चुकी है।
घर में रहने वाले दो प्राणियों की कोई खबर नही है। और लोग भी यही कह रहे है कि पापी और अधर्मियों के घर पर भगवान का क्रोध प्रकट हुआ है। कोई उस आग को बुझाने का यत्न नही करना चाहता था सब अपने कार्यो में व्यस्त थे। जो भी उस घर के सामने से गुजरता तो चार गालियाँ बकता और लगी हुई आग से अपने मन में लगी हुई आग को ठंडा करता। चूंकि आज उस मंदिर में किसी सेठ ने भंडारे का आयोजन किया है तो सभी गाँव वाले आज उसी में व्यस्त है और कई गाँव से भी लोग उस गाँव में पहुँच रहे हैं।
तभी अचानक आग का रुख बदला और आग की लपटें मंदिर के पंडित जी की सार तक जा पहुँची। अब आग के लिए तो दुनिया इतनी भी बड़ी नही है जहाँ वह ना पहुँच सके। वह तो अपनी लपटों से उसके चारों ओर की सारी चीजों को अपने आप में समाहित कर लेना चाहती है।
तभी किसी ने पंडित जी को खबर कर दी, पंडित जी दौड़ते भागते आये, उन्होंने देखा आग भूसे के ढेरे को पार करते हुए उनकी गौशाला तक पहुंच चुकी है। पंडित जी को शायद यह मंजर सहन नही हुआ क्योंकि दूसरे ही क्षण पंडित जी गश खाकर जमीन की शरण ले चुके थे, और गाँव वाले आग बुझाने के वे सारे प्रयास कर रहे थे जिनके विषय में वे अभी तक वे जानते हुए भी अनजान थे।
पंडित जी के मुँह पर पानी छिड़कर उन्हें होश में लाया गया, वे गुहार मचाते और भगवान को मनाते रहे। पर खुद उनकी भी हिम्मत नही थी कि वे आग को बुझा सके।
इधर जिस घर में आग लगी थी वह घर और उसकी भैंस आग की भेंट में चढ़ कर स्वाहा हो चुके थे। किसी की हिम्मत ही नही हुई की भैंस की जान बचाई जाए, हिम्मत तो हुई होगी पर शायद किसी की नीयत नही थी कि भैस को बचा लेना चाहिए था।
अब पंडित जी के घर पर पानी बराबर डाला जा रहा था। पर दृश्य यह था कि गाँव के किसी विद्वान पुरुष ने अपना दिमाग लगाते हुए कहा ” आग जहाँ पर लगी है उसे बुझाये बिना पंडित जी के यहाँ की आग बुझाना व्यर्थ है, उसे भी बुझाना होगा नही तो आग बांस के सूखे पेड़ों तक पहुंच कर पता नही कहाँ पहुँच जाए”।
तभी वहां जल चुके घर का मालिक गांजा फूंक कर चला आता दिखाई दिया, उसने देखा कि पंडित जी की सार में आग लगी हुई है और आग गौशाला तक पहुंच गई है। लोग चाह तो रहे हैं कि उन मवेशियों की जान बचाई जाए पर आग के बीच में उन मवेशियों को निकाल पाने की हिम्मत किसी में नही थी।
अभी तक उसने अपने घर का हाल नही देखा था, वह पंडित जी के सार में लगी आग को देख कर खड़ा खड़ा भौचक्का हो रहा था, अचानक ही उसने गौशाला की ओर बढ़ना शुरू किया, उसे आगे बढ़ता देख उसे किसी ने नही रोका टोका शायद हम उन्हें ही रोकते या टोकते है जिनके हम शुभ चिंतक होते हैं यहाँ तो उस गंजहे का कोई नही था, सबने उसे आगे जाने दिया।
पल भर की देर लगी और उसने सारे पशुओं को गौशाला से निकाल बाहर किया। वे सारे पशु पूंछ उठाकर सर पर पैर लेकर भागते नजर आये, और पंडित जी का बरेदी ” नौकर ” उनके लड़के के साथ उन्हें पकड़ते दिखे।
आग पर काबू पा लिया गया था पर अफ़सोस पंडित जी का सार भी जलकर ख़ाक हो चुका था। पंडित जी खामोश पड़े थे और लोग आपस में बातें करने में लगे हुए थे। दरअसल वे इस बात का विश्लेषण कर रहे थे कि पंडित जी को कितना नुकसान हुआ होगा।
तभी उस गंजहे को अपने घर की सुध आई वह जैसे ही आगे बढ़ा तो उसे उसका वह कच्चा घर जलकर खाक हो चुका हुआ दिखा। पहले तो उसे कुछ समझ नही आया शायद जब अपने पर आफत आती है तो समझ नही आती, ठीक वैसे ही उस गंजहे ने जब अपने घर की ओर देखा और घर की जगह जल चुका छानी छप्पर देखा तो वह चिल्ला उठा
” लाला कहाँ है?
लोगों का ध्यान उस गंजहे की तरफ गया। अब चूंकि उसने कुछ समय पहले एक साहसिक कार्य को अंजाम दिया था तो लोग उसे सहानुभूति देने के उद्देश्य से उसके पास पहुंचे पर पंडितजी पूर्ववत खामोश थे।
गंजहे ने फिर चिल्लाकर कहा “लाला कहाँ है”?
किसी ने कहा ” कहीं गया होगा आ जा जाएगा”।
गंजहे ने काँपते हुए स्वर में कहा ” कहाँ गा होइ। गए तो मैं रहे हौं डॉक्टर बुलामै। लाला कल से बीमार रहा, रात बुखार और कमज़ोरी से कई बार बेहोश होई जात रहा।
सबेरे वा मोसे कहिस के “काका डॉक्टर बुला दे नही ता मैं ना बची हौं”
 मैं डॉक्टर बुलामै गए रहौ। रस्ता मा साथी संगति मिलि गे, कहिन की भाई एक एक बार लई लीन जाय।
 फेर मोही सुधि बिसरि गै के मैं डॉक्टर का बुलामै निकले रहे हौ। मोर लाला बुखार से झुलसत रहा।
उस गंजहे की बात सुनकर कुछ लोग बांस के डंडों की सहायता से उस कच्चे घर के अंदर घुसे, सबसे पहले उन्हें भैंस जली हुई मरी पड़ी मिली यह वही भैंस थी जिसकी जान अगर वे चाहते तो बचा सकते थे।
कोठरिया का दरवाजा जल कर ख़ाक हो चुका था बस साँकर अभी भी लगी हुई थी। उन्होंने बांस के डंडे से प्रहार कर उसे तोड़ा तो उन्हें उस लड़के की जली हुई लाश मिली। यह दृश्य देखकर लोगों का हृदय विचलित हो गया, गंजहे ने जब अंदर झाँक कर देखा तो उसे उसके लड़के की खामोश हो चुकी अधजली लाश दिखी।
और दूसरी तरफ उसे उसी अवस्था में मृत्यु को प्राप्त कर चुकी उसकी भैंस दिखाई दी।
गंजहा ठीक उसी प्रकार जमीन पर गिरा जैसे कुछ समय पूर्व पंडित जी गिरे थे। पर पंडित जी का सब कुछ खत्म नही हुआ था, उनके अंदर अभी उम्मीद बरकरार थी क्योंकि उनके बहुत कुछ में से थोड़ा कुछ ही खत्म हुआ था। पर गंजहे के लिए अब बचा ही क्या था।
शायद इसीलिए उसकी देह कुछ ही क्षणों में ठंडी हो गई थी और शाम भी हो चली थी।
“पर इस बात का पता कभी नही चल पाया कि आग कैसे लगी या किसने लगाई।”

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