लगे हैं वनों की रक्षा में जो जमीन उनकी छीनी जा रही है। वनवासी वो जगसेवक हैं वो नींद उनकी छीनी जा रही है।। वो भी तो लगे हैं नित पर्यावरण की सुरक्षा संरक्षा में ही, प्राणवायु को को बचाने… Read More
ग़ज़ल : बैठा मैं सोच रहा था
अगर जिंदगी ना होती तो ये फ़साने ना होते, ना दर्द होते ना दुःख कभी नसीब में होते!! रोजाना ऑफिस जाने के झंझट से दूर रहता, ना हर सुबह जल्दी उठने को फिक्रमंद होते!! ना महीने की सैलरी पाने पर… Read More
कविता : खेत और खलिहान सजाया
जिसने अथक परिश्रम करके खेत और खलिहान सजाया जिसने खून-पसीना देकर मिट्टी में सोना उपजाया खुद भूखे रहकर भी जिसने दुनिया को भर पेट खिलाया आज अन्नदाता आखिर क्यों खेत छोड़कर सड़क पे आया सैंतालिस से वर्तमान तक आईं-गईं, कई… Read More
कविता : अपना ही राग अलापो
लिखे वो लेखक पढ़े वो पाठक। जो पढ़े मंच से वो होता है कवि। जो सुनता वो श्रोता होता है। यही व्यवस्था है हमारे भारत की। लिखने वाला कुछ भी लिख देता है। पढ़ने वाला कुछ भी पढ़ लेता है।… Read More
पुस्तक समीक्षा : अथर्वा मैं वही वन हूँ
पुस्तक : अथर्वा मैं वही वन हूँ लेखक : आनंद कुमार सिंह प्रकाशक : नयी किताब प्रकाशन, दिल्ली समीक्षक : विनोद शाही मानव जाति का भविष्य कविता में है “अपरा विज्ञानों के महाविकास के फलस्वरूप यहाँ पर गद्यदेश का विकास… Read More
गीत : किसान का हाल
चौबीस घन्टे रहता यो तै माटी गेल्या माटी अन्नदाता का हाल देख मेरी छाती जा सै पाटी 1 बिन पाणी बता क्यूंकर करै बिजाई रै नहीं टेम पै मिलते बीज , दवाई रै कदे खाद पै मारा – मारी ,… Read More
गीत : चार चांद लगा दिया
मेरे गीतों की सुनकर आवाज़ तुम। दौड़ी चली आती हो मेरे पास। और मेरे अल्फाजो को अपना स्वर देकर। गीत में चार चांद तुम लगा देती हो।। लिखने वाले से ज्यादा गाने वाले का रोल है। चार चांद तब लग… Read More
नई शिक्षा नीति में प्राथमिक स्तर तक की शिक्षा में मातृभाषा विषयक अवधारणा के निहितार्थ
नई शिक्षा नीति में बहुत से परिवर्तन लक्षित होते हैं । यह परिवर्तन समय की मांग भी थी क्योंकि 1986 के उपरांत बहुत सी स्थितियां बदली है जिससे हमारे शिक्षा नीति में भी परिवर्तन की मांग मुखर होने लगी थी… Read More