poem khet khalihan

जिसने अथक परिश्रम करके
खेत और खलिहान सजाया
जिसने खून-पसीना देकर
मिट्टी में सोना उपजाया

खुद भूखे रहकर भी जिसने
दुनिया को भर पेट खिलाया
आज अन्नदाता आखिर क्यों
खेत छोड़कर सड़क पे आया

सैंतालिस से वर्तमान तक
आईं-गईं, कई सरकारें
पर इनके हालात न बदले
तब गरीब थे, आज बिचारे

बनीं कई नीतियाँ लेकिन
इनमें कई विसंगतियाँ थीं
कृषि-क्षेत्र के बजट के अंदर
क्या बोलूँ कितनी त्रुटियाँ थीं

दिल्ली से अनुदान चला पर
बीच में थक कर चूर हो गया
अधिकारी की धौंस के आगे
हलचालक मजबूर हो गया

सही समय पर ऋण के बदले
बैंक प्रबंधक जमकर खाया
आज अन्नदाता आखिर क्यों
खेत छोड़कर सड़क पे आया

जग का पेट पालने वाला
करता है दिन-रात तपस्या
लेकिन कर्ज-भरोसे खेती
बनी आज की बड़ी समस्या

मंहगा बीज उधारी लेकर
जैसे-तैसे फसल उगाता
पर बिचौलियों के चक्कर में
आए दिन घाटा हो जाता

खाद की कीमत आसमान पर
और उपज की औने-पौने
कई बार हालात देखकर
मन की आँखें लगती रोने

एक तरफ कर्जे पर कर्जा
दूजी ओर मार मौसम की
घर में एक सयानी बेटी
बाहर साहूकार की धमकी

मान बचाने की चिंता में
उसने मौत को गले लगाया
आज अन्नदाता आखिर क्यों
खेत छोड़कर सड़क पे आया

जरा सोचिए और समझिए
नहीं बचेगी अगर किसानी
अगर अन्नदाता ना होंगे
कैसे चलेगा दाना-पानी

ऐसा ही यदि हाल रहा तो
कुछ भी नहीं संभल पाएगा
बिन अनाज के बोलो कब तक
मानव-जीवन चल पाएगा

इनकी पीड़ा समझें, इनको
हर मुश्किल से दूर निकालें
ये धरती के वरदपुत्र हैं
कुछ भी करके इन्हें बचालें

इनका संकट सुने सियासत
जटिल नीतियाँ, सरल बनाए
मिले मुकम्मल मोल उपज का
कोई नहीं दलाली खाए

कर्ज का नियम साधारण हो
और ब्याज भी कम से कम हो
बीमा से हो फसल सुरक्षित
ऋण अदायगी सरल-सुगम हो

अभी समय हे चेत जाइए
मत कहिएगा, नहीं चेताया
आज अन्नदाता आखिर क्यों
खेत छोड़कर सड़क पे आया

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