नई शिक्षा नीति में बहुत से परिवर्तन लक्षित होते हैं । यह परिवर्तन समय की मांग भी थी क्योंकि 1986 के उपरांत बहुत सी स्थितियां बदली है जिससे हमारे शिक्षा नीति में भी परिवर्तन की मांग मुखर होने लगी थी । समय के साथ परिवर्तनशीलता ही गतिशीलता को गति देती रहती हैं। आज नई शिक्षा नीति में प्राथमिक स्तर तक की शिक्षा में जो माध्यम मातृभाषा को बनाने की बात कही गई है, वह निश्चित रूप से बच्चों के हित में होगी । कुछ तथ्य जरूर विचारणीय है उक्त संदर्भ में ।
त्री भाषा सूत्र की संकल्पना हमारे यहां शिक्षा नीति में स्वतंत्रता के बाद आयोगों की सिफारिशों में भी अपनाने की वकालत की गई थी ।कोठरी आयोग इस संदर्भ में अपनी रिपोर्ट में विस्तृत चर्चा करता है। त्री भाषा सूत्र में एक अंतरराष्ट्रीय भाषा (अंग्रेजी) , एक राष्ट्रभाषा (हिंदी) और एक क्षेत्रीय भाषा की बात कही गई थी । आज इस नई शिक्षा नीति में मातृभाषा की जो बात की जा रही है वह उसी क्षेत्रीय भाषा की बात है।
प्राथमिक स्तर तक मातृभाषा में शिक्षण से बच्चों की समझ को विकसित करने में सरलता होगी। हम आप देखते हैं कि विभिन्न भाषाई परिवेश से आते हैं, जिससे बच्चों को भाषा समझने में कठिनाई होती थी, अब इस व्यवस्था के तहत वो हमारी भाषा को नहीं सीखेंगे, बल्कि हमें उनकी मातृभाषा को जानना है और उन्हें उसी भाषा में शिक्षा देना है । अब जिम्मेदारी शिक्षकों पर अधिक है । अब हमें उनकी भाषा सीखनी है और उन्हें उन्हीं की भाषा में सिखाना है ।
नई शिक्षा नीति का यह पहल बच्चों के हित में है। बच्चों को श्रम अब सीखने के लिए करना है । अब उनकी ऊर्जा विषयवस्तु को सीखने , जानने और समझने में लगेगी न कि भाषा के भंवरजाल में उलझना है। भाषा का महत्व कितना है मानव जीवन यह सर्वविदित है । यही तो वह माध्यम होता जिससे हम अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं। अतः नई शिक्षा नीति का यह निर्णय स्वागत योग्य है । शिक्षण की गुणवत्ता में वृद्धि होगी इससे और प्रतिभा में निखार ।
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Uttam vichaar