दिल उदास बैठा है आज तेरे रूठने से, आ पास मेरे तू किसी भी बहाने से!! ना दिन में चैन ना रात को करार है, नींद मेरी वापस दे जा किसी बहाने से!! बेचैन है दिल सासें थम सी जाती… Read More
कविता : हिंदी के स्वर
अ से फल अमरूद का मीठा आ से मीठा आम इ से खट्टी इमली बिकती ई से ईख के दाम उ से उल्लू, वह पक्षी जो रात-रात भर जागे ऊ ऊन का देख के स्वैटर सर्दी उल्टा भागे ऋ से… Read More
गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की पुण्य तिथि पर सादर नमन के साथ मनहरण छंद
(01) आन बान शान वाला, नोबेल वे साहित्य का, पाने वाले एशिया के, प्रथम सपूत थे। नाम था रवीन्द्रनाथ, गुरुदेव लोग जिन्हें, कहा करते थे सभी, भारती के पूत थे।। भारतीय सांस्कृतिक चेतना जगाने वाले, रखते थे ज्ञान की वे… Read More
पुस्तक समीक्षा : आतंकवाद पर बातचीत
पुस्तक – आतंकवाद पर बातचीत सम्पादक द्वय – डॉ० पुनीत बिसारिया , रोनी ईनोफाइल प्रकाशक – यश पब्लिकेशंस, दिल्ली ISBN नंबर – 978-93-85689-80-2 प्रथम संस्करण – 2018 मूल्य – 695/- समीक्षक – तेजस पूनिया हाल ही में एक फिल्म रिलीज… Read More
कविता : अब तो समझ जा
बहुत छेड़ा करते थे, प्रकृति के संसाधनो को। ये सब देखते रहे, श्रृष्टि के वो निर्माता। और हंसते रहे भाग्यविधाता, जिसने लिखा है भाग्य तेरा। अब तो तू संभल जा, और समय को समझ जा। क्योंकि समय की मार ने,… Read More
ग़ज़ल : इस रात को भी वो तन्हा कर गया
इस रात को भी वो तन्हा कर गया, वो किस्सा मेरा सरेआम कर गया!! सोचते थे जिसे हम ख़्वाब में ही, वो खुद को हक़ीक़त कर गया!! दे गया मुझे अपने तमाम दर्द, वो दिन को भी रात कर गया!!… Read More
गज़ल : भाव ज़िंदा कहाँ बचा होगा?
वो दिखने में हरा-हरा होगा, है ये मुमकिन, ज़हर भरा होगा। सबके रग-रग में अब रसायन है, भाव ज़िंदा कहाँ बचा होगा? मर चुका है ज़मीरोमन जिसका, कैसे समझूँ कि वो ज़िंदा होगा! इस तपिश से तो ऐसा लगता है,… Read More
कविता : अनुभव से
मिला मुझको बहुत कुछ अपनी मेहनत लगन से। मेरे अनुभवों को कोई न क्या कभी छोड़ा पायेगा! तपा हूँ आग की भट्टी में तो कुछ बनकर ही निकला हूँ। और फिर से जिंदगी में कुछ नया निश्चित करूँगा।। भले ही… Read More
गीत : राम नाम का
मंगल गाओ रे सब मिलके, आज घर राम आये सबके। जीवन की नय्या पार लगाने, देखो राम विराजे है सबके।। ना लालसा है प्रभु राम को, वो चरणों मे जगह देते है सबको। दयालु है वो इस कदर, कि बिन… Read More
गीत : विश्वास
बहुत फक्र करते थे हम अपनों पर यार। बंद आँखों से विश्वास करते थे उन पर हम। पर पढ़ न सके उन्हें साथ रहते हुये हम। तभी तो उठा दिया जनाजा विश्वास का आज। और आँखें मेरी खोल दी, की… Read More