janki

लघुकथा : जानकी का घर

कई वर्ष पश्चात दूरदर्शन पर धारावाहिक ‘रामायण’ के पुनः प्रसारण से कौशल्या देवी बहुत खुश थीं। सुबह के नौ बजते ही टेलीविजन के सामने हाथ जोड़ कर बैठ जाती थीं। आज रामायण देखते हुए वह अत्यंत भावविभोर हो रही थीं।… Read More

independence day

कविता : स्वतंत्रता दिवस

संग अपने हर्षोल्लास लेकर पुनः स्वतंत्रता दिवस आया है नमन उन वीरों को जिनके कारण हमने स्वतंत्र भारत पाया है जिनके शौर्य से परतंत्रता हारी स्वतंत्रता का हुआ था आगमन स्मरण करें उनके बलिदानों को देश के अमर जवानों को… Read More

badlaa

लघुकथा : बदला

विजय झा ने शराब की तस्करी करके करोड़ों की संपत्ति अर्जित कर ली थी और अब उसने अपने काले धन को सफेद करने के लिए एक स्कूल खोल लिया था। उसने उस स्कूल का नाम अपने इकलौते बेटे अभिज्ञान के… Read More

aalingan

कविता : आलिंगन

पृथक् थी प्रकृति हमारी भिन्न था एक-दूसरे से श्रम ईंट के जैसी सख़्त थी वो और मैं था सीमेंट-सा नरम भूख थी उसको केवल भावों की मैं था जन्मों-से प्रेम का प्यासा जगत् बोले जाति-धर्म की बोली हम समझते थे… Read More

prem paridhi

कविता : प्रेम परिधि

बिंदु और रेखा में परस्पर आकर्षण हुआ तत्पश्चात् आकर्षण प्रेम में परिणत धीरे-धीरे रेखा की लंबाई बढ़ती गई और वह वृत्त में रूपांतरित हो गयी उसने अपनी परिधि में बिंदु को घेर लिया अब वह बिंदु उस वृत्त को ही… Read More

wo kisi k nahi hote

ग़ज़ल : वो किसी के नहीं होते

जो सबके होते हैं वो किसी के नहीं होते लोग दिखते हैं जैसे अक्सर वैसे नहीं होते मेरे जैसे दिलफेंक भी होते हैं कुछ शायर ग़ज़ल लिखने वाले सब दिलजले नहीं होते इब्तिदा-ए-इश्क़ में होते हैं वैसे आशिक़ जिनके ख़त… Read More

mandir masjid

कविता : तीन लोग

तीन लोग संसद के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे और नारे लगा रहे थे एक कह रहा था हमें मंदिर चाहिए दूसरा कह रहा था हमें मस्जिद चाहिए और तीसरा कह रहा था हमें रोटी चाहिए कुछ वर्षों के बाद… Read More

youth

कविता : युवा

जल रही हो जिसमें लौ आत्मज्ञान की समझ हो जिसको स्वाभिमान की हृदय में हो जिसके करुणा व प्रेम भरा बाधाओं व संघर्षों से जो नहीं कभी डरा अपनी संस्कृति की हो जिसको पहचान भेदभाव से विमुख करे सबका सम्मान… Read More

Lord Krishna

कविता : श्री कृष्ण

सत्य के रक्षक अधर्म समापक दुष्ट विनाशी धर्म स्थापक हैं सुदामा सखा सुभद्रा पूर्वज देवकीनंदन वसुदेवात्मज वो पार्थसारथी गोप गोपीश्वर अजेय अजन्मा श्रीहरि दामोदर प्रेम के पर्याय परंतु वितृष्ण वो राधावल्लभ हैं वही श्री कृष्ण +60

poem kargil vijay diwas

कविता : कारगिल विजय

सन् निन्यानवे था थी वो माह जुलाई शत्रु से हमारी पुनः छिड़ी हुई थी लड़ाई मार रहे थे शत्रुओं को हमारे वीर महान् राष्ट्र की रक्षा हेतु दे रहे थे बलिदान दिन सोमवार था वो तिथि छब्बीस जुलाई कारगिल पर… Read More