कितने वर्षों से परंपराओं का,
अनुसरण करते आ रहे हैं।
और पूर्वजों की बनाई,
रीतियों को निभाते आ रहे हैं।
परन्तु वक्त ने कुछ,
ऐसा खेल खेला कि
अब हमारे घर ही
मंदिर बन गए है।
और धर्म साधना व
ध्यान के केंद्र बन गए।।
भावनाएं मन से अच्छी भाएंगे
तो अच्छा फल पायेंगे।
और सत्य निष्ठा के मार्ग पर
हम सब चल पायेंगे।
और अपने जीवन को
अहिंसा के पथ पर लगा पायेंगे।
और आत्म कल्याण करके,
मोक्ष गति को प्राप्त कर पायेंगे।।
छोड़-छाड़ कर कामधाम अब
परिवार के साथ रह रहे हैं।
और जीवन की हकीकत को
उनके साथ जी रहे हैं।
तभी तो अपने घरों को
खुद ही मंदिर कह रहे हैं।
और मिल जुलकर सभी
घरों में पूजाअर्चना कर रहे हैं।
और अपने-अपने घरों को
मंदिर का स्वरूप दे रहे हैं।।