कोई औरत जब किसी मर्द को सौंपती है अपना शरीर, वो सिर्फ शरीर नहीं होता, वो उसकी वासना भी नहीं होती, वो प्रकृति की आदिम भूख नहीं होती वो औरत बाजारु हो जरुरी भी नहीं औरत तलाशती है संरक्षण,… Read More
“कलम का सिपाही” (प्रेमचंद) : लेखकीय दृष्टि
लेखकीय दृष्टि यदि अपने युगीन सामाजिक ,राजनीतिक ,धार्मिक,आर्थिक ,सांस्कृतिक दबावों ,घात –प्रतिघातों ,सम्बंधों में आती जटिलताओं के बीच मनुष्य की संपूर्णता में आत्मसात करते हुए जनाभिमुख और जनहित में अभिव्यक्त होती है तो वह सदैव प्रासांगिक बनी रहती है और… Read More
प्रेमचंद : कहानियों का सबसे बड़ा खिलाड़ी
कला केवल यथार्थ की नक़ल का नाम नहीं है कला दिखती तो यथार्थ है, पर यथार्थ होती नहीं उसकी खूबी यही है की यथार्थ मालूम हो……मुंशी प्रेमचंद बीसवीं शती के संवेदनशील रचनाकार उर्दू से हिंदी भाषा में लिखने वाले… Read More
वर्तमान समय में प्रेमचंद की प्रासंगिकता
प्रेमचंद को पढ़ना उन चुनौतियों को प्रत्यक्ष अनुभूत करना है, जिन्हें भारतीय समाज बीते काफी समय से झेलता आया है और आज भी उन चूनौतियों का हल नहीं ढूँढ पाया है। दलित, स्त्री, मजदूर, किसान, ऋणग्रस्तता, रिश्वतखोरी, विधवाएँ, बेमेल विवाह,… Read More
हिंदी साहित्य और सिनेमाई अनुवाद
अनुवाद किसी सीमा और देश तक सीमित नहीं हैं, उसकी महत्ता पूरे विश्वा में फैल चुकी है। भाषिक व्यापार के रूप में अनुवाद भारतीय परंपरा की द्रष्टि से कोई नई बात नहीं है। अनुवाद शब्द का संबंध ‘वद’ धातु से… Read More
व्यंग्य: हँसी
टी.वी पर इंडिया के शीर्ष डॉक्टर्स का इंटरव्यू आ रहा था और उन सबने एक मत से जो एक वाक्य बोला वो ये था कि अगर स्वस्थ रहना चाहते हैं तो जितना हो सके उतना ज्यादा हँसें, खुश रहें। हँसने… Read More
कविता: लिहाफ़
रात बहुत सर्द थी सोचा लिहाफ़ लेलूं लेकिन, उस लिहाफ़ में बेख़बर वो भी लिपटी थी ऐसे में ख़्याल आया कहीं… कहीं उसकी नींद में खलल न हो जाए इसी ख़्याल से ठिठुरता रहा रात भर लेकिन एक सुकूँ था… Read More
ग़ज़ल: एक पल में हालात बदलते देखा है
एक पल में हालात बदलते देखा है साँझ से पहले सूरज ढलते देखा है… कल तक जो मुझपे जान लुटाते थे आज उन ही के हाथों में मैंने खंजर देखा है…। दिल के क्या हालात बताऊँ…? एक उदासी फैली है….… Read More