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व्यंग्य : पबजी–लव जी

कारगिल युध्द के बाद भारत के अनमोल रत्न सचिन तेंदुलकर ने कहा था कि “जब देश की सीमा पर हमारे जवान पाकिस्तान से युद्ध लड़ रहे हों तो ऐसे समय में पाकिस्तान से क्रिकेट खेलने का कोई मतलब नहीं है… Read More

व्यंग्य : खिड़की के बाहर का दृश्य…

गुलाब के फूलों में लगे काले कीड़ों के मुँह से गन्दी गालियाँ सुनाई दे रही थी। दिन के अँधेरे में बग़ीचे में लगे विशालकाय वृक्ष में रहने वाले पक्षी, अपने-अपने घोंसलों  में आग लगा चुके थे। आग की हरी लपटें… Read More

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व्यंग्य : फिजेरिया

“सूट पहन के , लगा के चश्मा कहाँ चले ओ मतवाले , गिटपिट इंग्लिश बोल रहे हो हिंदी की गले में तख्ती डाले” मैंने यूँ ही पूछा? “चले हम फीजी ,हिंदी के लिये जल मत ओ बुरी नजर वाले पूछा… Read More

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व्यंग्य : मैं व्यंग्य समय हूँ

तो हस्तिनापुर के समीप इंद्रप्रस्थ जो कि अब दिल्ली के नाम से जाना जाता है , यही मेरे व्यंग्य का खांडव वन रहा है ।अब व्यंग्य के कई अर्जुन मेरे इस खांडव वन अर्थात व्यंग्य लोक को जलाने पर आतुर… Read More

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व्यंग्य : इंग्लिश पप्पू

पाकिस्तान के भूतपूर्व गृहमंत्री शेख रशीद दक्षिण एशिया की राजनीति में मनोरंजन के प्रमुख साधन माने जाते रहे थे , ये हजरात वही हैं जो इंडिया पर पाव किलो वजन के परमाणु बम मारने की धमकी दिया करते थे। जब… Read More

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व्यंग्य : कुविता में कविता

जुड़ती है सड़क एक सड़क से बासी रोटी ने महका रखा है घर को मैं कौन,निश्चित मैं मौन हूँ टूटी हैं बेड़ियां ,लड़कर थकी नहीं ,सड़क का कूड़ा , समय से लड़ती कूची दिमाग का दही बनाती है कविता ”… Read More

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व्यंग्य : मठहाउस

प्रश्न – हिंदी साहित्य के वर्तमान परिवेश में मठ और मठाधीशों की क्या स्थिति है ? उत्तर- हिंदी साहित्य इस समय मठ और मठाधीशों के कम्रिक रूपांतरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है । कोरोना काल में यात्रा करने की… Read More

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व्यंग्य : तो छोड़ दूंगा

“काठ का घोड़ा,लगाम रेत की ,नदी पार तैयारी घटिया कला ,अछूती भाषा,बनते काव्य शिकारी ” कविवर अष्टभुजा शुक्ल की ये कविता ,आजकल घोषित हो रहे काव्य पुरस्कारों के बाबत बिल्कुल सटीक है ।लोग पुरस्कार पाते हैं तब नहीं कहते है… Read More

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व्यंग्य : बोलो जुबां केसरी

बोलो जुबाँ केसरी (व्यंग्य) ‘कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे जाने कैसे लोग वो होंगे जो उसको भाते होंगे “ जी हाँ उसको गुटखा बहुत भाता था ,वो गुटखे के बिना न तो रह सकता था और न… Read More

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व्यंग्य : लंका

“ना रूपया ना पैसा ना कौड़ी रे ये मोटू और पतलू की जोड़ी रे मोटू और पतलू रे” ये गीत गाते हुए प्रकाशक के लाये हुये लड्डू खाते हुए मोटू ने गब्बर स्टाइल में कहा – “अरे पतलू भाई ,… Read More