“जय श्रीराम शुक्लाजी, कहाँ से लौट रहे हैं इतनी गर्मी में? आसमान स आग बरस रही है और आप स्कूटर
घर में रखकर साइकिल भांज रहे हैं। काहे बचा रहे हैं इतना पैसा” मैंने उन्हें अभिवादन करते हुए उन्हें शब्दों
की चिकोटी काटने की कोशिश की।
“राम-राम, कैसे हो कुमार खुराफाती। तुम खुराफात से बाज नहीं आओगे। मंचीय कविता की दुकान आजकल
बंद है क्या? जो तुम सड़क पर दिख रहे हो। रुके हैं तो कविता न सुनाने लगना। कुछ ठंडा वगैरह पिलाओ।
मंचो पर मानदेय वाले लिफाफे तो खूब लेते हो, सुना है सरकार ने उस पर भी जीएसटी लगा दिया है। तुम
भी कुछ टैक्स देते हो कविता की कमाई पर? या सब टैक्स दबा ही लेते हो। वैसे तुम तो मुझे नमस्ते
किया करते थे पहले। फिर आजकल बड़े नारे लगा रहे हो जय श्रीराम के। कोई खास बात है क्या”?
“नहीं जी, अभिवादन में कोई एजेंडा तो है नहीं। हिंदी में अभिवादन के बहुत से विकल्प हैं जब जो भी सूझ
जाए और मुँह से निकल जाये। मुझे तो राम-राम और जय श्रीराम में कोई विशेष फर्क नजर नहीं आता। दोनों
ही एक किस्म का अभिवादन ही है। खैर हमारी छोड़िए आपने बताया नहीं कि कहाँ से आ रहे हैं और इस
गर्मी में स्कूटर घर पर रखकर साइकिल चलाने की कोई खास वजह”?
“पेट्रोल की महंगाई और क्या। महंगाई डायन नोच-नोच कर खाए जा रही है। सब्जी महंगी, पेटोल महंगा, सब कुछ महंगा हो चला है और अब तो मोबाइल का रिचार्ज भी मंहगा हो गया है हर कम्पनी का। चार पैसे बचा रहे हैं कि बच्चों की शादी बस डाकखाने तक गए थे। बैंक में एक यफडी मेच्योर हुई थी। उसी पैसे को डाकखाने में जमा करने गया था। मेरे पीपीएफ के भी मेच्योर होने का यह आखिरी साल है। पीपीएफ में तो चक्रवृद्धि ब्याज मिलता है। कुछ एक्स्ट्रा इनकम हो जाएगी। बच्चों की शादी करनी है अब हम कोई अम्बानी तो हैं नहीं जो सारी दौलत बच्चों की शादी पर लुटा दें”।
मुझे उनकी बात सुनकर हँसी आ गई। मेरे हँसने पर वह अक्सर भड़क जाते हैं और न जाने मुझे क्यों “कंघी”
कहकर चिढ़ाते हैं। हो सकता है मेरे गंजेपन का उपहास करने के लिए मुझे “कंघी” कहते हैं मगर मेरे दोस्तों
का मानना है कि वह मुझे “कंघी” इसलिये कहते हैं ताकि “कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना” वाली बात साबित
हो सके। हँसी दबाते हुए मैंने धीरे से कहा–
“आप ब्याज को छोड़कर चक्रवृद्धि ब्याज कमाने की सोच रहे हैं ताकि अपने बच्चों की शादी धूमधाम से कर
सकें तो फिर उन्हें हक नहीं है क्या? कि अपने बेटे के विवाह पर अपनी मर्जी के अनुसार खर्च करने का”।
शुक्ला जी भड़कते हुए बोले–
“खुराफाती तुम कवि कम और पक्के खुराफाती ज्यादा हो। इसीलिए उस शाही शादी में हर किसी को बुलाया
गया। यहाँ तक कि खली पहलवान को भी। बस तुम्ही लोग रह गए। किसी भी कवि-लेखक को नहीं बुलाया
गया” यह कहकर उन्होंने अपनी कुटिल मुस्कान बिखेरी। उनकी बात से मुझे थोड़ा ग्लानि और तिलमिलाहट तो हुई कि महीनों से चल रहे इस आनंद के उत्सव में फ़िल्म, क्रिकेट और राजनीति के दिग्गज बुलाये गए। मगर कवि एवं साहित्यकार ही नहीं बुलाये गए अलबत्ता गीत-संगीत की महफ़िल खूब सजी। पहले प्री वेडिंग में भारत की खेती-किसानी की गूढ़ जानकार और इंडिया
के किसान आंदोलन पर गहरी समझ रखने वाली पाप सिंगर रेहाना को बुलाया गया था और अब विवाह में
उत्तम एवं संतुलित वस्त्र पहनने वाले गायक जस्टिन वीबर को बुलाया गया। उन्होंने शादी में किसको बुलाया
या नहीं बुलाया, यह उनका विषेशाधिकार है लेकिन शुक्ला जी ने कवियों-शायरों को लेकर जिस तरह मेरी
खिल्ली उड़ाई तो यह बात मुझे चुभ गई। अब मुझे बचाव तो करना ही था। कुछ नहीं सूझा तो मैंने शुक्ला
जी से कहा-
“सुनिए साहब, खिचड़ी खाकर और सस्ता सूट पहनकर अम्बानी जी ने ये पैसे इसी दिन के लिए बचाये थे
कि अपने तीसरी और आखिरी सन्तान की शादी में दिल खोल कर खर्च कर सकें। सिर्फ रिलायंस कम्पनी
का प्रॉफिट सालाना साठ से सत्तर हजार करोड़ है। इस शादी में भी मुकेश अम्बानी जी कुछ हाथ तंग किये
दिखे। अनुमान है कि उन्होंने सिर्फ पांच हजार करोड़ खर्च किये शादी पर। यानी उनकी नौ दस लिस्टेड
कंपनियों में से सिर्फ एक कम्पनी की एक महीने की कमाई। आम भारतीय तो दस से पंद्रह वर्षों की कमाई
अपनी औलाद की शादी पर खर्च करता है और मुकेश अम्बानी ने बस एक कम्पनी की एक महीने की कमाई
खर्च की। वाकई बेहद किफायत से शादी की है मुकेश अम्बानी जी ने अपने लाडले सुपुत्र की”।
शुक्ला जी ने कहा– “पिछली बार इसी जोड़े की प्री वेडिंग में जामनगर में टीवी के मशहूर चैनल के एक बड़े
एंकर ने वनतारा चिड़ियाघर में हाथी को दिया जाना वाला नाश्ता खुद चखकर अपनी प्रेम प्रदर्शित किया था।
तुम होते तो तुम क्या खाकर या कौन सी कविता गाकर अपना उस शादी के प्रति अपना नेह-मोह प्रदर्शित
करते कविवर कुमार खुराफाती” यह कहते हुए शुक्ला जी ने शब्दों की गहरी जलेबी छानी।
मैं फिर गड़बड़ा गया उनके इस चुटीले वार से। बात को मोड़ने की गरज से मैंने कहा–
“जी वहाँ हिंदी के कवियों और शायरों को इसलिये नहीं बुलाया गया क्योंकि वह सब गुजराती हैं। गूढ़ हिंदी
ज्यादा समझते नहीं”।
“तो फिर हिंदी फिल्म वालों को क्यों बुलाया, यह भी बताओ कुमार खुराफाती” उन्होंने शब्दों की एक और
गुगली डाली जिससे मेरा क्लीन बोल्ड होना लाजिमी था।
बात का सिरा मोड़ने का प्रयत्न करते हुए मैंने कहा–
“वन्य जीव प्रेमी अनन्त अम्बानी की शादी हो गई राधिका से। शादी मुबारक हो नव दम्पत्ति को। सुना आपने
इस शादी को “शताब्दी की शादी कहा जा रहा है”। यह एशिया के सबसे अमीर आदमी के बेटे की ही शादी
नहीं बल्कि एशिया की सबसे लंबी और महंगी शादी भी है। इसे “सदी की शादी” भी कहा जा रहा है। यह
हमारे देश की बढ़ती शक्ति और आर्थिक मजबूती का परिचायक है। “देश की समृद्धि” का प्रदर्शन देखकर गर्व
हुआ। मेरी तरह बहुत से देशवासी गर्वित हैं। देखना आप आगामी दिनों में ऐसी तमाम विश्व स्तरीय शादियां
भारत में देखने को मिलेंगी जिससे अर्थव्यवस्था में मजबूती आयेगी” ये कहकर मैंने सीना चौड़ा करके हँसना
शुरू कर दिया ताकि शुक्ला जी प्रभावित हो सकें।
“तुम जैसे अब्दुल्लाओं ने बेगानी शादी में कब से रायता सूंघना शुरू कर दिया। तुम कुमार खुराफाती नहीं
बल्कि बुध्दि से खैराती हो” इसके आगे बोलते हुए उन्हें मुझे हिकारत से काफी कुछ कहा और चले गए।
उनके जाने से मैंने चैन की सांस ली कि चलो ठंडे के पैसे बचे। इससे मेरे मोबाइल के महंगे हुए रिचार्ज की
कुछ तो भरपाई हो जाएगी। वैसे शुक्ला जी गलत नहीं कह रहे थे अगर सबको बुलाया था तो किसी शायर या
कवि को भी बुला लेते शादी में ताकि हम जैसे बेगानी शादी वाले दीवाने अब्दुल्ला न कहे जाते।
समाप्त।