my poems

मेरी कविताएँ

संघर्ष दहशत से भरी दुनियाँ अजनबी से लोग, बिन पहचाने से रास्ते रसूखदारों की अपनी ही बातें नवाबी कारण कार्य बिना नाम पहचान नहीं व्यस्तता का एक राग अलाप न जाने इंसान गढ़ा था खुदा ने बन गए यहां सभी… Read More

prakriti

कविता : प्रकृति, संस्कृति एवं संसृति

द्वितीय रूप तो अति कोमल, मधुर, स्वभाव है !! राम, कृष्ण, गौतम, तुलसी हो, हो कबीर की नाना चौकी ! नारी ने वो पाठ – पढ़ाया, जिसे आज तक किसी ने न भुला पाया !! ऐसी बेटी को प्रणाम है,… Read More

sahsa maun mukhar hua

कविता : सहसा ! मौन हुआ मुखर

एक दिन देखा मैंने, सहसा ! एक काले से साए को बाहर आते, आज के आदमी सा, कुछ सहमा, कुछ सकुचाया, उस साए ने, बाहर आ प्रश्न किया…… क्या तुम अब तक ज़िन्दा हो ? …कैसे ? मुझे लगा मैं… Read More

jindgi aur prakritia

कविता : ज़िंदगी और प्रकृति

रात की तन्हाई में, ख़ामोश नम निग़ाहों से ! ओस की बूंद बन, फूलों पर ढुलक पड़ी मैं !! दिन के अंधियारे में, महफ़िल की तन्हाईओं से ! रोशनी की किरण बन, रोशनदान में बिखर गयी मैं !! मंज़िल की… Read More

कविता : कभी अलविदा ना कहना

अमन औ इकराम, एहतराम तेरे खूँ में है| जो नहीं है, वो सबब बाक़ी तेरे सुकूं में है| यूँ तो स्याह हर चेहरा है, पर, ख्याल है कि! तू अब, बहार- ए- शहरा है| न तेरी ख्वाईशों की, उड़ान कम… Read More

कविता : राहगीर

राहगीर हूं, चला जा रहा हूं। अकेला नहीं, है, यह एहसास दूर गहरे कहीं। पर भीड़ का हिस्सा बन, खो जाऊं। ये उनको,ईमान को, इससे इंकार भी है। बेसबब आवारा बन फिरता नहीं, जो गुज़रता हूं, उन गलियों से, तस्वीर,… Read More

‘16 सितम्बर’- अपने जन्मदिवस के अवसर पर, कुछ पुरानी/कुछ नई कविताओं के साथ

(१ )  दीपक की तरह खुद जल गये, धुंआ ही नैनों का श्रृंगार बना। खुद जल रौशन हमें किया, बदले में हमसे कुछ भी न लिया !! दिनांक ज्ञात नहीं कब लिखा था ? (वर्ष -२००२ ) (२) मिल रहे… Read More

15 अगस्त की ढेरों शुभकामनाएं

मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूं, कि, अधोलिखित विचार किसी व्यक्ति, राजनैतिक पार्टी, मंत्री या संस्था विशेष से जुड़े हुए नहीं हैं, इस संदर्भ में मैं पूर्णत: न्यूट्रल हूं। मैं अपने विचार वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी के… Read More

“कलम का सिपाही” (प्रेमचंद) : लेखकीय दृष्टि

लेखकीय दृष्टि यदि अपने युगीन सामाजिक ,राजनीतिक ,धार्मिक,आर्थिक ,सांस्कृतिक दबावों ,घात –प्रतिघातों ,सम्बंधों में आती जटिलताओं के बीच मनुष्य की संपूर्णता में आत्मसात करते हुए जनाभिमुख और जनहित में अभिव्यक्त होती है तो वह सदैव प्रासांगिक बनी रहती है और… Read More