jindgi aur prakritia

रात की तन्हाई में,
ख़ामोश नम निग़ाहों से !
ओस की बूंद बन,
फूलों पर ढुलक पड़ी मैं !!

दिन के अंधियारे में,
महफ़िल की तन्हाईओं से !
रोशनी की किरण बन,
रोशनदान में बिखर गयी मैं !!

मंज़िल की तलाश में,
यौवन के उन्माद से !
ख़ुशी की मुस्कान बन,
शरमा कर सिमट गयी मैं !!

चाहत की प्यास में,
अनजाने एहसास से !
बारिश की फ़ुहार बन,
सावन में बरस गयी मैं !!

अनजानी सी डगर में,
प्यार के एहसास से !
ज़िंदगी की जरुरत बन,
साँसों में महक गयी मैं !!

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