khud se khud ka sakshatkar

कविता : ख़ुद से ख़ुद का साक्षात्कार

अगर लिखती कविता मैं, तो लिखती ख़ुद पर स्वयं की प्रशस्ति में, ख़ुद को समर्पित । अगर गाती गीत मैं, गुनगुनाती स्वयं को स्वयं के आह्लाद को या स्वयं की पीड़ा को । अगर उड़ती मैं, तो उड़ती अपने आकाश… Read More

ghazab ki tapish

गज़ल : गज़ब की तपिश

रुख हवाओं का ऐसे बदलने लगा सोना शीशे के साँचे में ढलने लगा लोग करने लगे कत्ल लग कर गले स्वार्थ रिश्तों को जमकर निगलने लगा देखकर उनकी रोटी परेशान हूँ दाल गलने लगी, मुल्क जलने लगा अब अँधेरे के… Read More

youngman

कविता : चाहत

तेरे चाहाने वालो के, किस्से बहुत मशहूर है। तेरी एक झलक के लिए, खड़े रहते है लाइन से। चेहरा छुपाना दुपट्टे से लोगो की समझ से परे है। कैसे देख सकेंगे वो तुझे, खुले आसमान के नीचे।। किसी पर तो… Read More

guru ji

भजन : गुरु सेवा

गुरुदेव मेरे, गुरुदेव मेरे, चरणों में अपने हमको बैठा लो। सेवा में अपनी हमको लगा लो, गुरुदेव मेरे गुरुदेव मेरे। मुझको अपने भक्तो की दो सेवादारी। आयेंगे सत संघ सुनने, जो भी नर नारी, मै उनका सत्कार करूँगा, बंधन बारंबार… Read More

mere yaar

कविता : मेरे यार

याद रखना तुम मुझसे करते हो प्यार। याद रखना तुम आओगे मिलने इस बार।। तड़पता हूँ सोया नहीं, मुस्कुराना मैं भूल गया। हंसता था सदा, कहना मैं भूल गया।। याद रखना अब से मैं खामोश हूं यार।।। याद रखना तुम… Read More

binod

व्यंग्य : बिनोद बावफ़ा है

“अक्ल को तन्कीद से फुर्सत नहीं इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख” हाल ही में एक फ़िल्म आयी है चमनबहार जिसमें नायक अपनी जीतोड़ मेहनत सी की कमायी गयी अल्प पूंजी पर अपने मन के उदगार लिखते हुए लिखते हुए… Read More

khel

कविता : खेल

खेल में नहीं होता हैं कोई हिन्दू मुसलमान खेल में नहीं होता हैं ऊँचा नीचा महान खेल हैं सद्भावना मिल जाता हैं जिसमें सभी खेल में बन जाता हैं इंसान बस इंसान खेलने वालों ने दुनियाँ एक कर दी खेलकर… Read More

sheesh jhuka k to dekho

भजन : शीश झुका के देखो

तुम्हें दिल लगी भूल जाने पड़ेगी। गुरु चरणों में शीश झुका के तो देखो। तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी। प्रभु चरणों में शीश झुका के तो देखो। तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी। णमोकार मंत्र को जपके तो देखो।… Read More

corona kaal

कविता : कोरोना काल

जन सभाएं चल रही, शिक्षा के मंदिर बंद। कैसा कोरोना काल है, निर्णय भी मतिमंद। भाषण पे भाषण दिए, बच्चें घूमते खोर। सत्ता भी मजबूत हो, बच्चों पर दो जोर। जब बसें पूरी भरें, चलती क्यों न रेल। बाजार यहाँ … Read More

kise dhundh rahe ho

कविता : किसे ढूँढ रहें हो

कल से कल तक में आज को ढूँढ रहा हूँ। जीवन के बीते पलो को, आज में खोज रहा हूँ। शायद वो पल मुझे आज में मिल जाये।। बीत हुआ समय, कभी लौटकर नहींआता। मुंह से निकले शब्द, कभी वापिस… Read More