जन सभाएं चल रही, शिक्षा के मंदिर बंद।
कैसा कोरोना काल है, निर्णय भी मतिमंद।
भाषण पे भाषण दिए, बच्चें घूमते खोर।
सत्ता भी मजबूत हो, बच्चों पर दो जोर।
जब बसें पूरी भरें, चलती क्यों न रेल।
बाजार यहाँ खुल गए, बढ़ती रेलमपेल।
यह सत्र है कागजी, सब हो जाएगें पास।
अगले सत्र में बनेगी, यह बांस की फांस।
मार्कशीट इस सत्र की, करेगी न फिर काम।
इसीलिए बच्चों पढ़ो, बहुत तेज है घाम।
हर साल होगा नहीं, जनरल प्रमोशन पर्व।
इस पर इतना न करो, आंख बन्द कर गर्व।
पढ़ लिखकर बन जाओगे, तुम एक विद्वान।
वरना बस रह जाएगी, डिग्रीधारी पहचान।