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“अक्ल को तन्कीद से फुर्सत नहीं
इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख”

हाल ही में एक फ़िल्म आयी है चमनबहार जिसमें नायक अपनी जीतोड़ मेहनत सी की कमायी गयी अल्प पूंजी पर अपने मन के उदगार लिखते हुए लिखते हुए दस-दस के नोटों पर अपनी प्रेमिका के प्रति अपनी भड़ास निकालते हुए लिखता है कि फ़िल्म की नायिका बेवफा है, मगर तकादे की रुसवाई से आजिज आकर वो नोटों का बंडल तकादेदार को सौंप देता है, बात पुलिस तक पहुंच जाती है। नायक पिटता है, तब नायिका को पता चलता है कि नायक सही आदमी है, जाहिर है नायक की पिटाई से जनता को हास्य-बिनोद नहीं हुआ इसीलिये चमन बहार नहीं चली। लेकिन इधर बिनोद ने कोरोना काल में लोगों का खूब बिनोद किया, बड़ी बड़ी सोशल साइट्स और विश्वस्तरीय कम्पनियां कुछ देर के लिये बिनोद हो गयीं। ये देश ऐसा ही है जहाँ सौम्य, साधारण चीजों पर लोगबाग फिदा हो जाते हैं जैसे कुछ बरस पहले एक दिलजले ने दस रुपये के नोट पर मिस गुप्ता को बेवफा क्या मान लिया, देश के लाखों लोगों के भावनाएं उस गुमनाम दिलजले आशिक के साथ जुड़ गयीं और लोगों ने प्रार्थनाएं की उस गुमनाम, मगर सच्चे आशिक की मिस गुप्ता से सारे गिले-शिकवे दूर हो जाएं।
ऐसे ही आशिकों के लिये किसी ने कहा है-
“जल जा,जल जा इश्क़ में जल जा
जले वो कुंदन होय
जलती राख लगा ले माथे
लगे तो चन्दन होय”
सोशल मीडिया है ऐसा, कोरोना में अपनी घटती मीडिया अटेंशन से परेशान एक फिल्मी सितारे की पीआर एजेंसी भी उसे कोरोना संक्रमित होने पर उतना फुटेज नहीं दिला पाई, जितना सिर्फ बिनोद लिखकर कोई लोकप्रिय हो गया। सुना है बिनोद शब्द ने उन्हें काफी त्रास और तनाव दिया है, जवानी में बिनोद खन्ना ने और अब बुढ़ापे में इतनी बड़ी मीडिया और पीआर एजेंसी की सेवाएं लेने के बाद सिर्फ तीन अक्षर बिनोद लिखकर कोई लाइमलाइट चुरा ले गया, बेचारे बहुत परेशान हैं। यही हाल अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का भी है। वहाँ सरकार की पीआर एजेंसी ने उसको सलाह दे दी कि ये सही वक्त है कि इस्लामिक मुल्कों के यूनियन का सरबरा बना जाए उसके सिर पर तुर्की औऱ मलेशिया का हाथ है तो वो सऊदी अरब को चुनौती दे सकता है। ऐसे फैंटम टाइप बयान मियां नियाजी की सरकार में शेख रसीद मिनिस्टर दिया करते रहते हैं। शेख रसीद को भी खुदा ने फुर्सत में बनाया है। उनके बयान सुनकर तो आइंस्टीन भी की आत्मा अपनी मेधा पर अफसोस कर रही होगी। बकौल शेख रसीद पाकिस्तान ने एक ऐसा बम ईजाद किया है जो वो हिंदुस्तान पर गिराएंगे तो वो चुन चुन कर सभी को मारेगा, लेकिन एक खास धर्म के लोगों को छोड़ देगा। भारत में ऐसे चुटकुलों पर अब कोई नहीं हँसता, हमारे पास मनोरंजन की बेहतर सूचनाएं मौजदू हैं जैसे कि एक बहुत बड़े दैनिक अखबार ने अभी खबर दी है कि महेंन्द्र सिंह धोनी पिछले वर्ष का सेमीफाइनल भारत को न जिता पाने पर बाथरूम के अंदर मुँह में कपड़ा ठूंस कर रोये थे ताकि आवाज़ बाहर ना जा सके। इस महान पत्रकारिता की न्यूज़ के बाद कुछ लोग इस तथ्य पर संविधान विशेषज्ञों से राय मशविरा कर रहे हैं कि क्या अखबार को पब्लिक निकाय माना जा सकता है और आरटीआई डालकर उस मीडिया समूह क्या निम्नलिखित प्रश्न पूछे जा सकते हैं:
क- क्या धोनी के मुंह में कपड़ा डालकर रोने वाले कपड़े का रंग कौन सा था।
ख- क्या वो कपड़ा जर्सी की तरह स्पॉन्सर था, या जर्सी के साथ रोने के लिये उसी रंग का कपड़ा उपलब्ध कराया गया था।
ग- क्या जिस कम्पनी का कपड़ा था भविष्य में धोनी उसका विज्ञापन करेंगे और लोगों को आश्वासन देंगे कि मैच हारने के बाद मुंह में कपड़ा डाल कर रोने के लिये ये सबसे मुफीद ब्रांड है।
घ- सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न कि जो कपड़ा वो मुंह में ठूंस कर रोये थे, भविष्य में उसकी नीलामी का बेस प्राइस कितना होगा?
टीवी चैनल के पत्रकार जिस तरह कोरोना संकट में एडमिट हुए एक अभिनेता के बेड के नीचे अस्पताल में जाकर रिपोर्टिंग का अभ्यास कर रहा था। उसी तरह टीवी चैनल का रिपोर्टर ड्रेसिंग रूम के किसी बाथरूम में मुंह में कपड़ा डाल डालकर रोने का प्रयास करेगा  और  लोगों को बताएगा कि इतने इंच का कपड़ा मुंह में डाल कर रोने  से बतौर खिलाड़ी आपका दुख कम हो जायेगा, क्रिकेट प्रेमी भले ही किसी के जानबूझकर घटिया खेलने पर बरसों आंसू बहाते रहें।
उम्मीद है जल्द ही  शास्त्री इस मुंह में कपड़ा डाल कर रोने के धोनी के काम को “आउटस्टैंडिंग गेम प्लान” बताते हुए भारत के क्रिकेट प्रेमियों को विश्व कप के सेमीफाइनल के एक मैच में चार विकेटकीपर खिलाने की महानतम रणनीतियों पर वक्तव्य देकर भारत के क्रिकेट प्रेमियों को लाभान्वित करेंगे। वैसे रोने के लिये मुंह में कपड़ा ठूंसना जरूरी नहीं, एक और सेमीफाइनल हुआ था। विश्वकप का 1996 में जिसमें  दर्शकों के हुड़दंग की वजह से टीम को न जिता पाने वाले बिनोद काम्बली भी फफक-फफक कर और बिलख -बिलख कर रोये थे, देश के सामने, मैदान पर, तब उनके साथ देश के लाखों क्रिकेट प्रेमी भी साथ साथ रोये थे उस हार पर।
लेकिन तब पीआर एजेंसीज नहीं थीं जो ये तय करती थीं कि कौन सा सेलेब्रिटी कितनी देर तक, किस लोकेशन पर कितना रोयेगा और मीडिया ब्रीफिंग में उसके रोने की सूचना सही ढंग से दी जा सके। ये मीडिया अटेंशन बहुत बुरी चीज है, ब्रिटेन में राजपरिवार की बहू अपना राजपाट छोड़कर केनेडा में मॉडलिंग करना चाहती हैं,बतौर क्वीन की बहू उनको उतना फुटेज नहीं मिल पाता। सदैव मीडिया में रहने वाले नेपोटिज्म के झंडाबरदार आजकल निर्वासन में हैं और मामी से दूर हो चुके महोदय ने कुछ दिन पहले भी मीडिया में एक खबर भिजवाई थी कि कि वे एक युवा सिनेस्टार की मृत्य से बेहद आहत हैं और बार-बार, जार-जार रोते हैं। रोना भी एक अदा है पाकिस्तान के यू टर्न कहे जाने वाले  प्राइम मिनिस्टर की हालत भी आजकल रोनी सूरत बनाये फिरते हैं।जिस सऊदी अरब के लिये वो अपनी जान छिड़कने को आमादा हैं और समूचे पाकिस्तान को सऊदी अरब का दोस्त कहा है, लेकिन सऊदी अरब ने साफ कर दिया है कि हम जिनको नौकरी पर रखते हैं, उनसे दोस्ती नहीं करते, दोस्ती बराबर के लोगों से होती है, उनसे नहीं जो उन्हीं की खैरात पर ज़िंदा हैं। पाकिस्तान ने हाथ फैलाया, सऊदी ने 3 अरब डॉलर डाल दिया, पाकिस्तान ने आंखे दिखायी तो सऊदी ने अपने एक करोड़ डॉलर तुरन्त मांग लिये। मांगे-तांगे से अपनी अर्थव्यवस्था चलाने वाले पाकिस्तान ने तुरंत एक करोड़ डॉलर चीन से मांगकर सऊदी को दे दिया,लेकिन तेल की सप्लाई रोक दी और नकद लेकर ही तेल देने को कहा है। पाकिस्तान ने अपने नए दोस्त मलेशिया की शरण ली, मलेशिया पहले से ही रो रहा है कि भारत ने साल भर से उससे पाम आयल खरीदना बन्द कर दिया है, महातिर मोहम्मद की ऊलजुलूल बयानबाज़ी के सबब ।94 साल के महातिर मोहम्मद मलेशिया की अर्थव्यवस्था की पनौती बने बैठे हैं। खैर नियाजी निराश नहीं हुए उन्होंने तुरंत अपने नए रिंगमास्टर तुर्की से मदद मांगी, लेकिन भारत विरोधी बयानों के कारण तुर्की का बहिष्कार करते हुए पिछले वर्ष डेढ़ लाख भारतीयों ने अपनी तुर्की यात्रा रदद् कर दी ।तुर्की की भी हालत खस्ता है, वो दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने का ख्वाब तो देख रहे हैं लेकिन सिर्फ डेढ़ लाख भारतीयों के यात्रा बहिष्कार से वहां की अर्थव्यवस्था हिल गयी है। डिप्लोमेसी के जानकार बताते हैं कि तुर्की ने पाकिस्तान को आश्वासन दिया है कि जब भारत के लोग तुर्की की यात्रा शुरू करेंगे तब हालात सामान्य होंगे।उससे उनकी अर्थव्यवस्था सुधरेगी, तब वो कुछ पैसे पाकिस्तान को दे देंगे ताकि वो भारत को परेशान कर सके। यही है इकोनॉमी का गोल चक्कर। पाकिस्तान अब सऊदी अरब से गिड़गिड़ा रहा है कि हमें तेल देना बंद मत करो वरना हमारी इकोनॉमी का तेल निकल जायेगा। आप जैसा कहेंगे हम वैसा ही करेंगे। दुष्यंत साहब ने इसी हालात पर फरमाया था कि
“डांट खाकर मौलवी से अहले मकतब
फिर वही आयत दोहराने लगे हैं
वो सलीबों के करीब आये तो
हमको कायदे कानून समझाने लगे हैं”,
इसी सब के बीच तुर्की की फर्स्ट लेडी से एक हिंदुस्तानी अभिनेता की मुलाकात पर सोशल मीडिया पर काफी हास्य- बिनोद हो रहा है। उन अभिनेता साहब की घर की एक लेडी ने बताया था कि उन्हें इस देश में डर लगने लगा था। उम्मीद है अब वो निडर होकर कहीं भी आ जा सकते हैं। इसी निडरता में वो नेटीजन्स के निशाने पर आ गए।
एक ऐसे दौर में जब एक भारतीय फिल्म ने डिसलाइक होने का रिकॉर्ड बनाया है, तब उनकी मुलाकात की टाइमिंग को परफेक्ट कहना शायद मुफीद नहीं होगा, जबकि उनकी फिल्म भी आने वाली है। उनकी इस परफेक्ट मुलाकात की टाइमिंग पर कई नेटीजनों का हास्य-बिनोद हो रहा है। इसी बीच डिस्लाइक में महारत रखने वाला एक बन्दा गा रहा है-
“यारों हँसो! बना रखी है क्या ये सूरत रोनी”।
कुछ उसे हिला हुआ, प्रचार का भूखा कहती है, लेकिन तमाम नेटीजन प्यार से कहते पाए गए हैं-
“बिनोद बावफ़ा है”।

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