प्रणय दिवस बसंतोत्सव, मदनोत्सव और वैलेंटाइन डे पर विशेष वैलेंटाइन डे वैसे तो पाश्चात्य परिकल्पना है और विगत दो दशकों में इसका विस्तार हुआ है किन्तु यदि हम ध्यानपूर्वक देखें तो पाएंगे कि यह भारतीय संस्कृति में भी चिरकाल से… Read More
कविता : माँ शारदे
पूजत चरण माँ शारदे पंचम तिथि है बसन्त सर्वज्ञान विस्तारित हो जितना गगन अनन्त। प्रकटोत्सव पर हर्षित सारे देवी देव भगवान नतमस्तक हो स्तुति करें ओढ़ पीत परिधान। ओढ़ पीत परिधान भोग में बेसन का हलवा धन यश विद्या और… Read More
कविता : आत्महत्या
संघर्षों से घबरा कर यदि, सब मृत्यु गले लगाते। डर के आगे जीत लिखे जो, न विजेता वो मिल पाते॥ मरना सबको इक दिन लेकिन, न मौत से पहले मरना॥ गिर गिर कर फिर उठ उठ कर ही, जीवन पथ… Read More
नज़्म : मोहब्बत
मोहब्बत के सफर पर चलने वाले रही सुनो मोहब्बत तो हमेशा जज्बातों से की जाती है महज़ शादी किसी मोहब्बत का साहिल नहीं मंज़िल तो दूर बहुत इससे भी दूर जाती है। जिन निगाहों में मुकाम-ए-इश्क़ शादी है उन निगाहों… Read More
कविता : मैं
“मैं” से उठकर मैंने जब देखा जो ज़रा ध्यान से आत्मा थी दिग्भ्रमित, मन था भरा अज्ञान से। चक्षुओं की परिधि भी सीमित रही स्वकुटुंब तक संकुचित समस्त भावनाएँ, थी पहुँच प्रतिबिम्ब तक ओज़ वाणी में था इतना, स्वयं सुन… Read More
गीत : सरस्वती वंदना
माता विमला दो मुझे, बुद्धि विनय बल ज्ञान। अमर कलम मेरी रहे, दो मुझको वरदान।। सरस्वती माँ से करूँ, इतनी सी फरियाद। मेरे गीतों से करें, लोग मुझे बस याद।। ज्ञानदा माँ दे मेरे, शब्दों में वो धार। सच को… Read More
ग़ज़ल : यहीं छोड़ जाऊंगा
ये जिस्म, ये लिबास, यहीं छोड़ जाऊंगा जो कुछ है मेरे पास, यहीं छोड़ जाऊंगा जब जाऊंगा तो कोई न जायेगा मेरे साथ सब लोगों को उदास, यहीं छोड़ जाऊंगा भर-भर के जाम जिस में पिए उम्र भर वही ख़ुशियों… Read More
कविता : काश! हम सब जन्मजात अंधे होते
काश! हम सब जन्मजात अंधे होते हमारी आँखों में कतई रौशनी न होती चेहरे पर लगा एक काला चश्मा होता और हाथ में लकड़ी की एक छड़ी होती तब इस विश्व का स्वरुप ही दूसरा होता प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व… Read More
हिंदी कहानी आलोचना के पुरोधा धनंजय
श्रद्धेय गुरुवर व हिंदी के अनथक योद्धा धनंजय जी को अंतिम प्रणाम!!! श्रद्धेय गुरुवर प्रोफेसर धनंजय वर्मा की चिर विदाई ने साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है। उनका जाना, एक युग का समाप्त हो जाना है।उनकी जिंदादिली मशहूर थी।… Read More
कविता : करते नहीं देश की चिंता
मिली मुश्किलों से आज़ादी, मगर न इस की कद्र हमें। पड़ आदत आराम की गई, नहीं देश की फिक्र हमें॥ देश की चिंता न हम करते, हम भूलें ज़िम्मेदारी। भोर करेगा कौन यहाँ अब, निंद्रा सबको है प्यारी॥ मरने मिटने… Read More