आया है ये वक्त कैसा
रक्त नहीं रक्त जैसा।
बेटा आज बाप को ही
अर्थ समझाता है।

चपर-चपर बोले
सुनता ना हौले-हौले।
जननी के सामने ना
सर को झुकाता है।

मौके की फ़िराक़ में है
सपनों की साख में है।
तिनका-सा ज्ञान लेके
सीने को फुलाता है।

धरती पे फैली बाहें
आसमान पे निगाहें।
खुद का ही भार लेके
उड़ नहीं पाता है।।

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