बुक रिव्यू : हाशिये के लोगों में झाँकती : किन्नर समाज संदर्भ ‘तीसरी ताली’

यह पृथ्वी अनेक विचित्रताओं से युक्त है। और उतना ही विचित्र और रहस्यों स युक्त हैं यह ब्रह्मांड, उसके चराचर जीव जगत। मनुष्य का जब से जन्म अथवा उद्भव हुआ है तब से लेकर अब तक उसने कई आविष्कार किए… Read More

ख़ामोश क़त्ल

देखो उस मेट्रो को… कैसे खिलखिला के हँस रही है… सुना है, इसने कई पेड़ों का क़त्ल कर दिया कल रात… कल रात जब हम गहरी नींद में थे कुछ पेड़ सुबक रहे थे अंधेरे में… कइयों ने आवाज़ लगाई… Read More

पिता का विश्वास

रिया की उम्र अब 18 की हो चुकी थी, जहाँ एक ओर रिया की माँ को उसके ब्याह की चिन्ता सता रही थी वहीं रिया के पिता इस दुविधा मे फंसे हुए थे कि अपनी धर्मपत्नी की चिन्ता को दूर… Read More

ग़ज़ल : क्या करेगा आदमी

पत्थरों के इस शहर में आइने-सा आदमी, ढूँढने निकला था खुद को चूर होता आदमी। चिमनियाँ थीं, हादसे थे, शोर था काफी मगर, इस शहर की भीड़ में कोई नहीं था आदमी। तन जलेगा, मन जलेगा, घर जलेगा बाद में,… Read More

सुबोध श्रीवास्तव की कविताएं

बंदूकें तुम्हें भले ही भाती हो अपने खेतों में खड़ी बंदूकों की फसल लेकिन- मुझे आनन्दित करती है पीली-पीली सरसों और/दूर तक लहलहाती गेहूं की बालियों से उपजता संगीत। तुम्हारे बच्चों को शायद लोरियों सा सुख भी देती होगी गोलियों… Read More

जन्मदिवस विशेष : सरस्वती की जवानी में कविता और बुढ़ापे में दर्शन ढूंढने वाला कवि ‘दिनकर’

साहित्य के वाद (छायावाद, प्रगतिवाद) से परे के कवि रामधारी सिंह दिनकर की आज 111वीं जन्म जयंती  है। 23 सितम्बर 1908 सिमरिया में जन्में और साल 1974 की 24 अप्रैल को पंचतत्व में विलीन हो जाने वाली इस महान विभूति… Read More

कविता : यह हनी ट्रैप है

स्त्री फँसायेगी तुम्हें जाल में फंसना मत यही सिखाया गया है नरक का द्वार जो है मेनका का काम ही है आप जैसे तपस्वियों का तप भंग करना आप बहक गये तो क्या इंसान ही तो हैं आखिरभोले भाले लोग….… Read More

राष्ट्र सर्वोपरि की भावना का पोषक कवि : ‘रामधारी सिंह ‘दिनकर’

हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना और संस्कृति के संवाहक लेखकों और कवियों की परंपरा में ‘रामधारी सिंह दिनकर’ का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है। आज इस महान विभूति का जन्मदिवस (23 सितंबर 1908- 24 अप्रैल 1974) है।… Read More

पुस्तक समीक्षा : प्रेम की ताकत से सामाजिक बदलाव का बिगुल फूंकता उपन्यास ‘नेत्रा’

ढाई आखर का शब्द ‘प्रेम’ विश्व साहित्य में शायद सर्वाधिक चर्चित या कि विवादित रहता आया है। पुराख्यानों से लगायत अधुनातन साहित्य तक काव्य और कथा सर्जना के केन्द्रीय तत्व के रूप  में प्रेम को व्यापक स्वीकृति एवं अभिव्यक्ति मिलना… Read More

मेरी बेटी, मेरी जान

मेरी बेटी, मेरी जान ! तुम सर्दी में इतनी सुंदर क्यों हो जाती हो मेरी बेटी गोल-मटोल स्कार्फ बांध कर नन्हीलाल चुन्नी जैसी नटखट क्यों बन जाती हो मेरी बेटी मेरी बेटी, मेरी जान, मेरी भगवान, मेरी परी, मेरी आन,… Read More